अब यह भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) पर निर्भर करता है कि वह एक वर्ष से चले आ रहे अदाणी-हिंडनबर्ग मामले का समापन करे। देश के प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाले सर्वोच्च न्यायालय के एक पीठ ने बुधवार को एक निर्णय में कहा कि इस मामले की जांच को सेबी से स्थानांतरित करने की कोई वजह नहीं है।
पीठ ने आगे यह भी कहा कि किसी जांच को स्थानांतरित करने का अधिकार असाधारण परिस्थितियों में इस्तेमाल किया जाना चाहिए और बिना उचित कारण के ऐसा नहीं किया जाना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार और नियामक को यह देखना चाहिए कि क्या हिंडनबर्ग या किसी अन्य संस्था ने कानूनों का उल्लंघन किया है? यदि ऐसा हुआ हो तो उसे समुचित कदम उठाने चाहिए। पीठ ने सेबी को जांच पूरी करने के लिए तीन महीने का समय दिया।
सर्वोच्च न्यायालय की घोषणा ने साल भर चले आ रहे अदाणी-हिंडनबर्ग मामले में अहम मील के पत्थर का काम किया है। जनवरी 2023 में अमेरिकी शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी जिसमें अदाणी समूह पर कई तरह के इल्जाम लगाए गए थे। तमाम आरोपों के बीच एक आरोप यह भी था कि ‘अदाणी समूह दशकों से शेयरों के साथ छेड़छाड़ और लेखा संबंधी धोखाधड़ी जैसी गतिविधियों में शामिल’ रहा है।
अदाणी समूह ने सभी आरोपों को खारिज किया। हिंडनबर्ग ने यह खुलासा भी किया उसने अदाणी समूह के अमेरिका में ट्रेड होने वाले बॉन्ड और भारत से बाहर ट्रेडिंग वाले डेरिवेटिव्स में शॉर्ट पोजीशन ली थी।
दिलचस्प बात है कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट अदाणी एंटरप्राइजेज की 20,000 करोड़ रुपये की भारी भरकम अतिरिक्त सार्वजनिक पेशकश के सब्सक्रिप्शन के खुलने के एक दिन पहले आई थी। बाद में इस पेशकश को वापस ले लिया गया। इस बीच कंपनी के शेयरों की कीमतों में तेजी से गिरावट आई। जब यह मामला सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा तो सेबी ने सूचित किया कि वह इस मामले की जांच कर रहा है और रिपोर्ट के प्रकाशन के बाद बाजार की गतिविधियों की निगरानी भी कर रहा है।
सर्वोच्च न्यायालय ने सेबी को इस मामले की जांच जारी रखने की इजाजत देकर सही किया है और इसकी कई वजह हैं। निश्चित तौर पर वह ऐसे मामलों की जांच के लिए सक्षम संस्था है। इसके अलावा यह सुनिश्चित करना बाजार नियामक का काम है कि उसके नियमन का पालन हो और बाजार का सहज कामकाज तथा निवेशकों के हितों का ध्यान रखना सुनिश्चित किया जाए। किसी अन्य एजेंसी को इसमें शामिल करने से नियामक पर जनता का भरोसा डगमगाता जिसके व्यापक परिणाम होते।
बहरहाल इस संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ऐसे मामलों की पड़ताल के लिए समिति का गठन करना गैरजरूरी था। ध्यान देने वाली बात है कि सेबी ने अगस्त में सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत एक रिपोर्ट में कहा था कि उसने 24 में से 22 मामलों में जांच पूरी कर ली है।
बहरहाल, बाकी बची जांच पूरी होने के बाद ही यह मामला निपट सकेगा क्योंकि उनका ताल्लुक न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता मानकों तथा शेयर कीमतों में छेड़छाड़ से है। सेबी की दलील है कि चूंकि कई कंपनियां कर वंचना के लिए दूसरे देशों में हैं इसलिए शेयरधारकों के आर्थिक हितों का स्थापित करना एक चुनौती है।
ऐसे में यह ध्यान देने लायक है कि जब तक जांच पूरी नहीं हो जाती है और एक व्यापक रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं होती है तब तक मामला समाप्त नहीं होगा। सेबी को जांच तेज करनी चाहिए और तय समय में रिपोर्ट पेश करनी चाहिए।
दरअसल मामले को जल्द से जल्द निपटाना नियामक के हित में है क्योंकि इससे भरोसा बहाल होगा और यह पता चलेगा कि नियामक बाजार के कामकाज के समक्ष उपस्थित खतरे से निपटने की स्थिति में है।
बहरहाल, अगर नियामक तय समय में विदेशी संस्थाओं के बारे में जरूरी जानकारी नहीं जुटा पाता है तो उसे नियमन की समीक्षा करनी होगी। ऐसी खामी बेईमान तत्वों के लिए शेयर कीमतों में अपनी मर्जी से छेड़छाड़ के अवसर उत्पन्न कर सकता है जिससे निवेशकों का हित और बाजार की स्थिरता दोनों प्रभावित हो सकते हैं। ऐसे में सेबी की जांच न केवल एक खास कारोबारी समूह बल्कि समूचे बाजार के लिए महत्त्वपूर्ण है।