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राजद्रोह कानून में संशोधन से जुड़ी चिंता फिलहाल टली

Last Updated- May 14, 2023 | 8:06 PM IST
Supreme Court

केंद्र सरकार ने हाल ही में उच्चतम न्यायालय को बताया था कि उसने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124ए की जांच प्रक्रिया शुरू कर दी है जो राजद्रोह को अपराध श्रेणी में डालती है। केंद्र की ओर से पेश हुए भारत के अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा कि धारा 124ए की समीक्षा पर विचार-विमर्श अग्रिम चरण में है।

उन्होंने पीठ से अनुरोध किया कि वह इस मामले को जुलाई या अगस्त के अंत में संसद के मॉनसून सत्र के बाद सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करे। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला के पीठ ने अटॉर्नी जनरल की दलीलों पर गौर किया और मामले की सुनवाई अगस्त में तय की।

इससे पहले उच्चतम न्यायालय ने आदेश दिया था कि राजद्रोह पर कानून को तब तक स्थगित रखा जाए जब तक कि सरकार इसकी समीक्षा करने की प्रक्रिया पूरी नहीं कर लेती। उसने केंद्र सरकार और राज्यों से धारा 124ए के तहत कोई भी मामला दर्ज नहीं करने के लिए कहा था। अदालत ने कहा था कि यदि भविष्य में ऐसे मामले दर्ज किए जाते हैं तब पक्षकार अदालत का रुख करने के लिए स्वतंत्र होंगे और अदालत को इन मामलों का तेजी से निपटारा करना होगा।

अदालत के आदेश की कई मानवाधिकार और नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं ने सराहना की है। हालांकि, वकीलों का कहना है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अन्य अधिकारों के मौलिक अधिकार पर राजद्रोह कानून का उपयोग और दुरुपयोग एक तलवार की तरह लटका हुआ है।

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उच्चतम न्यायालय में वरिष्ठ वकील और नागरिक अधिकारों के वकील संजय हेगड़े ने कहा, ‘आदेश के बावजूद FIR दर्ज की गई है लेकिन आगे कोई कार्रवाई नहीं की गई है। मैं समझता हूं कि जांच पूरी हो गई है और आरोप पत्र तैयार किए गए हैं, लेकिन कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है। इसलिए, यह एक खतरे की तरह मंडरा रहा है। अगर उच्चतम न्यायालय की रोक कभी हटती है तब तुरंत गिरफ्तारियां होंगी। कानून बहुत हद तक वहां है।’

124ए पर सरकार का नजरिया शायद ही किसी से छिपा हो। जब 2019 के आम चुनावों से पहले कांग्रेस ने धारा 124ए को खत्म करने को अपने एजेंडे में शामिल किया तब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इसकी कड़ी आलोचना की।

अप्रैल 2019 में गुजरात में एक चुनावी रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘क्या जो लोग देश को टुकड़े-टुकड़े (टुकड़ों) में तोड़ना चाहते हैं, वे राष्ट्र-विरोधी नहीं हैं? कांग्रेस अब कह रही है कि वे राजद्रोह कानून को निरस्त कर देंगे। क्या हमें 125 साल पुरानी पार्टी से ऐसी उम्मीद करनी चाहिए?’

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने यमुनानगर में एक रैली में कहा, ‘कांग्रेस राजद्रोह कानून को खत्म करना चाहती है और सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम में संशोधन करना चाहती है। इस तरह के कदम से राष्ट्र की अखंडता को गहरा धक्का लगेगा। हम उन लोगों के खिलाफ एक मजबूत कानून लाएंगे जो देश को तोड़ना चाहते हैं।’

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क्या है पृष्ठभूमि?

पिछले साल अक्टूबर में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हरियाणा के सूरजकुंड में सभी राज्यों के गृह मंत्रियों की बैठक बुलाई थी। ‘चिंतन शिविर’ कहे जाने वाली इस बैठक में शाह का उद्देश्य कानून व्यवस्था के दृष्टिकोण के लिहाज से केंद्र सरकार की सोच को व्यक्त करना था, जिसमें इसे संचालित करने वाले कानूनी ढांचे भी शामिल थे जैसे कि दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC) और भारतीय दंड संहिता (IPC)।

अपने उद्घाटन भाषण में शाह ने कहा, ‘यह चिंतन शिविर साइबर अपराध, मादक पदार्थों, सीमा पार आतंकवाद, राजद्रोह और इस तरह के अन्य अपराधों से निपटने के लिए एक संयुक्त योजना बनाने में मदद करेगा। CRPC और IPC में सुधार के संबंध में विभिन्न सुझाव मिले हैं। मैं उस पर गौर कर रहा हूं और हमने उसमें काफी वक्त भी दिया है। हम जल्द ही संसद में CRPC, IPC के नए मसौदे पेश करेंगे।’

शाह ने 2020 में CRPC और IPC की समीक्षा के लिए सरकार द्वारा गठित एक समिति का जिक्र भी किया जिसकी अध्यक्षता दिल्ली में मौजूद राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के कुलपति जी एस वाजपेयी कर रहे थे, जिसमें वकील महेश जेठमलानी और अन्य सदस्य शामिल थे। इसमें उन तरीकों की सिफारिश करने की बात की गई जिनसे आधुनिक भारत की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए देश की आपराधिक न्याय प्रणाली को अद्यतन किया जा सकता है। समिति ने तब से अपनी सिफारिशें दी हैं लेकिन उसके बारे में बहुत कम जानकारी है।

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सरकार पर राजद्रोह को खत्म करने या इसे अपराध की श्रेणी से बाहर करने का दबाव बढ़ रहा है। उच्चतम न्यायालय के आदेश के तुरंत बाद केंद्र और राज्य सरकारों के साथ काम करने वाले अखिल भारतीय नागरिक सेवाओं और केंद्रीय सेवाओं के 108 पूर्व अधिकारियों के एक संवैधानिक आचार समूह द्वारा हस्ताक्षरित एक बयान में कहा गया, ‘धारा 124ए से संबंधित मामलों में दोषसिद्धि की कम दर वास्तव में जांच और मुकदमे के दौरान किए गए दावों पर गंभीर संदेह बढ़ाती है और इससे यह भी पता चलता है कि इस तरह के कानूनों का वास्तविक मकसद निरंकुश शासकों को अपने प्रतिस्पर्धियों को दबाने और जनता की राय को नियंत्रित करने के लिए एक ताकतवर हथियार पाना है।’

इस बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में पूर्व कैबिनेट सचिव के एम चंद्रशेखर, पूर्व रॉ प्रमुख ए एस दुलत, पूर्व कपड़ा सचिव, वजाहत हबीबुल्ला (प्रथम मुख्य सूचना आयुक्त), पूर्व गृह सचिव जी के पिल्लै, सिक्किम के पूर्व पुलिस महानिदेशक अविनाश मोहनाने और पूर्व अतिरिक्त सचिव राणा बनर्जी शामिल थे।

First Published - May 14, 2023 | 7:33 PM IST

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