चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने इस वर्ष 17 अगस्त को सेंट्रल फाइनैंशियल ऐंड इकनॉमिक अफेयर्स कमीशन (सीएफईएसी) की बैठक में चीन की जनता के लिए साझा समृद्धि का अपना नजरिया पेश किया। उनके लंबे भाषण का पूरा हिस्सा पार्टी जर्नल के अक्टूबर अंक में प्रकाशित है। इसकी मदद से हम बेहतर ढंग से यह समझ सकते हैं वह चीन की आर्थिक वृद्धि की नीति को कैसे नई दिशा दे रहे हैं।
चीन की अचल संपत्ति कंपनी एवरग्रैंड की आसन्न विफलता को शी चिनफिंग द्वारा सीएफईएएसी में की गई टिप्पणी के समक्ष रखकर देखना चाहिए जहां उन्होंने कहा, ‘हमें आवास आपूर्ति और सहायक व्यवस्था में सुधार करना होगा और इस स्थिति पर जोर देना होगा कि आवास रहने के लिए होते हैं, न कि सट्टेबाजी के लिए।’ उन्होंने संपत्ति कर विधान और सुधारों की भी अनुशंसा की जबकि इसका हमेशा विरोध किया गया है।
इससे पहले चीन ने एक झटके में ऐसे नए विधान प्रस्तुत किए थे जिन्होंने चीन के संपत्ति और निर्माण क्षेत्र के उस तमाम नीतिगत माहौल को बदल दिया जिसमें यह क्षेत्र दो दशक से अधिक समय से विकसित हुआ था और जो चीन के सकल घरेलू उत्पाद का करीब 30 फीसदी हो गया था। नए नियमन में तीन अहम बातें शामिल की गईं:
परिसंपत्ति की तुलना में देनदारियों के लिए 70 फीसदी की सीमा तय की गई, अनुबंध पर बेची गई परियोजनाओं के अग्रिम को इससे बाहर रखा गया।
इक्विटी पर शुद्ध कर्ज के मामले में 100 फीसदी सीमा तय की गई।
नकदी और अल्पावधि की उधारी का अनुपात कम से कम एक रखने की बात कही गई।
चीन के बड़े परिसंपत्ति डेवलपरों में कोई नए नियमों का पालन करने की स्थिति में नहीं है। उनकी इस अक्षमता के कारण नया निवेश नहीं आ रहा है। यह वैसा ही है मानो शी चिनफिंग के निर्देशों पर उन्हें दिवालिया किया जा रहा हो। संपाश्र्विक क्षति की आशंका के बावजूद उन्हें उबारने का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। शी चिनफिंग की वैचारिक प्राथमिकता सामने है।
उनके भाषण में कहीं अधिक अहम बातें हैं। मसलन आर्थिक नीति में साझा समृद्धि के लिए क्या कुछ होगा। उदाहरण के लिए उन्होंने ‘जैतून के आकार के वितरण ढांचे’ को हासिल करने की बात कही जहां एक विशाल मध्य और दो छोटे अंत होंगे। इसके लिए प्रगतिशील कराधान व्यवस्था तथा आय के निचले स्तर पर मौजूद लोगों के लिए अधिक कल्याण लाभ की आवश्यकता होगी। शी चिनफिंग चीन में आय की असमानता को वैश्विक रुझान से जोड़ते हैं: ‘कुछ देशों के अमीर और गरीब मध्य वर्ग के पतन के साथ ध्रुवीकृत हो गए हैं। इसकी वजह से सामाजिक विभेद, राजनीतिक धु्रवीकरण और लोकलुभावनवाद उत्पन्न हुआ है।’ आर्थिक असमानता के सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव की उनकी समझ स्पष्ट है और समग्र वृद्धि को नुकसान पहुंचने के बावजूद पूरी संभावना है कि असमानता दूर करने संबंधी नीतियां जारी रहेंगी। यह बात ध्यान देने लायक है कि शी चीन की बुनियादी आर्थिक व्यवस्था के बारे में कहते हैं, ‘हमें खुद को समाजवाद के शुरुआती चरण पर आधारित रखना होगा तथा दो स्पष्ट सिद्धांतों का पालन करना होगा।’
इन दो सिद्धांतों में से एक है सार्वजनिक स्वामित्व की व्यवस्था को प्रमुखता से बरकरार रखना तथा इसके समांतर ही विभिन्न स्वामित्व वाली अर्थव्यवस्था को विकसित करना। इससे इस बात की पुष्टि होती है कि शी चिनफिंग के अधीन सरकारी स्वामित्व वाले संस्थान ही भविष्य के विकास का अग्रिम दस्ता होंगे, न कि निजी क्षेत्र। चीन की सबसे जीवंत और सफल निजी कंपनियों अलीबाबा, वीबो और दीदी चुशिंग पर जिस प्रकार भारी भरकम जुर्माना लगाया गया और जिस तरह बड़ी निजी परिसंपत्ति डेवलपर कंपनियों को जानबूझकर दिवालिया होने दिया गया उसे शी चिनफिंग की वैचारिक प्राथमिकता का मामला माना जाना चाहिए।
सन 1980 के दशक में जब तंग श्याओफिंग बड़े बाजार सुधार पेश कर रहे थे और निजी कंपनियों को आगे आने के लिए प्रोत्साहित कर रहे थे तब कहीं अधिक रूढि़वादी आर्थिक योजनाकार चेन युन ने यह नजरिया सामने रखा था कि सुधार केबाद पिंजरे का आकार उतना ही बड़ा होना चाहिए जितने में निजी कारोबारियों को काम करने की इजाजत हो लेकिन पिंजरे पर से पार्टी का नियंत्रण समाप्त नहीं होना चाहिए। शी चिनफिंग उसी दिशा में लौट रहे हैं।
चीन की आर्थिक नीति में यह बदलाव वैश्विक अर्थव्यवस्था पर काफी असर डालेगा। कई वर्षों से चीन की आर्थिक वृद्धि ने वैश्विक आर्थिक वृद्धि में 30 फीसदी का योगदान किया है। यदि शी चिनफिंग अपनी नई नीतियों के साथ आगे बढ़ते हैं तो आने वाले वर्षों में धीमापन आना अपरिहार्य है। चीन का 4.9 फीसदी की तिमाही आर्थिक वृद्धि का आंकड़ा इस रुझान को प्रकट करता है। कई देशों में कई क्षेत्रों की बड़ी उत्पादन क्षमता इस अनुमान पर विकसित हुईं कि चीन की तेजी का सिलसिला आने वाले वर्षों में जारी रहेगा। ऐसे में तमाम कंपनियों और उन्हें वित्तीय सहायता मुहैया कराने वालों को समायोजन करना होगा। कई कंपनियां अभी भी मान रही हैं कि चीन में आया धीमापन अस्थायी है लेकिन यह सही नहीं है। चीन में 4-5 फीसदी की वृद्धि सामान्य हो सकती है। इस नीतिगत बदलाव को नीतिगत समर्थन है। चीन के निजी क्षेत्र की तेजी के दिनों में चीन के उद्यमियों और पार्टी अधिकारियों के बीच करीबी संबंध देखने को मिले। इससे दोनों समृद्धि हुए। सन 2012 में डेविड बारबोजा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री वेन च्यापाओ के परिजन द्वारा जुटाई गई भारी भरकम संपत्ति का खुलासा किया था। डेविड शम की हालिया किताब रेड रॉलेट में भी ऐसे संबंधों को रेखांकित किया गया है। मौजूदा उपराष्ट्रपति वांग किशान को जैक मा की सहायता करने के लिए जाना जाता है जिन्होंने अलीबाबा का साम्राज्य खड़ा किया। इन कंपनियों पर हमलावर होकर शी चिनफिंग इनके राजनीतिक संरक्षकों पर भी हमले कर रहे हैं। वह यह तय कर रहे हैं कि कोई उनकी राजनीतिक सत्ता को चुनौती न दे सके। यह विडंबना ही है कि शी चिनफिंग के पहले कार्यकाल में वांग ही भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम के अगुआ थे।
देखना यह होगा कि क्या चीन की अर्थव्यवस्था तमाम तरह के झटकों से पार पा सकेगी। देश में ऐसे अनुभवी और समझदार आर्थिक प्रबंधक रहे हैं जिन्होंने अतीत में अर्थव्यवस्था को संकट से उबारा है। परंतु इस बार समझ पर शीर्ष नेता की विचारधारात्मक प्राथमिकता हावी है इसलिए अनचाहे परिणाम सामने आ सकते हैं। पूरे घटनाक्रम पर नजर रखनी होगी।
(लेखक पूर्व विदेश सचिव और सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के सीनियर फेलो हैं)