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Editorial: E20 लक्ष्य समय से पहले हासिल, पर उठे सवाल; फूड बनाम फ्यूल की बहस तेज

ई20 ईंधन देश की 2070 तक विशुद्ध शून्य उत्सर्जन लक्ष्य हासिल करने तथा आयातित कच्चे तेल पर देश की निर्भरता कम करने की राष्ट्रीय प्रतिबद्धता के अनुरूप

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- September 14, 2025 | 10:19 PM IST

इस वर्ष मोटर वाहनों के ईंधन में 20 फीसदी एथनॉल मिलाने (ई20 ईंधन) का लक्ष्य निर्धारित समय से पांच साल पहले हासिल करने की घोषणा की गई है। इसे आगे बढ़ाकर ई27 तक ले जाने का इरादा जाहिर किया गया है जो स्वागतयोग्य है। यह कदम ऐसे समय में आया है जब भारत के ताप बिजली घरों के कारण ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन तेजी से बढ़ रहा है और शहरों में प्रदूषण की समस्या एक राष्ट्रीय स्वास्थ्य संकट में तब्दील होती जा रही है। ई20 ईंधन देश की 2070 तक विशुद्ध शून्य उत्सर्जन लक्ष्य हासिल करने तथा आयातित कच्चे तेल पर देश की निर्भरता कम करने की राष्ट्रीय प्रतिबद्धता के अनुरूप है।

सरकारी आंकड़े बताते हैं कि एथनॉल आपूर्ति वर्ष (ईएसवाई) 2014-15 में जब एथनॉल मिश्रण केवल 1.5 फीसदी था, से लेकर 2024-25 तक सरकारी तेल कंपनियों ने 1,44,087 करोड़ रुपये मूल्य की विदेशी मुद्रा बचाई है। यह करीब 2,45,000 टन कच्चे तेल के बराबर है ​और इससे अनुमानत: इतने कार्बन डाईऑक्साइड की बचत हुई जो शायद 30 करोड़ वृक्ष लगाने से बचता।

नीति आयोग के एक अध्ययन के अनुसार, जीवन-चक्र उत्सर्जन के आधार पर गन्ना और मक्के से बने एथनॉल से होने वाला ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पेट्रोल की तुलना में क्रमशः 65 फीसदी और 50 फीसदी कम हैं। एथनॉल उत्पादन किसानों के लिए भी लाभकारी सिद्ध हो सकता है, क्योंकि यह मक्का, गन्ना और धान की पराली के लिए एक स्थायी बाजार उपलब्ध कराता है। इस उपलब्धि के साथ भारत अब ब्राजील, अमेरिका और यूरोप जैसे विशिष्ट देशों के समूह में शामिल हो गया है, जो पेट्रोल में एथनॉल का मिश्रण करते हैं।

उपभोक्ताओं के नजरिये से देखें तो इस बदलाव का बेहतर प्रबंधन किया जाना चाहिए था। हालांकि ई20 चुनिंदा पंपों पर ही उपलब्ध था लेकिन अब यह देश के करीब 90,000 पंपों पर इकलौता विकल्प है। आश्चर्य नहीं है कि माइलेज और एक्सिलरेशन पर ई20 के प्रभाव को लेकर बहुत बड़े पैमाने पर असमंजस के हालात बन गए हैं। यूरोप और अमेरिका में वाहन चालकों को यह विकल्प दिया गया है कि वे अपने वाहन की उम्र के मुताबिक ई10, ई15 या ई20 ईंधन डलवाएं।

2020 में सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स ने कहा कि ई20 के साथ ई10 ईंधन का विकल्प भी उपलब्ध कराया जाना चाहिए ताकि वाहनों का बेहतरीन प्रदर्शन सुनिश्चित हो सके। उसने कहा कि रबर के हिस्से या गास्केट आदि को बदलना एक बड़ा काम होगा। भारत में अधिकांश कार इंजनों को ई10 ईंधन के लिए तैयार किया जाता है। केवल एक अप्रैल 2025 के बाद बने इंजन ही ई20 ईंधन के लिए बने हैं। वाहन निर्माताओं ने पहले यह संकेत दिया था कि वाहनों के प्रदर्शन पर असर पड़ सकता है। अब लगता है कि उन्होंने सरकार के नजरिये को स्वीकार कर लिया है और वे उपभोक्ताओं को आवश्स्त कर रही हैं कि वाहनों के प्रदर्शन पर पड़ने वाला असर बहुत मामूली है। उद्योग जगत के विचारों में यह भिन्नता शायद ही चिंताओं को दूर कर सके।

लंबी अवधि में भले ही हवा की गुणवत्ता या किसानों की आय के रूप में जैव ईंधन के व्यापक लाभ तात्कालिक परिवर्तन की कीमत पर भारी पड़ें लेकिन इस नीति से अनचाहे परिणाम भी जुड़े हुए हैं। इनमें से एक है खाद्यान्न बनाम ईंधन की बहस क्योंकि किसानों को जैव ईंधन संबंधी फसलें उगाने पर खाद्यान्न फसलों की तुलना में बेहतर आय हासिल हो रही है। उदाहरण के लिए मक्के की कीमतें जैव ईंधन की मांग बढ़ने के साथ ही दो सालों में 1,800 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर 2,500 रुपये प्रति क्विंटल हो गई हैं। इससे किसानों की आय तो बढ़ी है लेकिन पोल्ट्री और पालतु पशुओं के खाद्यान्न पर इसका विपरीत असर हुआ है।

मक्के के उत्पादन का 70 फीसदी इसी पशु आहार में जाता है। इसके अलावा मोटे अनाज तथा तिलहन की खेती की जमीन में अब मक्का उगाया जा रहा है।
इसके अलावा अन्य जैव ईंधन वाली फसलों यानी चावल और गन्ने की खेती मौसम के लिहाज से बहुत संवेदनशील होती है। पंजाब, हरियाणा तथा महाराष्ट्र में उनका रकबा बढ़ने का देश की जल सुरक्षा पर बुरा असर हो सकता है। इन प्रतिस्पर्धी मांगों का प्रबंधन करना होगा तथा सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि खाद्य और जल सुरक्षा की कीमत पर ईंधन सुरक्षा न हो।

First Published : September 14, 2025 | 10:19 PM IST