विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिए उनकी विकास यात्रा में सबसे बड़ा जोखिम मध्यम आय स्तर पर अटक जाना है, जिसे अर्थशास्त्री मध्यम आय जाल कहते हैं। पिछले हफ्ते जारी विश्व बैंक के एक नए अध्ययन में इस चुनौती को उजागर किया गया है। इसमें चीन, भारत, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील और वियतनाम जैसी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं सहित 108 ऐसे देशों को ‘मध्यम आय वाला देश’ कहा गया है जिनकी प्रति व्यक्ति आय 1,136 से 13,845 डॉलर के बीच है और जो अगले दो या तीन दशकों में उच्च आय वाले दर्जे में पहुंचने के लिए प्रयासरत हैं।
हालांकि, विश्व बैंक के अर्थशास्त्रियों ने वैश्विक आर्थिक गतिविधियों में 40 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाले इन देशों को आगाह किया है कि उनकी आर्थिक तरक्की का पहिया अपेक्षा के अनुरूप तेजी से गति नहीं पकड़ रहा बल्कि आय के स्तर में बढ़त के साथ सुस्त पड़ता जा रहा है।
विश्व बैंक के अनुमानों के मुताबिक (सोलो-स्वान विकास मॉडल पर आधारित) ज्यादातर मध्यम आय वाले देशों को साल 2024 से 2100 के बीच उल्लेखनीय आर्थिक सुस्ती का सामना करना पड़ेगा। यह मॉडल यह संकेत देता है कि पूंजी संचय पर अत्यधिक निर्भर विकास रणनीतियां, जो कि निम्न आय और यहां तक कि कम मध्यम आय वाले चरण में भी प्रभावी थीं, अब कम लाभ दे रही हैं।
जैसे-जैसे पूंजी की सीमांत उत्पादकता घटती जाएगी, अकेले संचय जैसे कारक पर निर्भरता उत्तरोत्तर कमजोर नतीजे दिखाने लगेगी। इसके अलावा इस शताब्दी के पहले दो दशकों में इन देशों में औसत वार्षिक आय वृद्धि करीब एक-तिहाई घट गई और यह 2000 के दशक के 5 फीसदी से घटकर 2010 के दशक में 3.5 फीसदी रह गई।
इसमें तेज सुधार की गुंजाइश भी कम दिख रही क्योंकि मध्यम आय वाले देशों को कई चुनौतियों का सामना करना होगा, जिनमें भू-राजनीतिक तनाव में बढ़त, बढ़ता संरक्षणवाद, सरकारी हस्तक्षेप को सीमित करने वाला सार्वजनिक कर्ज, बुजुर्गों की बढ़ती आबादी और ऊर्जा परिवर्तन तथा जलवायु वित्तपोषण के लिए अतिरिक्त खर्च शामिल हैं।
इस अध्ययन के अंतर्निहित निष्कर्ष इस पर भी रोशनी डालते हैं कि साल 2047 तक विकसित अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य हासिल करने की राह में भारत के सामने क्या चुनौतियां आने वाली हैं। विश्व बैंक के अनुसार, साल 2023 में 2,484.8 डॉलर प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के साथ भारत को एक निम्न मध्यम आय वाले देश की श्रेणी में रखा गया है। भारत सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है, इसके बावजूद अगर मौजूदा रुझान जारी रहे तो भी अमेरिका के एक चौथाई के बराबर भी प्रति व्यक्ति आय हासिल करने में इसे अभी 75 साल लग जाएंगे। यह अनुमान इस बात को रेखांकित करता है कि भारत के लिए आर्थिक तरक्की की राह में किस तरह की कठिन चुनौतियां आने वाली हैं और इस पर भी प्रकाश डालता है कि स्थायी विकास को सुनिश्चित करने के लिए किस तरह के रणनीतिक सुधारों की जरूरत है।
साल 2047 के लक्ष्य को हासिल करने के लिए यह जरूरी है कि भारत अपने प्रगति के मार्ग में अहम बदलाव करे, जिसके लिए गहन आर्थिक, सामाजिक और संरचनात्मक बदलाव आवश्यक होंगे। पुरानी पड़ चुकी रणनीतियों और मॉडलों की जगह लगातार नवीन और अद्यतन दृष्टिकोण को अपनाया जाए, जिनसे ऊंची उत्पादकता और लाभ हासिल हो, तो ही टिकाऊ विकास को सतत रूप से बनाए रखा जा सकता है। केवल इससे ही यह सुनिश्चित हो सकता है कि विकास की गति न केवल तेज हो बल्कि बदलती वैश्विक परिस्थितियों के अनुरूप लचीला और खुद को ढालने वाला हो।
गौर करने की बात यह भी है कि इस अध्ययन में उक्त जाल से निपटने के लिए तीन चरणों वाले दृष्टिकोण-निवेश, अंत:प्रवाह और नवाचार- (इन्वेस्टमेंट, इन्फ्यूजन और इनोवेशन यानी 3आई) पर आधारित विकास को अपनाने का सुझाव दिया है। चिली, कोरिया गणतंत्र और पोलैंड के सफल अनुभव इस 3आई रणनीति की प्रभावशीलता को दर्शाते हैं।
भारत में हाल में हुए कुछ सुधार सही दिशा में हैं, लेकिन ऐसे संरचनात्मक मसलों को दूर करने के लिए साहसिक कदम उठाने होंगे जो मध्यम से दीर्घकालिक अवधि में आर्थिक तरक्की को प्रभावित कर सकते हैं। इनमें बड़े पैमाने पर निजी निवेश को बढ़ावा देना, जलवायु परिवर्तन के लिहाज से संवेदनशील वृद्धि मॉडल का विकास, रोजगार-कौशल के बीच की खाई को दूर करना और वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं के साथ ज्यादा गहराई से एकीकरण जैसे कदम शामिल हो सकते हैं। भारत को अपने जनसांख्यिकीय लाभ का उपयोग करते हुए भारतीय राज्य के बुनियादी कामकाज सहित सभी क्षेत्रों में अगली पीढ़ी के सुधारों की शुरुआत करनी होगी।