facebookmetapixel
538% मुनाफा कमाने के बाद ब्रोकरेज बोला – Suzlon को मत बेचो, जानिए नया टारगेट प्राइससावधान! AI कैमरे अब ट्रैफिक उल्लंघन पर रख रहे हैं नजर, कहीं आपका ई-चालान तो नहीं कटा? ऐसे देखें स्टेटसचीन ने बना लिया सोने का साम्राज्य, अब भारत को भी चाहिए अपनी गोल्ड पॉलिसी: SBI रिसर्चQ2 नतीजों के बाद Tata Group के इस शेयर पर ब्रोकरेज की नई रेटिंग, जानें कितना रखा टारगेट प्राइससोना हुआ सुस्त! दाम एक महीने के निचले स्तर पर, एक्सपर्ट बोले – अब बढ़त तभी जब बाजार में डर बढ़ेमॉर्गन स्टैनली का बड़ा दावा, सेंसेक्स जून 2026 तक 1 लाख तक पहुंच सकता है!SBI का शेयर जाएगा ₹1,150 तक! बढ़िया नतीजों के बाद ब्रोकरेज ने बनाया टॉप ‘BUY’ स्टॉकEPFO New Scheme: सरकार ने शुरू की नई PF स्कीम, इन कर्मचारियों को होगा फायदा; जानें पूरी प्रक्रियाNavratna Railway कंपनी फिर दे सकती है मोटा रिवॉर्ड! अगले हफ्ते डिविडेंड पर होगा बड़ा फैसलाक्रिस कैपिटल ने 2.2 अरब डॉलर जुटाए, बना अब तक का सबसे बड़ा इंडिया फोक्स्ड प्राइवेट इक्विटी फंड

संपादकीय: देश में रोजगार की स्थिति

उत्पादकता और वृद्धि में इन उतार-चढ़ाव के बावजूद विनिर्माण क्षेत्र के सकल उत्पादन में श्रम आधारित आय की हिस्सेदारी अपेक्षाकृत स्थिर रही है।

Last Updated- July 10, 2024 | 9:43 PM IST
jobs

देश की अर्थव्यवस्था (Economy) में रोजगार (Job) और आय हमेशा से अहम मुद्दे रहे हैं। रोजगार एक जरूरी राजनीतिक मुद्दा है और सरकारों का पर्याप्त रोजगार तैयार नहीं कर पाना उन्हें चुनावों में नुकसान पहुंचा सकता है। इस संबंध में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी केएलईएमएस (पूंजी, श्रम, ऊर्जा, पदार्थ और सेवा) डेटाबेस एक नई बहस को जन्म देता है।

प्रारंभिक अनुमान संकेत देते हैं कि 2023-24 में रोजगार की वृद्धि दर 6 फीसदी रही जो 1980-81 के बाद डेटाबेस में सर्वाधिक है। परंतु श्रम आधारित उद्योगवार विश्लेषण कुछ चिंताओं को जन्म देता है। कृषि एवं संबद्ध गतिविधियां अर्थव्यवस्था में रोजगार तैयार करने वाला सबसे बड़ा क्षेत्र हैं। इसने निरंतर कम श्रम उत्पादकता दिखाई है। यह आंकड़ा 27 उद्योगों या क्षेत्रों पर आधारित है जिन्हें 2011-12 की स्थिर कीमतों पर प्रति श्रमिक आधार पर आंका जाता है।

यह इस क्षेत्र में छिपी बेरोजगारी की व्यापक समस्या को रेखांकित करता है। वर्ष 2019-20 और 2020-21 में श्रम उत्पादकता वृद्धि ऋणात्मक हो गई क्योंकि महामारी के दौरान कृषि क्षेत्र में श्रमिकों की तादाद बढ़ गई। इसके अलावा कृषि क्षेत्र के सकल उत्पादन में श्रम से होने वाली आय की हिस्सेदारी 2011-12 के स्तर से मामूली यानी करीब दो फीसदी बढ़ी।

2017-18 से सकल उत्पादन में सालाना करीब चार फीसदी की वृद्धि के साथ श्रम आय हिस्सेदारी करीब 45 फीसदी के स्तर पर रही। यह ठहराव दिखाता है कि उत्पादन में वृद्धि के लाभ इस क्षेत्र में श्रम की बेहतर आय में परिवर्तित नहीं हुए। इसी प्रकार विनिर्माण क्षेत्र जो कृषि के बाद दूसरा सबसे बड़ा नियोक्ता है उसे भी श्रम उत्पादकता में उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ा।

अभी भी उसे सन 1980 के दशक के स्तर पर लौटना है। हालांकि 2011 के बाद से इसने निरंतर वृद्धि ही दिखाई है। वर्ष 2020-21 जरूर एक अपवाद था। इस विसंगति का कारण महामारी को माना जा सकता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि इस क्षेत्र की वृद्धि दर 2021-22 में अपने उच्चतम स्तर पर पहुंची और ऐसा मोटे तौर पर इसलिए हुआ कि पिछले वर्ष की मंदी के कारण आधार प्रभाव नजर आ रहा था।

उत्पादकता और वृद्धि में इन उतार-चढ़ाव के बावजूद विनिर्माण क्षेत्र के सकल उत्पादन में श्रम आधारित आय की हिस्सेदारी अपेक्षाकृत स्थिर रही है। यह निरंतर 27 और 29 फीसदी के बीच बनी रही। यह स्थिरता दिखाती है कि कृषि क्षेत्र की तरह उत्पादन में वृद्धि श्रमिकों की आय में पर्याप्त परिलक्षित नहीं हुई है और इसका लाभ मोटे तौर पर पूंजीपतियों को मिल रहा है।

डेटाबेस के मुताबिक कपड़ा, कपड़ा उत्पादों, चमड़ा और जूते-चप्पल के उद्योग में 2021-22 में रोजगार में अच्छी खासी वृद्धि हुई है जबकि इससे पहले के डेढ़ दशक तक वह ऋणात्मक रही थी। इस सकारात्मक बदलाव के बावजूद 2021-22 में रोजगार का स्तर 2004-05 की तुलना में काफी कमजोर रहा।

इसके अलावा कृषि और निर्माण क्षेत्र की तरह कपड़ा उद्योग के सकल उत्पादन में श्रम आय की हिस्सेदारी उदारीकरण के बाद से ही 15 फीसदी का स्तर पार नहीं कर सकी है। कपड़ा उद्योग श्रम के सर्वाधिक इस्तेमाल वाले उद्योगों में शामिल है और इसमें छोटे और मझोले उपक्रमों का दबदबा है। ऐसे में इस क्षेत्र की रोजगार तैयार कर पाने में नाकामी अर्थव्यवस्था में ढांचागत दिक्कतों को दिखाती है।

इसके अलावा शिक्षा और आय से आंकी जाने वाली श्रम की गुणवत्ता दिखाती है कि तमाम श्रम गहन उद्योगों में बहुत मामूली सुधार हुआ है। ऐसे में चिंता केवल रोजगार के अवसर तैयार करने की नहीं बल्कि यह भी है कि रोजगार के अवसर कहां पैदा किए जा रहे हैं और कुल उत्पादन में श्रमिकों को कितना हिस्सा मिल रहा है। श्रमिकों की आय की कीमत पर आर्थिक वृद्धि लंबी अवधि में टिकाऊ साबित नहीं होगी क्योंकि हमारा देश श्रम की अधिकता वाला देश है।

First Published - July 10, 2024 | 9:25 PM IST

संबंधित पोस्ट