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नौकरियों में कमी आने से कमजोर होती अर्थव्यवस्था

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 15, 2022 | 3:06 AM IST

अधिकांश लोग रोजगार के रूप में वेतन वाले कामकाज को प्राथमिकता देते हैं। इन कामों में रोजगार की शर्तें बेहतर होती हैं, वेतन भी अच्छा मिलता है। वेतनभोगी परिवारों के पास बचत का बेहतर अवसर होता है और वे अपने जीवन स्तर में भी निरंतर बेहतर सुधार करने की स्थिति में भी रहते हैं। इतना ही नहीं ऐसे परिवार उधार लेने और अपना उधार निपटाने के मामले में भी बेहतर स्थिति में होते हैं क्योंकि उनके पास स्थिर सुनिश्चित आय होती है।
असंगठित क्षेत्र के रोजगार जहां दोबारा पैदा होने लगे हैं और लॉकडाउन समाप्त होने के बाद जहां उनकी तादाद में इजाफा भी हुआ है, वहीं संगठित क्षेत्र के रोजगारों पर यह बात लागू नहीं होती है। बिना वेतन वाले रोजगार की बात करें तो उनकी तादाद 2019-20 के 31.76 करोड़ से बढ़कर जुलाई 2020 में 32.56 करोड़ हो चुकी है। यानी असंगठित क्षेत्र के रोजगार में करीब 80 लाख अर्थात 2.5 फीसदी का इजाफा हुआ है। बहरहाल, वेतन वाले रोजगारों में लॉकडाउन की अवधि में 1.89 करोड़ यानी 22 फीसदी की कमी आई। देश के शहरी इलाकों में वेतन वाले रोजगार की तादाद ग्रामीण भारत से अधिक है। सन 2019-20 में देश के 8.6 करोड़ वेतनभोगी रोजगार में से 58 फीसदी शहरी और 42 फीसदी ग्रामीण इलाकों में थे। रोजगार को हानि भी इसी अनुपात में हुई है।
शहरी इलाकों के वेतन वाले रोजगारों की बात करें तो उनमें वेतन भत्ते बेहतर होने की आशा होती है। इसके अलावा वहां काम की शर्तें बेहतर होती हैं और ग्रामीण क्षेत्रों के वेतन वाले रोजगार की तुलना में उनकी उत्पादकता भी अधिक होती है। ऐसे में शहरी क्षेत्रों के इन वेतनभोगी रोजगारों को होने वाला नुकसान अर्थव्यवस्था को खासतौर पर कमजोर करने वाला है। इसके अलावा मध्यवर्गीय परिवारों को होने वाली तात्कालिक कठिनाई अलग है।
जून 2020 में समाप्त तिमाही के सूचीबद्ध कंपनियों के वित्तीय वक्तव्य वेतनभोगी रोजगारों के बारे में कुछ जानकारी मुहैया कराते हैं। सूचीबद्ध कंपनियां बेहतर वेतन वाले रोजगार सुनिश्चित करती रही हैं। पिछले दिनों तक सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी अर्थात सीएमआईई के प्राउअस डेटा बेस में जून 2020 में समाप्त तिमाही में 1,560 कंपनियों के वित्तीय वक्तव्य उपलब्ध थे। यह आंकड़ा हर तिमाही वक्तव्य उपलब्ध कराने वाली कुल कंपनियों का करीब एक तिहाई है। आमतौर पर सभी कंपनियों के ऐसे आंकड़े तिमाही के अंत के 45 दिन के भीतर उपलब्ध होते हैं। यानी जून 2020 तिमाही के लिए ये आंकड़े 15 अगस्त तक उपलब्ध हो जाने चाहिए थे। परंतु कोविड-19 संकट के कारण कंपनियों को अपने वित्तीय वक्तव्य जारी करने के लिए 15 सितंबर तक का वक्त दिया गया। परंतु इन 1,560 कंपनियों का वेतन बिल जून 2020 तिमाही में सालाना आधार पर मात्र 2.9 फीसदी अधिक रहा। यह बीते 18 वर्ष में सबसे कमजोर वृद्धि है। इन आंकड़ों में एक उल्लेखनीय बात यह है कि विभिन्न उद्योगों के बीच काफी अंतर देखने को मिला। हम इस विषय में आगे और चर्चा करें उससे पहले एक बात जान लेना आवश्यक है कि ये परिणाम अभी भी प्रारंभिक हैं और वास्तविक तस्वीर एक महीने बाद ही सामने आएंगे। चाहे जो भी हो लेकिन प्रारंभिक आंकड़ों पर आधारित होने के बावजूद ये परिणाम एक रुझान तो दिखाते ही हैं। बैंकों के वेतन बिल में 16.6 फीसदी का इजाफा देखने को मिला जबकि सिक्युरिटीज ब्रोकिंग कंपनियों के वेतन भत्तों में 13.5 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। परंतु विनिर्माण कंपनियों के वेतन बिल में 7 फीसदी की गिरावट देखने को मिली। सेवा क्षेत्र के मामले में यह मिलाजुला रहा।
विनिर्माण की बात करें तो कपड़ा एवं वस्त्र क्षेत्र को सबसे अधिक नुकसान पहुंचा है। उसके वेतन बिल में 29 फीसदी की गिरावट आई। यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां श्रम की भागीदारी बहुत अधिक है। ऐसे में इस क्षेत्र के वेतन बिल में भारी गिरावट का मतलब है इस उद्योग में रोजगार का काफी नुकसान हुआ है। यही बात चमड़ा उद्योग पर भी लागू होती है। भारी तादाद में श्रमिकों की जरूरत वाले इस उद्योग के वेतन बिल में जून 2020 तिमाही में 22.5 फीसदी की गिरावट आई। वाहन कलपुर्जा उद्योग के वेतन बिल में 21 फीसदी और स्वयं वाहन उद्योग के वेतन बिल में 18.6 फीसदी की कमी देखने को मिली। ध्यान रहे कि ये सभी क्षेत्र ऐसे हैं जहां श्रमिकों की अत्यधिक आवश्यकता होती है।
सेवा क्षेत्र की बात करें तो वहां पर्यटन उद्योग का वेतन बिल 30 फीसदी, होटल और रेस्तरां का वेतन बिल 20.5 फीसदी, सड़क परिवहन का 27.6 फीसदी, शिक्षा का 28 फीसदी कम हुआ। अचल संपत्ति क्षेत्र के वेतन बिल में 21 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। जबकि दूरसंचार क्षेत्र के वेतन बिल में 10.7 फीसदी की बढ़ोतरी देखने को मिली।
विभिन्न उद्योगों के बीच यह अंतर काफी अधिक है। हालांकि विशुद्ध परिणाम के मुताबिक वेतन बिल में बहुत मामूली इजाफा ही हुआ है जिससे प्रतीत होता है कि रोजगारों में कमी भी बहुत अधिक नहीं हुई है लेकिन आंकड़ों पर गौर करें तो 2020-21 की पहली तिमाही में कई क्षेत्रों में बहुत बड़े पैमाने पर रोजगार को नुकसान पहुंचा है। कंज्यूमर पिरामिड्स हाउस होल्ड सर्वे अर्थात सीपीएचएस के अनुमान के मुताबिक इस तिमाही में करीब 1.7 करोड़ लोगों ने अपने रोजगार गंवाए हैं। हम सभी यह बात जानते हैं कि जुलाई महीने में हालात बद से बदतर ही हुए हैं।

First Published : August 23, 2020 | 11:13 PM IST