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Rajasthan Elections: बागी तेवर से कांग्रेस की चुनौतियां बरकरार

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट

Last Updated- August 24, 2023 | 6:09 PM IST
Rajasthan

दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के आवास पर 29 मई को चार घंटे की बैठक हुई। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट एक साझी तस्वीर के लिए गेट पर चले गए। आखिरी बार उन्हें भारत जोड़ो यात्रा के दौरान एक साथ देखा गया था जब उन्होंने राजस्थान से इस यात्रा के गुजरने के बाद अपने मतभेदों को अस्थायी विराम दे दिया था।

जो तस्वीर खींची गई उसमें दोनों नेताओं के बीच की तनातनी साफतौर पर उभरती हुई दिख रही थी। इस तस्वीर में पायलट अपने होंठ सिकोड़े और हाथों को बांधे खड़े थे, वहीं अशोक गहलोत मुस्कुरा रहे थे। पार्टी महासचिव केसी वेणुगोपाल उनके बीच खड़े होते हुए गंभीर और सतर्क दिखाई दे रहे थे। इस तस्वीर से जो संदेश मिल रहा था वह यह था कि वे एक साथ जरूर हैं लेकिन अलग हैं।

यह पूरी तरह से जमीनी वास्तविकता से जुड़ा हुआ है। तस्वीर खिंचाने से महज 10 दिन पहले ही पार्टी की चुनावी तैयारी को लेकर अजमेर में हुई एक समीक्षा बैठक से पहले दोनों दिग्गज नेताओं के समर्थक सार्वजनिक रूप से आपस में भिड़ गए और एक-दूसरे के नेताओं के खिलाफ नारेबाजी की। इस लड़ाई को रोकने के लिए पुलिस बुलानी पड़ी।

इस तस्वीर के सामने आने के ठीक सात दिन बाद सचिन पायलट ने टोंक में कांग्रेस कार्यकर्ताओं की एक बैठक को संबोधित किया, जहां उन्होंने कहा, ‘मेरे लिए भ्रष्टाचार और युवाओं का भविष्य, इन दो मुद्दों पर कोई समझौता करना संभव नहीं है।’ उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस पार्टी हमेशा भ्रष्टाचार के खिलाफ और युवाओं के पक्ष में रही है।

इसलिए मुझे लगता है कि भ्रष्टाचार के आरोपों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए और युवाओं को न्याय दिया जाना चाहिए।’ उस ‘युवा’ की पहचान के बारे में शायद ही कोई संदेह है जिसके लिए वह न्याय चाहते हैं।

गहलोत ने इस पर तुरंत ही टिप्पणी कर दी। उन्होंने कहा, ‘मुझे सोनिया गांधी के शब्द याद हैं, जिन्होंने पार्टी के सम्मेलन में पार्टी कार्यकर्ताओं से धैर्य रखने और किसी भी तरीके से पार्टी की सेवा करने को कहा था। मैं इस बात को अपने दिल में रखता हूं और सभी पार्टी कार्यकर्ताओं से धैर्य रखने के लिए कहता हूं। उन्हें किसी तरह से पार्टी की सेवा करने का अवसर जरूर मिलेगा। इसलिए, मैं धैर्य, धैर्य, धैर्य की बात करता हूं।’

ऐसी स्थिति कैसे हुई?

वर्ष 2013 के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने गहलोत सरकार को चुनाव में बड़ी मात दी और जिसके बाद वसुंधरा राजे सत्ता में आईं। कांग्रेस सिर्फ 21 सीट ही जीत सकी जो राज्य में अब तक के इतिहास में उसकी सबसे कम सीट हैं। भाजपा ने शानदार जीत दर्ज करते हुए 163 सीट हासिल कीं, जो अब तक की सबसे अधिक सीट हैं।

वर्ष 2014 में पार्टी के मनोबल को बढ़ाने के लिए सचिन पायलट को पार्टी प्रमुख बनाया गया था। उन्होंने 2018 के चुनाव अभियान का नेतृत्व किया, जिसके कारण कांग्रेस को जीत मिली। उनका इनाम राज्य के उपमुख्यमंत्री पद के रूप में मिला। यह संभव है कि उन्हें लगा हो कि वह इससे अधिक के हकदार हैं। उनके समर्थकों को यह मौका 2020 में मिला, जब उन्हें लगा कि उन्हें भाजपा से कुछ आश्वासन मिल सकता है।

इसके बाद पायलट और उनके समर्थकों ने मानेसर में खुद को अलग कर लिया और मुख्यमंत्री बदलने की मांग शुरू कर दी। हालांकि उस चुनौती को खत्म कर दिया गया था, लेकिन एक चुनौती तब फिर से आई जब अशोक गहलोत को कांग्रेस के अध्यक्ष पद की पेशकश की गई।

इस पेशकश के साथ एक शर्त यह जुड़ी हुई थी कि अध्यक्ष पद के लिए उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ना होगा। यह बात राहुल गांधी ने उदयपुर में कांग्रेस के चिंतन शिविर में साफ की। गहलोत को अध्यक्ष पद के चुनाव से बाहर रहने का विकल्प चुनना पड़ा जब उनके समर्थकों ने उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में बनाए रखने की मांग करते हुए सड़कों पर हंगामा करना शुरू कर दिया। वहीं राज्य सरकार में पायलट के अधिकांश समर्थकों को हटा दिया गया।

गहलोत का कहना था कि पायलट को अपने जीवनकाल में यह पद कभी नहीं मिलेगा क्योंकि वह एक ‘गद्दार’ हैं और वह भाजपा से जुड़ने के लिए भी तैयार थे। पायलट का कहना है कि यह पीढ़ीगत नेतृत्व परिवर्तन का समय है। वहीं उनके समर्थक भी उन्हें याद दिलाते रहते हैं कि समय निकलता जा रहा है।

पायलट और उनके गुट का मानना है कि उन्होंने ही कांग्रेस को सत्ता में पहुंचाया था। यह समूह गहलोत की कुछ हद तक सत्तावादी प्रवृत्ति से नाराज है और वे फिलहाल पीछे हटने के मिजाज में नहीं दिखते हैं।

कर्नाटक में भाजपा में कई गुट बनने के कारण चुनाव में पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा क्योंकि इस समस्या को पार्टी समय पर हल नहीं कर सकी। क्या राजस्थान में कांग्रेस के साथ भी ऐसा होना संभव हो सकता है?

जब पायलट ने गहलोत के खिलाफ अपना ‘अभियान’ शुरू किया तब पायलट ने तीन मांगें रखीं जिनमें राजस्थान के लोक सेवा आयोग को भंग करना और इसका पुनर्गठन करना, सरकारी नौकरियों से जुड़ी परीक्षा के पेपर लीक मामलों से प्रभावित लोगों के लिए मुआवजा और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सहित पिछली भाजपा सरकार के खिलाफ लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों की उच्च स्तरीय जांच की मांग शामिल थी।

राज्य सरकार ने इनमें से किसी भी मांग पर अब तक कोई कदम नहीं उठाया है। इसके बजाय गहलोत ने अपनी सरकार द्वारा उठाई गई सभी कल्याणकारी योजनाओं के बारे में प्रचार अभियान शुरू कर दिया है। इनके अलावा भी कई अन्य की पेशकश की जानी है।

ऐसे में किसी और हलचल की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। अनुमान यह भी लगाया जा रहा है कि पायलट अपनी अलग पार्टी बना सकते हैं (हालांकि उन्होंने ऐसी किसी भी योजना से इनकार किया है), तब परिणाम अप्रत्याशित हो सकते हैं। लेकिन यह कहना ज्यादा सही होगा कि आखिरकार सबसे बड़ा नुकसान कांग्रेस पार्टी को ही होगा।

First Published - June 9, 2023 | 10:58 PM IST

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