कृषि मंत्रालय की ‘वन डिस्ट्रिक्ट वन फोकस प्रॉडक्ट'(ओडीओएफपी) योजना, सरकार के अन्य विकास कार्यक्रमों से अलग है क्योंकि इसमें कई विशिष्ट और नवाचारी बातें शामिल हैं। योजना में किसी भी जिले के एक चर्चित कृषि उत्पाद को चुनकर उसकी समूची मूल्य शृंखला में सुधार किया जाएगा। उस विशिष्ट उत्पाद के उत्पादन से खपत तक यह काम किया जाएगा। प्रसंस्करण के जरिये न केवल चिह्नित उत्पादों का मूल्य सुधारा जाएगा बल्कि योजना के तहत भंडारण, लॉजिस्टिक्स और विपणन की अधोसंरचना भी बेहतर बनाई जाएगी। इस दौरान ब्रांड तैयार करने और निर्यात पर भी ध्यान केंद्रित किया जाएगा। ओडीओएफपी के लिए कोई अतिरिक्त फंड नहीं बनाया गया है। परंतु इस योजना को तमाम अन्य आधिकारिक योजनाओं के संसाधन मिलेंगे। इनमें राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, परंपरागत कृषि विकास योजना, बागवानी विकास मिशन और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन जैसी प्रमुख योजनाएं शामिल हैं। इससे भी अहम बात यह है कि इन उत्पादों को 10,000 करोड़ रुपये की पीएम-एफएमई (प्रधानमंत्री फॉर्मलाइजेशन ऑफ माइक्रो-फूड-प्रोसेसिंग एंटरप्राइजेज) से भी मदद मिलेगी। यह योजना गत वर्ष शुरू की गई है और इसका लक्ष्य है सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण से जुड़ी पहलों को बढ़ावा देना। यह योजना कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने की दिशा में एक सराहनीय नीतिगत बदलाव है। मौजूदा संसाधनों को व्यापक क्षेत्र में थोड़ा-थोड़ा बांटने से बेहतर इस योजना का इरादा चुनिंदा क्षेत्रों और उन उत्पादों पर ध्यान केंद्रित करने पर है जिनमें वाकई तीव्र विकास की व्यापक संभावनाएं हैं। जाहिर तौर पर इरादा यही है कि विभिन्न विकास कार्यक्रमों के समन्वय के साथ ग्रामीण इलाकों में अतिरिक्त रोजगार और आय तैयार की जाए। योजना के तहत जिन उत्पादों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा वे ऐसे उत्पाद हैं जो पहले ही बाजार में अच्छी पहचान और पैठ रखते हैं। इस बात का फायदा उठाते हुए उत्पादकों, प्रसंस्करण करने वालों, कारोबारियों और निर्यातकों आदि सभी अंशधारकों के फायदे के लिए जरूरी कदम उठाए जा सकते हैं। ये ऐसे लोग हैं जिन्हें इनके उत्पादन, निर्माण या खेती वाले जिलों का ब्रांड ऐंबेसडर बनाया जा सकता है। नागपुर के संतरे, मुजफ्फरपुर की लीची और आगरा का पेठा इसके उदाहरण हैं।
देश के सभी 728 जिलों में पहले ही कृषि, बागवानी, पोल्ट्री, डेरी, मछलीपालन, मधुमक्खीपालन और ऐसे अन्य क्षेत्रों को चिह्नित किया जा चुका है। उनको प्रोत्साहित करने के लिए क्लस्टर व्यवस्था अपनाई जाएगी जहां उद्यमों को सहायता सेवाओं के लिए साझा बुनियादी ढांचे के इस्तेमाल की छूट होगी ताकि लागत कम की जा सके और बेहतर उत्पादों को उच्च मूल्य दिलाना सुनिश्चित किया जा सके। राज्य सरकारों से भी आशा है कि वे मौजूदा योजनाओं की मदद से ओडीओएफपी की सहायता करेंगी। केंद्र सरकार ने इस योजना के अधीन वित्त वर्ष 2022 तक 600 करोड़ डॉलर मूल्य की वस्तुओं का निर्यात करने का लक्ष्य तय किया है। बहरहाल, ओडीओएफपी का सफल क्रियान्वयन करने के लिए चयनित उत्पाद के उत्पादकों और प्रसंस्करण करने वालों, कारोबारियों तथा अंतिम उपभोक्ताओं के बीच साझा सहमति लेकिन वैधानिक मान्यता वाले लिंकेज के साथ विपणन सुनिश्चित करना होगा। परंतु यह योजना एक ऐसे समय पर आई है जब कृषि विपणन सुधारों से जुड़े नए कानूनों को स्थगित किया गया है और कई किसान बहकावे में आकर निजी क्षेत्र पर विश्वास करने को तैयार ही नहीं हैं।
सरकार को चाहिए कि वह किसानों या चयनित उत्पाद के उत्पादकों को भरोसे में ले और उन्हें नए कानूनों के लाभ से अवगत कराते हुए उनकी शंका दूर करे। उसे राज्यों से भी कहना होगा कि वे अपने विपणन कानूनों में बदलाव करें ताकि किसानों और उनकी उपज की निजी खरीद करने वालों को मंडी के बाहर लेनदेन की अनुमति मिल सके।
