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‘ट्रंप टैरिफ’ के बीच कस्टम ड्यूटी में बदलाव

इलेक्ट्रॉनिक्स, वाहन, कपड़ा और स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्रों में सीमा शुल्क में बदलाव से सरकार ने देसी विनिर्माण को प्रोत्साहन और निर्यात को बढ़ावा देने की तैयारी की है।

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अजय श्रीवास्तव   
Last Updated- February 11, 2025 | 9:35 PM IST

सीमा शुल्क देश में हो रहे आयात पर लगने वाला कर है। भारत में 2023-24 में 678.2 अरब डॉलर का आयात किया गया था और उसमें से ज्यादातर पर यह शुल्क लगा था। इसी महीने पेश किए गए बजट में इलेक्ट्रॉनिक्स, वाहन, कपड़ा और स्वास्थ्य सेवा समेत विभिन्न क्षेत्रों में लग रहे सीमा शुल्क में काफी बदलाव किया गया। देश में विनिर्माण तथा निर्यात को बढ़ावा देने के लिए कुछ शुल्क कम किए गए और देसी उद्योगों को बचाने के लिए कुछ शुल्क बढ़ाए भी गए। कई संशोधन भारत की व्यापार नीति को दुनिया में हो रहे बदलावों के हिसाब से ढालने के लिए भी किए गए। देखते हैं कि बजट में क्या प्रमुख परिवर्तन किए गए और भारत बढ़त बनाए रखने की तैयारी किस तरह कर रहा है।

शुल्क के औसत स्तर: विश्व व्यापार संगठन की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार देश का औसत आयात शुल्क 17 फीसदी है और ट्रेड वेटेड रेट यानी आयात हुई प्रत्येक इकाई पर औसत शुल्क 12 फीसदी है। देश के आयात शुल्क में मूल सीमा शुल्क (बीसीडी) और कृषि अधोसंरचना एवं विकास उपकर (एआईडीसी) भी शामिल हैं। 2025 के बजट में 100 से कुछ कम उत्पादों पर बीसीडी और एआईडीसी घटाए गए तथा शुल्क अनुसूची में शामिल 12,000 उत्पादों में से केवल 10 पर बढ़ा दिए गए। इस तरह देश में शुल्क का ढांचा कुल मिलाकर पहले जैसा ही रहा।

शुल्क के स्लैब: सरकार ने शुल्क के स्लैब यानी श्रेणियां घटाकर 8 कर दीं, जिससे शुल्क ढांचा पहले से सरल हो गया। किंतु इसमें बीसीडी स्लैब ही शामिल हैं और बीसीडी तथा एआईडीसी के कुल स्लैब नहीं। अगर दोनों को शामिल कर लिया गया तो स्लैब की संख्या बढ़ जाएगी। बीसीडी में भी कपड़ा तथा कृषि उत्पाद बाहर रखे गए हैं यानी स्लैब की कुल संख्या अब भी सरकार द्वारा बताई गई संख्या से अधिक है।

अधिक राजस्व के लिए बदलीं दर: कई उत्पादों पर सरकार ने कुल आयात शुल्क तो पहले जितना ही रखा है मगर मूल सीमा शुल्क का कुछ हिस्सा कृषि उपकर में डाल दिया है। उदाहरण के लिए बजट से पहले मार्बल स्लैब पर मूल सीमा शुल्क 40 फीसदी था मगर बजट में उसे केवल 20 फीसदी कर दिया गया और बाकी 20 फीसदी कृषि उपकर में डाल दिया गया। ग्रेनाइट, मोमबत्ती, फुटवियर, सोलर सेल, लक्जरी कार, मोटरसाइकल, बाइसिकल, याट, बिजली के मीटर और इलेक्ट्रॉनिक खिलौनों के पुर्जों पर भी ऐसे ही बदलाव किए गए हैं। इन बदलावों से केंद्र सरकार को ज्यादा राजस्व अपने पास रखने का मौका मिल जाता है क्योंकि मूल सीमा शुल्क उसे राज्यों के साथ साझा करना पड़ता है मगर उपकर केवल केंद्र के पास रहता है।

शुल्कों में बड़े परिवर्तन: अब देखते हैं कि 2025 के बजट में उत्पादों के स्तर पर शुल्क में कौन से बड़े बदलाव किए गए हैं। ज्यादातर बदलाव इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में हुए। एलईडी और एलसीडी टीवी में लगने वाले ओपन सेल पुर्जों पर शुल्क खत्म कर दिया गया ताकि देश के भीतर डिस्प्ले मॉड्यूल के विनिर्माण को बढ़ावा मिल सके। इनवर्टेड शुल्क ढांचे को सही करने के लिए इंटरैक्टिव फ्लैट पैनल डिस्प्ले पर शुल्क 10 फीसदी से बढ़ाकर 20 फीसदी कर दिया गया।

स्मार्टफोन के पुर्जों और ऐक्सेसरीज जैसे पीसीबी असेंबली पार्ट्स, कैमरा मॉड्यूल, कनेक्टर, वायर्ड हेडसेट और यूएसबी केबल आदि पर लगने वाला 2.5 फीसदी शुल्क बिल्कुल खत्म कर दिया गया है। इससे दिक्कत हो सकती है। चूंकि निर्यात के लिए होने वाले उत्पादन में इस्तेमाल हो रहे पुर्जों पर पहले ही कोई शुल्क नहीं लगता इसलिए सरकार को तेजी से विकसित हो रही स्थानीय विनिर्माण व्यवस्था के संरक्षण के लिए पांच साल के लिए स्थिर शुल्क वाली नीति सुनिश्चित करनी चाहिए। स्मार्टफोन के कुछ पुर्जों पर हर बजट में शुल्क घटाया जा रहा है।

इलेक्ट्रिक वाहन और मोबाइल फोन बैटरी बनाने में काम आने वाली 63 मशीनों पर शुल्क खत्म कर दिया गया है। कपड़े की बात करें तो बुने हुए कपड़े पर शुल्क बढ़ा दिया गया, जिससे देसी निर्माताओं के लिए कच्चा माल महंगा हो सकता है।
समुद्री क्षेत्र में फ्रोजन फिश पेस्ट पर शुल्क 30 फीसदी से घटाकर 5 फीसदी कर दिया गया, जिससे सीफूड तैयार और निर्यात करने वालों को राहत मिलेगी। जहाज बनाने और तोड़ने वाले उद्योगों के कच्चे माल से भी शुल्क खत्म कर दिया गया। स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र को भी कैंसर के इलाज की 36 दवाओं और दुर्लभ रोगों की 37 आवश्यक दवाओं पर शुल्क खत्म होने से फायदा मिलेगा। इससे जरूरी उपचार सस्ते हो जाएंगे।

अमेरिका को लाभ: बजट में ऐसे उत्पादों पर भी शुल्क कम किया गया, जिससे अमेरिका से भारत को होने वाले निर्यात को बढ़ावा मिलेगा। इथरनेट स्विच पर शुल्क 20 फीसदी से घटाकर 10 फीसदी किया गया है, हार्ली डेविडसन मोटरसाइकल पर 50 फीसदी से 30 फीसदी, सैटेलाइट ग्राउंड इंस्टालेशन के लिए 10 फीसदी से घटाकर शून्य, सिंथेटिक फ्लेवर वाली सुगंधों पर 100 फीसदी से घटाकर 20 फीसदी तथा खास तरीके के कचरे और कबाड़ पर शुल्क 5 फीसदी से घटाकर शून्य कर दिया गया है।

अधिकतर अमेरिकी निर्यात पर ऊंचा शुल्क नहीं: डॉनल्ड ट्रंप ने भारत के ऊंचे शुल्कों की तरफ ध्यान दिलाते हुए व्हिस्की पर 150 फीसदी और हार्ली-डेविडसन मोटरसाइकलों पर 50 फीसदी शुल्क की बात कही है। मगर अमेरिका से आयात होने वाले कुल सामान में तीन चौथाई हिस्सेदारी वाले शीर्ष 100 उत्पादों पर भारत 5 फीसदी से भी कम शुल्क लगाता है। इसके उदाहरण देख लेते हैं:

अमेरिका से भारत के लिए सबसे अधिक निर्यात कच्चे तेल का होता है और सालाना तकरीबन 5.03 अरब डॉलर का कच्चा तेल भारत आता है। किंतु इस पर केवल 1 डॉलर प्रति टन शुल्क लगता है। 3.09 अरब डॉलर के तराशे हुए हीरे बिना किसी शुल्क के ही भारत आ जाते हैं। इसी तरह 4.02 अरब डॉलर के कोयला आयात, 1.94 अरब डॉलर के बड़े विमान और 1.41 अरब डॉलर की तरल प्राकृतिक गैस ते आयात पर 2.5 फीसदी का मामूली शुल्क ही लगता है। लकभग 89 करोड़ डॉलर का एल्युमीनियम कबाड़ बिना किसी शुल्क के आ जाता है।

अमेरिका ने चीन पर जो शुल्क लगाए वे उसे ही भारी पड़ गए क्योंकि व्यापार कम होने के बजाय दूसरे देशों को चला गया। 2017 से 2023 के बीच चीन से अमेरिका के लिए आयात करीब 82 अरब डॉलर कम हो गया मगर कुल आयात में 763 अरब डॉलर इजाफा हो गया। चीन से दुनिया भर को होने वाला निर्यात भी 1 लाख करोड़ डॉलर बढ़ गया। ट्रंप अक्सर साझेदार देशों से शिकायत करते रहते हैं कि वे आयात कम करते हैं और अमेरिका को निर्यात ज्यादा करते हैं। मगर इसकी बड़ी वजह को वह अनदेखा कर देते हैं। वजह यह है कि दूसरे देशों को सामान खरीदने के लिए डॉलर कमाने पड़ते हैं मगर अमेरिका जब चाहे डॉलर छाप सकता है।

अगला कदम: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ट्रंप से मिलने पहुंच रहे हैं और उस मुलाकात में उन्हें किसी भी छोटे कारोबारी सौदे से बचना चाहिए। विश्व व्यापार संगठन के नियम कहते हैं कि विकसित देशों के साथ व्यापार समझौते में व्यापार की मात्रा अच्छी खासी होनी चाहिए, इसलिए सीमित व्यापार के सौदे का कोई अर्थ नहीं। हम पहले ही अमेरिकी नेतृत्व वाले हिंद-प्रशांत आर्थिक व्यवस्था संधि पर हस्ताक्षर कर चुके हैं और ट्रंप का शुल्क कम करने का कोई इरादा नहीं दिखता। ऐसे में भारत-अमेरिका संबंधों के सभी पहलुओं पर नजर रखने वाला संतुलित नजरिया अपनाना जरूरी है।

चीन के उलट भारत ने अमेरिकी डिजिटल कंपनियों को देश में काम करने की लगभग खुली छूट दे रखी है और यहां से वे विज्ञापन में अरबों डॉलर कमाती हैं। अमेरिकी विश्वविद्यालयों में पढ़ रहे भारतीय विद्यार्थी भी अरबों डॉलर चुकाते हैं। रणनीतिक लिहाज से भारत हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन के बरअक्स सबसे बड़ी ताकत है।

बजट में संकेत दिए गए हैं कि भारत अमेरिका की जरूरतों को समझता है और उन्हें पूरा करने के लिए अपनी ओर से कोशिश करने को तैयार है मगर जरूरत पड़ने पर हमें संप्रभु राष्ट्र के तौर पर प्रतिक्रिया भी देनी चाहिए।

(लेखक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनीशिएटिव के संस्थापक हैं)

First Published : February 11, 2025 | 9:34 PM IST