एडटेक (प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से शिक्षा प्रदान करने वाला क्षेत्र) की दिग्गज कंपनी बैजूस के विविध अंशधारक असाधारण आम बैठक (ईजीएम) के जरिये कंपनी के संस्थापक सीईओ बैजू रवींद्रन और उनके परिवार को कारोबार से बाहर करना चाहते हैं।
बैजूस विदेशी मुद्रा संबंधी कानूनों के उल्लंघन के लिए प्रवर्तन निदेशालय की जांच का सामना कर रही है। कंपनी ने वित्त वर्ष 22 की वित्तीय जानकारी काफी देरी से यानी नवंबर 2023 में दी और उसने 5,298 करोड़ रुपये के राजस्व के मुकाबले 8,245 करोड़ रुपये का घाटा होने की बात कही। इससे पहले वित्त वर्ष 21 में कंपनी ने 2,298 करोड़ रुपये के राजस्व के मुकाबले 4,558 करोड़ रुपये के घाटे की बात कही थी।
कंपनी के खिलाफ अमेरिका में भी कानूनी मामला चल रहा है जहां देनदारों ने उसे 1.2 अरब डॉलर की वसूली के लिए अदालत में चुनौती दी है। कंपनी की अमेरिकी अनुषंगी खुद को दिवालिया घोषित कर चुकी है। खबर है कि कंपनी ने अपने आधे कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया है। एक वक्त कंपनी में 60,000 कर्मचारी थे। जिन कर्मचारियों की नौकरी बची हुई है उनका वेतन चुकाने में मुश्किल हो रही है।
जनवरी 2024 में कंपनी ने 20 करोड़ डॉलर की राशि जुटाने के लिए राइट इश्यू पेश किया था। उसका निहित मूल्यांकन 22.5 करोड़ से 25 करोड़ डॉलर के बीच था। यह राशि मार्च 2022 के कंपनी के 22 अरब डॉलर के अधिकतम मूल्यांकन से बहुत कम है। बैजूस ने अधिग्रहण और विस्तार के प्रयासों में 2.5 अरब डॉलर की राशि व्यय की और अब उसे कर्मचारियों का वेतन चुकाने में भी मुश्किल हो रही है।
जिन निवेशकों ने आरंभ में कंपनी में खूब निवेश किया अब उन्होंने अपने प्रतिनिधियों को बोर्ड से हटा लिया है। अंकेक्षक डेलॉयट ने भी पद छोड़ दिया है। ऐसे आरोप हैं कि रवींद्रन परिवार ने कंपनी के बेहतर दिनों में बाजार से इतर सौदों में कंपनी में अपना काफी हिस्सा बेच दिया।
एक समय देश या शायद दुनिया की सबसे बड़ी एडटेक यूनिकॉर्न (ऐसी स्टार्टअप कंपनी जिसका मूल्यांकन एक अरब डॉलर से अधिक हो) रही बैजूस ने दो साल के भीतर अपना 99 फीसदी मूल्यांकन गंवा दिया। तकनीकी और स्टार्टअप की दुनिया में यह सब होता रहता है, हालांकि ये कंपनियां शायद ही कभी उतनी शानदार होती हों जैसी दिखती हैं।
परंतु बैजूस ने एक ब्रांड बनाने में बहुत अधिक धनराशि खर्च की। उसने क्रिकेट की इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) और फुटबॉल विश्व कप को प्रायोजित किया। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि कंपनी का नाम घर-घर में जाना जाने लगा था। इसलिए उसके नाटकीय पतन पर भी सबकी नजर है।
तकनीकी जगत में भी घपले और घोटाले होते हैं। सत्यम और थेरानॉस का मामला ध्यान में आता है। ऐसे में इसमें कुछ भी अस्वाभाविक नहीं है। हम एडुकॉम्प के पतन के रूप में ऐसा ही एक मामला देख चुके हैं जो थोड़ा छोटे पैमाने पर घटित हुआ था। वह भी एक सूचीबद्ध एडटेक कंपनी थी जिसने दिवालिया होने के पहले कई ऊंचाइयां छुईं।
यदि कुछ असामान्य है तो वह उद्योग है जिसमें बैजूस और एडुकॉम्प ने इस तरह अपनी जगह बनाई। सामान्य समझ के मुताबिक शिक्षा उद्योग नहीं है और स्कूल और कॉलेज प्राय: गैर लाभकारी माने जाते हैं। एडटेक में डिजिटल तकनीक की मदद से शिक्षा दी जाती है। ऐसे में एडटेक जहां मुनाफे के लिए काम करती है वहीं यह ऐस क्षेत्र में काम करती है जिसकी प्रकृति गैर लाभकारी है।
बैजूस भारत की या शायद दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे अच्छी फंडिंग वाली एडटेक कंपनी थी। इस घटना के बाद एडटेक क्षेत्र में लंबे समय तक निवेशकों की फंडिंग आनी मुश्किल है। यह हृदयविदारक है और इसके ऐसे नीतिगत प्रभाव होंगे जो किसी बड़े कारोबार के पतन के कारण उत्पन्न होने वाली मुश्किलों की तुलना में कहीं अधिक गंभीर होंगे।
बैजूस ने खुद को एक बड़ी और ऐसी मांग को हल करने वाली कंपनी के रूप में पेश किया था जो कोई और नहीं कर रहा था। भारत में अल्पशिक्षित आबादी बहुत अधिक है जो बेहतर शिक्षा के लिए संघर्ष कर रही है।
पारंपरिक स्कूलों और कॉलेजों में इतनी क्षमता नहीं है कि वे इस कमी को दूर कर सकें। यही वजह है कि इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई में दाखिले के लिए इतनी तगड़ी प्रतिस्पर्धा देखने को मिलती है।
देश के कामकाजी लोग औसतन 10 वर्ष या उससे कम की स्कूली शिक्षा लेते हैं। प्रथम के सर्वेक्षणों के मुताबिक औसत स्कूली विद्यार्थियों में पढ़ने और गणना करने का कौशल बहुत कमजोर होता है। यही वजह है कि निजी ट्यूशन संस्थानों और कोचिंग संस्थानों की बाढ़ आई हुई है।
हर भारतीय परिवार चाहे वह किसी भी धर्म का हो, शिक्षा की चौखट पर जरूर माथा टेकता है। निम्न आय वर्ग वाले सभी परिवार जानते हैं कि अपना सामाजिक स्तर बढ़ाने का इकलौता ईमानदार तरीका यही है।
बैजूस ने इसी जरूरत और लोगों की असुरक्षा का फायदा उठाकर अपने पाठ्यक्रमों की बिक्री की। अभिभावकों ने अपनी पूरी जमा-पूंजी लगाकर बच्चों का दाखिला कराया लेकिन बैजूस वैसा प्रदर्शन नहीं कर सकी जिसका उसने वादा किया था। ऐसे में उससे जुड़कर पढ़ाई करने वालों ने थोड़ा बहुत सीखने में ही कई साल गंवा दिए और उनके अभिभावकों की गाढ़ी कमाई बरबाद हुई। कई मामलों में तो वे अपना कर्ज चुकाने के लिए जूझ रहे हैं।
एडटेक ने यह उम्मीद पैदा की थी कि कम शिक्षित युवा इसकी मदद से ऐसे कौशल सीख पाएंगे जो कक्षाओं में नहीं सिखाया जाता। यह कुछ वैसा ही है जैसे फिनटेक कंपनियों ने औपचारिक बैंकिंग से दूर रहे लाखों लोगों को औपचारिक वित्तीय व्यवस्था से जोड़ा।
किसी भी कारोबार का मूल्यांकन भविष्य की आय के अनुमानों पर निर्भर होता है। बैजूस के मूल्यांकन का पतन और एडटेक की फंडिंग पर इसके प्रभाव ने हमारे जनांकीय लाभांश के ‘मूल्यांकन’ को भी नीचे ला दिया है। कम शिक्षित आबादी कम कमा सकेगी। इसका अर्थ यह हुआ कि आने वाले दशकों में जीडीपी में कमी आएगी। इसका अर्थ है कि लाखों लोग मुश्किलों से दो-चार होंगे।