जैसा कि इस समाचार पत्र में भी हाल ही में प्रकाशित हुआ, केंद्र सरकार ने आठवीं आर्थिक जनगणना की तैयारी शुरू कर दी है। माना जा रहा है कि अगले वर्ष उसकी औपचारिक शुरुआत कर दी जाएगी। आर्थिक जनगणना एक अहम उपाय है जो देश भर के प्रतिष्ठानों के ढांचों और परिचालन को लेकर विस्तृत डेटा मुहैया कराता है। इसके आधार पर आर्थिक गतिविधियों, स्वामित्व और श्रम शक्ति संबद्धता को लेकर अंतर्दृष्टि हासिल की जा सकती है।
यह आंकड़ा राज्य और जिला स्तर पर साामजिक आर्थिक नियोजन के लिए भी महत्त्वपूर्ण है। बहरहाल चिंताएं बरकरार हैं। सबसे ताजा आंकड़े छठी जनगणना के हैं जो 2013 में हुई थी। इसके नतीजे 2016 में प्रकाशित किए गए। सातवीं आर्थिक जनगणना 2019 में हुई थी लेकिन उस दौरान कई बाधाएं आईं। आरंभ में प्रक्रिया कोविड-19 महामारी से बाधित हुई थी और उसके बाद संग्रहित आंकड़ों की गुणवत्ता को लेकर तमाम चिंताएं उत्पन्न हो गईं।
सातवीं गणना के आंकड़ों का जारी होना जरूरी है ताकि अलग-अलग अवधि को लेकर सार्थक तुलना और विश्लेषण किया जा सके। एक तथ्य यह भी है कि यह प्रक्रिया बिना किसी आधिकारिक स्पष्टीकरण के बाधित हुई। इससे प्रक्रिया की ईमानदारी को लेकर तमाम सवाल पैदा होते हैं। यह समूची सांख्यिकी प्रणाली की मजबूती पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है।
आंकड़ों की गुणवत्ता और पुराने अनुभवों से सीखे गए सबक की बात करें तो इसके लिए पारदर्शिता बहुत आवश्यक है और डेटा को सार्वजनिक किया जाना चाहिए। इससे न केवल कमियों को दूर करने में मदद मिलेगी बल्कि सांख्यिकीय प्रक्रिया में विश्वास बहाल होगा तथा यह सुनिश्चित हो सकेगा कि भविष्य में होने वाली ऐसी गणना में आंकड़ों तथा विश्वसनीयता का ध्यान रखा जाए।
इसके अलावा सरकार नैशनल सैंपल सर्वे के 80वें दौर को अंजाम देने पर विचार कर रही है जिसमें स्वास्थ्य, घरेलू यात्रा और पर्यटन संबंधी व्यय आदि शामिल होंगे। सेवा क्षेत्र का एक व्यापक सर्वेक्षण भी उसके तत्काल बाद कराया जा सकता है। इससे राष्ट्रीय स्तर पर डेटा संग्रह के प्रयासों का दायरा बढ़ेगा। इसके साथ ही सरकार ने हाल ही में कई बड़े सैंपल सर्वे के आंकड़े जारी किए हैं।
उदाहरण के तौर पर परिवार खपत व्यय सर्वे के आंकड़े 2011 के बाद पहली बार जारी किए गए। इन कोशिशों को राष्ट्रीय सांख्यिकी और अन्य प्रमुख सूचकांकों के लिए आधार वर्ष में परिवर्तन के लिए सलाहकार समितियों की स्थापना के जरिये पूरा किया जाता है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि देश की सांख्यिकीय प्रणाली की प्रासंगिकता बरकरार रहे और वर्तमान आर्थिक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करे। नीति निर्माण को बेहतर बनाने तथा समग्र सांख्यिकीय ढांचे को मजबूत बनाने के लिए अद्यतन और बेहतर आंकड़ों का होना आवश्यक है।
बहरहाल, सरकार की हालिया चर्चाओं और उसकी प्रतिबद्धता के बावजूद इन प्रयासों का असर तब तक सीमित रहेगा जब तक कि दशकीय जनगणना जो 2021 में होनी थी, को अंजाम नहीं दिया जाता। वर्ष 1881 के बाद पहली बार जनगणना को टाला गया है और अभी भी यह स्पष्ट जानकारी नहीं है कि इसे कब कराया जाएगा।
जनगणना समूची सांख्यिकीय प्रणाली का आधार है। वह जो आधार प्रदान करती है उसी पर नमूना सर्वेक्षणों और नीतिगत निर्णयों के सटीक और विश्वसनीय होने का दारोमदार होता है। बिना ताजा जनगणना के आंकड़ों के इनमें से कुछ सर्वे की सत्यता और नीतिगत निर्णयों का प्रभाव सीमित हो सकता है।
ऐसे में जहां सरकार के सांख्यिकीय ढांचे को बेहतर बनाने के प्रयास सही दिशा में हैं, वहीं इनका समय पर क्रियान्वयन भी आवश्यक है। यह महत्त्वपूर्ण है कि नीति निर्माता तेजी से बदलती अर्थव्यवस्था में समय पर और सटीक आंकड़ों की मदद से नीतिगत हस्तक्षेप को प्रभावी बना सकें।
जैसा कि इस समाचार पत्र में भी हाल ही में प्रकाशित हुआ, केंद्र सरकार ने आठवीं आर्थिक जनगणना की तैयारी शुरू कर दी है। माना जा रहा है कि अगले वर्ष उसकी औपचारिक शुरुआत कर दी जाएगी। आर्थिक जनगणना एक अहम उपाय है जो देश भर के प्रतिष्ठानों के ढांचों और परिचालन को लेकर विस्तृत डेटा मुहैया कराता है। इसके आधार पर आर्थिक गतिविधियों, स्वामित्व और श्रम शक्ति संबद्धता को लेकर अंतर्दृष्टि हासिल की जा सकती है।
यह आंकड़ा राज्य और जिला स्तर पर साामजिक आर्थिक नियोजन के लिए भी महत्त्वपूर्ण है। बहरहाल चिंताएं बरकरार हैं। सबसे ताजा आंकड़े छठी जनगणना के हैं जो 2013 में हुई थी। इसके नतीजे 2016 में प्रकाशित किए गए। सातवीं आर्थिक जनगणना 2019 में हुई थी लेकिन उस दौरान कई बाधाएं आईं। आरंभ में प्रक्रिया कोविड-19 महामारी से बाधित हुई थी और उसके बाद संग्रहित आंकड़ों की गुणवत्ता को लेकर तमाम चिंताएं उत्पन्न हो गईं।
सातवीं गणना के आंकड़ों का जारी होना जरूरी है ताकि अलग-अलग अवधि को लेकर सार्थक तुलना और विश्लेषण किया जा सके। एक तथ्य यह भी है कि यह प्रक्रिया बिना किसी आधिकारिक स्पष्टीकरण के बाधित हुई। इससे प्रक्रिया की ईमानदारी को लेकर तमाम सवाल पैदा होते हैं। यह समूची सांख्यिकी प्रणाली की मजबूती पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है।
आंकड़ों की गुणवत्ता और पुराने अनुभवों से सीखे गए सबक की बात करें तो इसके लिए पारदर्शिता बहुत आवश्यक है और डेटा को सार्वजनिक किया जाना चाहिए। इससे न केवल कमियों को दूर करने में मदद मिलेगी बल्कि सांख्यिकीय प्रक्रिया में विश्वास बहाल होगा तथा यह सुनिश्चित हो सकेगा कि भविष्य में होने वाली ऐसी गणना में आंकड़ों तथा विश्वसनीयता का ध्यान रखा जाए।
इसके अलावा सरकार नैशनल सैंपल सर्वे के 80वें दौर को अंजाम देने पर विचार कर रही है जिसमें स्वास्थ्य, घरेलू यात्रा और पर्यटन संबंधी व्यय आदि शामिल होंगे। सेवा क्षेत्र का एक व्यापक सर्वेक्षण भी उसके तत्काल बाद कराया जा सकता है। इससे राष्ट्रीय स्तर पर डेटा संग्रह के प्रयासों का दायरा बढ़ेगा। इसके साथ ही सरकार ने हाल ही में कई बड़े सैंपल सर्वे के आंकड़े जारी किए हैं।
उदाहरण के तौर पर परिवार खपत व्यय सर्वे के आंकड़े 2011 के बाद पहली बार जारी किए गए। इन कोशिशों को राष्ट्रीय सांख्यिकी और अन्य प्रमुख सूचकांकों के लिए आधार वर्ष में परिवर्तन के लिए सलाहकार समितियों की स्थापना के जरिये पूरा किया जाता है।
इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि देश की सांख्यिकीय प्रणाली की प्रासंगिकता बरकरार रहे और वर्तमान आर्थिक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करे। नीति निर्माण को बेहतर बनाने तथा समग्र सांख्यिकीय ढांचे को मजबूत बनाने के लिए अद्यतन और बेहतर आंकड़ों का होना आवश्यक है।
बहरहाल, सरकार की हालिया चर्चाओं और उसकी प्रतिबद्धता के बावजूद इन प्रयासों का असर तब तक सीमित रहेगा जब तक कि दशकीय जनगणना जो 2021 में होनी थी, को अंजाम नहीं दिया जाता। वर्ष 1881 के बाद पहली बार जनगणना को टाला गया है और अभी भी यह स्पष्ट जानकारी नहीं है कि इसे कब कराया जाएगा।
जनगणना समूची सांख्यिकीय प्रणाली का आधार है। वह जो आधार प्रदान करती है उसी पर नमूना सर्वेक्षणों और नीतिगत निर्णयों के सटीक और विश्वसनीय होने का दारोमदार होता है। बिना ताजा जनगणना के आंकड़ों के इनमें से कुछ सर्वे की सत्यता और नीतिगत निर्णयों का प्रभाव सीमित हो सकता है।
ऐसे में जहां सरकार के सांख्यिकीय ढांचे को बेहतर बनाने के प्रयास सही दिशा में हैं, वहीं इनका समय पर क्रियान्वयन भी आवश्यक है। यह महत्त्वपूर्ण है कि नीति निर्माता तेजी से बदलती अर्थव्यवस्था में समय पर और सटीक आंकड़ों की मदद से नीतिगत हस्तक्षेप को प्रभावी बना सकें।