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  आईटी  जेनरेटिव एआई की चुनौतियां अपार, सुरक्षा को लेकर इसके प्रभाव पर छिड़ी बहस
आईटीआज का अखबारलेख

जेनरेटिव एआई की चुनौतियां अपार, सुरक्षा को लेकर इसके प्रभाव पर छिड़ी बहस

नितिन देसाईनितिन देसाई—May 24, 2023 11:37 PM IST
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दुनिया भर में प्रयोग करने योग्य आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) सॉफ्टवेयर के तेजी से उभार ने अर्थव्यवस्था और सुरक्षा पर इसके संभावित प्रभाव को लेकर एक व्यापक बहस छेड़ दी है। आमतौर पर हम जिस सॉफ्टवेयर का उपयोग करते हैं उसमें कोई स्वतंत्र रचनात्मकता नहीं दिखती है, उदाहरण के तौर पर लेखन से जुड़े सॉफ्टवेयर। हालांकि, यहां भी हम कुछ सरल एआई सॉफ्टवेयर देखते हैं जो वर्तनी की गलतियों को ठीक करते हैं और आप जब कोई संदेश या टेक्स्ट टाइप कर रहे होते हैं तो ये अगले शब्द का सुझाव देते हैं।

इन दिनों जो कुछ हम देख रहे हैं वह इससे बिल्कुल अलग है। यह एआई भाषा मॉडल पर आधारित है जो पूछे गए प्रश्न को समझने के लिए डिजाइन किया गया है और यह इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्री के माध्यम से सवालों का विस्तृत जवाब तुरंत तैयार कर देता है। एआई का उपयोग आवाज और ग्राफिक्स बनाने के लिए भी किया जा सकता है।

चैट जीपीटी भाषा से जुड़ा सॉफ्टवेयर है जिसका विस्तार पिछले साल अक्टूबर से काफी तेजी से हुआ है लेकिन इसकी वजह से एआई के बारे में कई चिंताएं भी उभरी हैं। मैंने रोजगार के प्रभाव के बारे में चैटजीपीटी पर एक प्रश्न पूछा और नियमित तथा दोहराए जाने वाले कार्यों को स्वचालित करने की क्षमता के बारे में संतुलित उत्तर मिला जैसे कि डेटा एंट्री, असेंबली लाइन वर्क, ग्राहक सेवा के साथ-साथ जेनरेटिव एआई में ग्राफिक डिजाइन, विज्ञापन और सामग्री निर्माण जैसे रचनात्मक उद्योगों में कुछ कार्यों को स्वचालित करने की रचनात्मक क्षमता की बात भी थी।

इसमें बढ़ती आय असमानता का जिक्र हुआ जहां कम और मध्यम स्तर की दक्षता वाले श्रमिक पीछे रह जाते हैं। मशीन लर्निंग, डेटा विश्लेषण और सॉफ्टवेयर विकास जैसे क्षेत्रों में विशेष कौशल वाले कर्मचारियों के लिए नई नौकरियां तैयार करने की क्षमता की ओर भी इशारा किया।

किसी भी तरह के तकनीकी विकास का प्रभाव विशेष रूप से हमेशा मौजूदा नौकरियों से जुड़े रोजगार पर पड़ता है लेकिन इससे नए रोजगार के मौके भी तैयार होते हैं जिस तरह मोटर कार ने पशुओं द्वारा खींची जाने वाली गाड़ियों की जगह ले ली।

भारत में, पर्याप्त रचनात्मक क्षमता वाली जेनरेटिव एआई, सॉफ्टवेयर और बिजनेस प्रोसेसिंग सेवाओं में मौजूदा रोजगार के स्तर पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है क्योंकि वे जो सेवाएं देते हैं उसे आसानी से एआई-आधारित प्रोग्राम के द्वारा पूरा किया जा सकता है।

लेकिन ऐसा करने के लिए एआई के खास उपयोग के लिए सेवाओं में कुछ समर्थन की आवश्यकता होगी, खासतौर पर तब जब इसका उपयोग सॉफ्टवेयर तैयार करने के लिए किया जाता है। यह वह क्षमता है जिसे हमारी आईटी और बीपीओ कंपनियों को अवश्य विकसित करनी चाहिए। संयोग से एआई, कम दक्ष श्रमिकों के लिए, अधिक सक्षम लोगों के साथ अंतर कम करने के लिए एक उपकरण देता है।

उदाहरण के तौर पर खराब अंग्रेजी भाषा कौशल वाला एक कर्मी, एआई का उपयोग अंग्रेजी भाषा-शिक्षित कर्मी के रूप में उपयोगी बनने के लिए कर सकता है, जैसे कि मार्केटिंग या किसी अन्य गतिविधि में, जिसमें अंग्रेजी भाषा में संवाद करने की आवश्यकता होती है। हालांकि, अब एआई से जुड़ी बहस इसके रोजगार प्रभाव के बजाय सुरक्षा से जुड़े पहलुओं और उसके असर के बारे में ज्यादा है।

जेनरेटिव एआई के उभार के साथ यह बहस अधिक व्यापक हो गई है जो एआई मॉडल का वह संदर्भ देता है जो मनुष्यों से स्पष्ट निर्देश लिए बिना ही अपने दम पर नई सामग्री, जैसे चित्र, वीडियो और टेक्स्ट बनाने में सक्षम हैं।

एक प्रभावशाली लेखक युअन हरारी ने तर्क दिया है कि भाषा मानव संस्कृति का आधार है और भाषा से जुड़ी अत्यधिक कुशल एआई प्रणाली, संस्कृति और मान्यताओं के विकास पर कब्जा कर सकती है। लेकिन एक पहलू यह भी है कि एआई सॉफ्टवेयर में आत्म-चेतना और महत्त्वाकांक्षा की कमी है।

एक सटीक अनुमान यह लगाया जा रहा है कि इसका उपयोग कुछ आदमियों द्वारा दूसरों पर अपने प्रभाव को गहरा करने के लिए किया जा सकता है। किसी को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि ओपन-सोर्स एआई ऐप तक कई लोगों की पहुंच होती है और इससे संस्कृति पर पड़ने वाले प्रभाव को लोकतांत्रिक बनाने में मदद मिलेगी।

असली चुनौती एआई के प्रतिकूल इस्तेमाल को रोकना भी है। चैटजीपीटी की एक प्रतिक्रिया के अनुसार, एआई संचालित निगरानी प्रणाली, गोपनीयता अधिकारों का हनन कर सकती है। इसके अलावा एआई-स्वचालित साइबर हमले, पारंपरिक सुरक्षा दायरे से बचने के लिए तैयार किए गए हैं और स्वायत्त रूप से मनुष्यों को लक्षित करने तथा हमला करने के लिए एआई संचालित हथियार डिजाइन किए गए हैं।

एआई फर्जीवाड़े और धोखाधड़ी के साथ फर्जी खबरों के प्रभाव को भी गहरा कर सकता है। इसमें भी सबसे खराब बात यह है कि इसमें आवाज तैयार करने की क्षमता है जिससे फर्जी कॉल की रफ्तार बढ़ सकती हैं और मिसाल के तौर पर परिवार के किसी सदस्य से किसी को किसी जगह तुरंत पैसे भेजने के लिए कहा जा सकता है।

क्या जेनरेटिव एआई मानव हस्तक्षेप के बिना घातक हो सकता है? सॉफ्टवेयर के माध्यम से नियंत्रित ड्रोन का मामला हीं लें। एक विशेष प्रकार के लक्ष्य पर हमला करने के लिए प्रोग्राम किया गया ड्रोन अपने खास लक्ष्य को चुनने के लिए स्वतंत्र है जो प्रोग्राम किए गए मानदंडों को पूरा करता है। लेकिन इसमें कुछ ऐसा नहीं है जिसे ड्रोन निर्धारित करता है। यह ड्रोन प्रोग्रामिंग करने वाले लोगों द्वारा ही निर्धारित किया गया है।

एआई में न्यूरल नेटवर्क्स की प्रोग्रामिंग आत्म-चेतना नहीं पैदा कर कर सकती है क्योंकि हम अभी भी इसके लिए तंत्रिका तंत्र के आधार को नहीं जानते हैं। एआई सॉफ्टवेयर में मनुष्यों की तरह किसी विकल्पों या पूर्वग्रहों का आकलन करने की क्षमता नहीं होती है जिससे सत्य के परे किसी खास मकसद से किसी जवाब को विकृत रूप दिया जा सकता है। नुकसानदेह और लाभकारी प्रभाव, मानव की चेतना और निर्णय पर निर्भर करते हैं।

इसीलिए एआई का दुरुपयोग किसी विशिष्ट व्यक्ति की दुर्भावना पर निर्भर करेगा। अब प्राथमिक बहस इसके रोजगार पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में नहीं है। उस प्रभाव को नजरअंदाज नहीं किया जाता है और यह कोई संयोग नहीं है कि चैटजीपीटी बनाने वाले ओपनएआई के सैम अल्टमैन, सार्वभौमिक बुनियादी आय के सिद्धांत में विश्वास करते हैं जो संभवतः रोजगार के अवसरों में कमी की भरपाई करने के लिए है।

लेकिन अब प्राथमिक चिंता एआई के व्यापक दुरुपयोग के डर से जुड़ी हुई है और इसी वजह से एआई बनाने और उपयोग करने के लिए एक नियामक व्यवस्था स्थापित करने को लेकर आम सहमति बनती दिखाई दे रही है। जी7 ने इस उद्देश्य के लिए एक कार्यकारी समूह स्थापित करने का प्रस्ताव रखा है और यूरोपीय संघ नियमन को तैयार करने की राह पर है।

एक स्तर पर बहस न केवल उपयोग के नियमन के बारे में है बल्कि यह दुरुपयोग के जोखिम को नियंत्रित करने के लिए एआई ऐप्स के मूल डिजाइन से जुड़ा है। यदि यह सरकारों द्वारा किया जाता है तो इसका उपयोग राजनीतिक लाभ के लिए किया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर चीन ने एआई विकास पर कथित तौर पर नियंत्रण करना शुरू किया है।

चीन में एआई ऐप्स के जारी होने से पहले आधिकारिक मंजूरी का प्रावधान शामिल किया गया है और उन्हें ‘समाजवाद के बुनियादी मूल्यों’ के अनुरूप ही पेश करना सुनिश्चित करने की आवश्यकता होती है! हालांकि इस प्रकार के राजनीतिकरण से बचना चाहिए। इंटरनेट का दुरुपयोग किया जा सकता है लेकिन यह हमारी स्वतंत्रता और लोकतंत्र का सबसे मजबूत आधार बना हुआ है।

भारत को एआई पर क्या रुख अपनाना चाहिए? हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि यह भविष्य की तकनीक है। जिस तरह कई दशक पहले कंप्यूटरीकरण का दौर आया था ठीक उसी तरह ही हमें एआई विकसित करने और इसका उपयोग करने के लिए स्थानीय क्षमता तैयार करने के लिए काम करना चाहिए। एआई के मुख्य भाग की नींव एक भाषा मॉडल है, इसलिए भारत के लिए यह एक बड़ी चुनौती है क्योंकि यहां कई भाषाएं हैं।

एआई सेवाओं के प्रावधान के लिए बहुत बड़े सर्वर सिस्टम की आवश्यकता होती है, विशेष रूप से उन लोगों के लिए जो ग्राफिक्स के लिए एआई की सेवाएं लेते हैं। एआई प्रदाताओं के रूप में बड़ी कंपनियों के लिए पूर्वग्रह है। यह भी एक अंतरराष्ट्रीय रुझान है और जितनी जल्दी हम अपने इन्फोटेक उद्योग को इसमें शामिल करते हैं, एआई बाजार में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान कायम करने की हमारी संभावना उतनी ही बेहतर हो सकती है।

आज कंप्यूटर भाषा, गणितीय गणना और ग्राफिक डिजाइन से जुड़े कई काम करते हैं जिस काम को हमें कंप्यूटर दौर आने से पहले हाथ से धीरे-धीरे और थकाऊ तरीके से करना पड़ता था, जब हम वयस्क हो रहे थे। कंप्यूटर युग ने हमें उच्च स्तर की बौद्धिक गतिविधि पर ध्यान केंद्रित करने के लिए मुक्त किया, लेकिन हमें अज्ञात फर्जीवाड़े की घटनाओं का सामना भी करना पड़ रहा है। हमारे बच्चों के लिए भी एआई कुछ ऐसी ही स्थितियां तैयार करेगा और हमारा मुख्य कार्य उन्हें एआई द्वारा दिए जाने व्यापक अवसरों के लिए तैयार करना और यह सुनिश्चित करना है कि जोखिम का प्रबंधन किया जाए।

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