वित्तीय बाजारों के प्रतिभागियों के अनुमान के अनुरूप ही केंद्रीय बैंक की मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने गुरुवार को नीतिगत रीपो दर को 6.5 फीसदी पर अपरिवर्तित रखा। परिणामस्वरूप स्थायी जमा सुविधा दर और सीमांत स्थायी सुविधा दर भी अपरिवर्तित रही।
एमपीसी ने मौजूदा चक्र में नीतिगत दरों में 2.5 फीसदी अंक का इजाफा किया है। नीतिगत दरें तय करने वाली समिति ने नीतिगत रुख को अपरिवर्तित रहने देकर सही कदम उठाया है।
बाजार के कुछ हिस्सों में अनुमान लगाया जा रहा था कि एमपीसी अपना रुख बदलकर निरपेक्ष कर देगी। बहरहाल, ऐसे बदलाव से यह उम्मीद पैदा हो सकती थी कि एमपीसी आने वाले महीनों में नीतिगत दरों में कमी कर सकती है और वह केंद्रीय बैंक के नीतिगत उद्देश्यों से दूर जा सकती है।
यद्यपि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति की दर में कमी आई है लेकिन एमपीसी का आकलन है कि यह दर चालू वित्त वर्ष में 5 फीसदी के स्तर से औसतन ऊपर रहेगी। समिति ने हालिया कमी के बावजूद उचित ही मुद्रास्फीति संबंधी अनुमानों में कमी नहीं की।
अप्रैल में मुद्रास्फीति की दर कम होकर 4.7 फीसदी रह गई थी। अब एमपीसी का अनुमान है कि 2023-24 में मुद्रास्फीति की औसत दर 5.1 फीसदी रहेगी जबकि पहले इसके 5.2 फीसदी रहने का अनुमान जताया गया था। मौजूदा अनिश्चितताओं को देखते हुए कहा जा सकता है कि यह अनुमान समझदारी भरा है।
उदाहरण के लिए मॉनसून के जहां सामान्य रहने का अनुमान है, वहीं अल नीनो प्रभाव को लेकर चिंता का माहौल है जो बारिश और कृषि उत्पादन को प्रभावित कर सकता है। ये बातें मुद्रास्फीति पर भी असर डालेंगी।
चाहे जो भी हो, मुद्रास्फीति के समग्र हालात को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि नीतिगत दरें अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच चुकी हैं। खाद्य कीमतों आदि के कारण अगर मुद्रास्फीति की दर में कोई अप्रत्याशित इजाफा होता है तो उस पर केंद्रीय बैंक ध्यान देगा। खासतौर पर इसलिए कि चालू वर्ष में वास्तविक नीतिगत दर अपेक्षित मुद्रास्फीति दर से करीब 1.4 फीसदी ऊपर है।
बहरहाल, ब्याज में कमी के लिए दरों में कटौती की प्रतीक्षा कर रहे आम परिवारों और कारोबारियों को अभी प्रतीक्षा करनी होगी। अनुमानित मुद्रास्फीति की दर अभी भी 4 फीसदी के लक्ष्य से अधिक है। इस संदर्भ में रिजर्व बैंक का संदेश स्पष्ट है। रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने उचित ही कहा, ‘हमें 4 फीसदी मुद्रास्फीति के अपने प्राथमिक लक्ष्य की ओर बढ़ना है। यह अक्सर सफर का अंतिम चरण होता है जो सबसे कठिन होता है।’
ऐसे में आरबीआई को तब तक नीतिगत दर को थामे रखना होगा जब तक कि वह टिकाऊ ढंग से यह लक्ष्य हासिल नहीं कर लेता। उसे नकदी के हालात का भी प्रबंधन करना होगा ताकि वित्तीय हालात में अपरिपक्व ढंग से आने वाली सहजता से बचा जा सके।
सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि की बात करें तो निजी क्षेत्र के पूर्वानुमान जताने वालों के उलट एमपीसी ने चालू वित्त वर्ष के लिए 6.5 फीसदी का अपना अनुमान बरकरार रखा है। हालांकि तिमाही आधार पर अनुमानों में फेरबदल की गई। उच्च तीव्रता वाले संकेतकों मसलन पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स उत्साह बढ़ाने वाले नजर आ रहे हैं लेकिन यह देखा जाना होगा कि आगे क्या हालात बनते हैं।
वृद्धि के समक्ष मौजूद वैश्विक जोखिमों को देखें तो 6.5 फीसदी की वास्तविक वृद्धि हासिल करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। इसके अलावा अनुमान बताते हैं कि वर्ष के दौरान वृद्धि की गति पर असर पड़ने वाला है और पहली तिमाही के 8 फीसदी की तुलना में चौथी तिमाही में 5.7 फीसदी वृद्धि का अनुमान जताया गया है जो चिंतित करने वाली बात है।
बहरहाल इस संदर्भ में सरकार के नीतिगत हस्तक्षेप अहम होंगे। केंद्रीय बैंक अगर मुद्रास्फीति का लक्ष्य हासिल करने पर केंद्रित रहे तो बेहतर होगा।