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बैंकिंग साख: मुद्रास्फीति नियंत्रण का वादा पूरा करेंगे दास!

ऐसा लगता है कि दास तब तक चैन की सांस नहीं लेंगे जब तक वह महंगाई की दर 4 प्रतिशत के लक्षित स्तर तक लाने का अपना वादा पूरा नहीं कर लेते हैं।

Last Updated- February 09, 2024 | 9:55 PM IST
बैंकिंग साख: मुद्रास्फीति नियंत्रण का वादा पूरा करेंगे दास!, Das will fulfill the promise of controlling inflation!

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने तीन दिन की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक के आखिर में एक बार फिर महंगाई को नियंत्रित करने की अपनी प्रतिबद्धता की घोषणा की। अपने बयान में उन्होंने कहा कि मुद्रास्फीति को टिकाऊ आधार पर 4 प्रतिशत के लक्ष्य के अनुरूप लाने के लिए मौद्रिक नीति ऐसी होनी चाहिए कि कीमतें बढ़ें लेकिन उनकी बढ़ने की दर धीमी हो।  

एमपीसी ने सख्त नीति अपनाने और आर्थिक प्रोत्साहन वापस लेने पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला लेते हुए मई 2020 और फरवरी 2023 के बीच नीतिगत दर में 250 आधार अंकों की वृद्धि के साथ इसे 4 प्रतिशत से बढ़ाकर 6.5 प्रतिशत करने का फैसला किया ताकि मुद्रास्फीति से जुड़ी उम्मीदों को आधार मिले।

गुरुवार की सुबह अपने 39 मिनट के वक्तव्य को करीब एक सांस में पढ़ते हुए दास ने करीब आधा घंटे बाद पहली बार पानी का घूंट पिया। ऐसा लगता है कि दास तब तक चैन की सांस नहीं लेंगे जब तक वह महंगाई की दर 4 प्रतिशत के लक्षित स्तर तक लाने का अपना वादा पूरा नहीं कर लेते हैं।

निश्चित रूप से 2022 की गर्मी के मौसम के बाद से मौद्रिक नीति के तहत वृद्धि की तुलना में मुद्रास्फीति को प्राथमिकता दी जा रही है। अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा, ‘काम अभी पूरा नहीं हुआ है और हमें नई नकदी आपूर्ति से जुड़ी चुनौतियों को लेकर सतर्कता बरतनी चाहिए क्योंकि इससे अब तक की हुई प्रगति नाकाम हो सकती है।’

अब तक लगातार छठी एमपीसी बैठक में भी रीपो दर में कोई बदलाव नहीं हुआ है और यह 6.5 प्रतिशत के स्तर पर है और आरबीआई का रुख आर्थिक प्रोत्साहन को खत्म करना है। हालांकि मौद्रिक नीति की कहानी में एक नया मोड़ आया है। आरबीआई ने अपने रुख को नकदी से अलग करने की कोशिश की है। हालांकि यह रुख केंद्रीय बैंक के नकदी से जुड़े रुख को प्रतिबिंबित नहीं करता है बल्कि यह नीतिगत दर के स्वाभाविक परिणाम को दर्शाता है।

एमपीसी के बयान में कहा गया है कि नीतिगत रुख, ब्याज दर के लिहाज से है जो मौजूदा ढांचे में मौद्रिक नीति का प्रमुख जरिया है। ऐसे में आर्थिक प्रोत्साहन वापस लिए जाने के कदम को मुद्रास्फीति के लक्षित 4 प्रतिशत के स्तर से ऊपर चले जाने और आरबीआई द्वारा टिकाऊ आधार पर इस लक्ष्य के स्तर पर वापस लाने के संदर्भ में देखा जाना चाहिए। जहां तक नकदी से जुड़ी परिस्थितियों का संबंध है, यह कई बाहरी कारकों से (सरकार की नकदी आरबीआई के पास है) प्रेरित होता है।

सरकार ने खर्च करना शुरू कर दिया है जिससे अब तंत्र में नकदी बढ़ेगी।  आरबीआई भी नकदी प्रबंधन में चुस्त और लचीला बना रहेगा। दास ने यह आश्वासन भी दिया है कि केंद्रीय बैंक मौद्रिक बाजार की ब्याज दरों को नियंत्रित करने के लिए सभी तरह के उपाय करेगा ताकि अस्थायी और दीर्घकालिक नकदी का संतुलन बनाया जा सके।  इसका अर्थ यह है कि आरबीआई रीपो दर पर नकदी का संचार करता रहेगा और अस्थायी उतार-चढ़ाव को कम करने के लिए परिवर्तनीय रिवर्स दर नीलामी के माध्यम से इसे वापस ले लेगा।

संयोग की बात है कि सरकारी नकदी के समायोजन के बाद, बैंकिंग तंत्र में  संभावित नकदी अब भी अधिशेष के स्तर में है। यह बैंकों के नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) या जमा राशि के उस हिस्से में कटौती की किसी भी संभावना को समाप्त कर देता है जिसे वाणिज्यिक बैंकों को नकदी कम करने के लिए (वर्तमान में 4 प्रतिशत) केंद्रीय बैंक के पास रखने की आवश्यकता होती है।

चालू वर्ष के लिए आरबीआई के मुद्रास्फीति अनुमान में कोई बदलाव नहीं है। यह 5.4 प्रतिशत के स्तर पर है। अगले साल सामान्य मॉनसून रहने की संभावना के चलते वित्त वर्ष 2025 में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) से जुड़ी मुद्रास्फीति 4.5 प्रतिशत होगी जो पहली तिमाही के लिए 5 प्रतिशत, दूसरी तिमाही के लिए 4 प्रतिशत, तीसरी के लिए 4.6 प्रतिशत और चौथी तिमाही के लिए 4.7 प्रतिशत होगी।

जब बात वृद्धि की आती है तब आरबीआई काफी उत्साहित नजर आ रहा है। वित्त वर्ष 2025 के लिए, वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि का अनुमान 7 प्रतिशत है, जो लगातार चौथे वर्ष 7 प्रतिशत (या अधिक) वृद्धि के संकेत देता है। चालू वर्ष के लिए अनुमान 7.3 प्रतिशत है। वित्त मंत्रालय ने वित्त वर्ष 2025 के लिए सांकेतिक जीडीपी वृद्धि अनुमान 10.5 प्रतिशत के स्तर पर आंका है।

आरबीआई की नीति पर विश्लेषकों की राय बंटी हुई। क्या इस नीति का मुख्य उद्देश्य महंगाई को नियंत्रित करना है, भले ही इसके लिए आर्थिक वृद्धि की रफ्तार कम क्यों न करनी पड़े या फिर इसकी प्राथमिकता आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देना है?

दास ने बेहद सावधानी से आगे की कोई भविष्यवाणी करने से परहेज किया है। मैं इसे उनकी ‘ठहरकर इंतजार करने’ की नीति कहूंगा। दरअसल आरबीआई पर बहुत कुछ करने का दबाव नहीं था क्योंकि भारत अधिकांश वृहद आर्थिक मानकों के लिहाज से अच्छी स्थिति में है। देश का ऋण और जीडीपी अनुपात ज्यादातर अर्थव्यवस्थाओं से बेहतर है। इसके अलावा चालू खाता घाटा भी  वित्त वर्ष 2024 की दूसरी तिमाही में जीडीपी के एक प्रतिशत से कम हो गया है जो एक साल पहले 3.8 प्रतिशत था। 

स्थानीय मुद्रा, उभरती अर्थव्यवस्थाओं और यहां तक की कुछ विकसित अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में स्थिर है। इसके अलावा विदेशी पोर्टफोलियो निवेश अब तक इस वर्ष 32.4 अरब डॉलर रहा है जबकि पिछले साल करीब 6.7 अरब डॉलर की पूंजी निकल गई। इसके अलावा मुद्रास्फीति में भी गिरावट के रुझान है लेकिन वृद्धि मजबूत बनी हुई है।

अब सवाल यह है कि हम अगली दर कटौती कब देखेंगे? आरबीआई इसको लेकर किसी हड़बड़ी में नहीं होगा, खासतौर पर तब जब यह वृद्धि की संभावनाओं को लेकर आश्वस्त न हो। मौद्रिक नीति की बैठक के बाद संवाददाता सम्मेलन में दास ने इस बात का जिक्र किया कि कैसे दुनिया के कई हिस्सों में दर कटौती के संदर्भ में बाजार की भूमिका है। हमें मौजूदा चक्र में अमेरिका के फेडरल रिजर्व द्वारा पहली दर कटौती का इंतजार करना होगा। यदि भू-राजनीतिक परिदृश्य में कोई आश्चर्यजनक बदलाव नहीं आता है और मॉनसून सामान्य रहता है तब हम साल की दूसरी छमाही में यह कटौती देख सकते हैं।

First Published - February 9, 2024 | 9:55 PM IST

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