अमेरिका के शेयर बाजारों पर विभिन्न बाजार पर्यवेक्षकों के आलेखों और टिप्पणियों की बाढ़ देखने को मिली। लगभग उन सभी का मानना था कि वह इकलौता ऐसा बाजार है जहां निवेश करना सही है। इनमें से अधिकांश बाजार पर्यवेक्षकों का मानना है कि अमेरिकी बाजार अपनी तेजी के उच्चतम स्तर पर हैं। यह सहमति इतनी तगड़ी है कि अमेरिका तथा दुनिया के अन्य हिस्सों के निवेशकों ने भी उभरते बाजारों जैसे अन्य क्षेत्रों पर नजर तक डालनी बंद कर दी है।
उभरते बाजार वर्ग के सामने फिलहाल गंभीर चुनौतियां हैं और वे प्रासंगिक बनने की कोशिश कर रहे हैं। वर्ष 2025 के लिए अधिकांश वैश्विक पूर्वानुमान यही मान रहे हैं कि अमेरिका इकलौता ऐसा बाजार है जिस पर समय और धन लगाया जाए। आंकड़ों पर नजर डालें तो यह देखना आसान है कि आखिर क्यों हर कोई अमेरिका को लेकर सकारात्मक है और क्यों विरोधी अमेरिकी परिसंपत्तियों को लेकर सकारात्मकता के प्रति इतने असहज हैं।
बीते वर्षों के दौरान अमेरिकी शेयरों ने अन्य सभी भौगोलिक क्षेत्रों में उभरते बाजारों के शेयरों को पीछे छोड़ दिया है। खासतौर पर 2008 में वित्तीय संकट के बाद। वर्ष 2010 के आरंभ से 2024 के अंत तक के 15 साल में अमेरिकी बाजारों ने एमएससीआई वर्ल्ड इक्विटीज को 14 साल पछाड़ा। केवल 2017 अपवाद रहा। बीते एक दशक में एसऐंडपी 500 ने यूरोपीय शेयरों को सालाना 7.7 फीसदी की दर से और उभरते बाजारों के शेयरों को सालाना 9.7 फीसदी पीछे छोड़ा है।
आज एमएससीआई वर्ल्ड इक्विटी सूचकांक में अमेरिका 67 फीसदी का हिस्सेदार है यानी अमेरिकी कॉर्पोरेट जगत दुनिया के अन्य बाजारों के संयुक्त भार से दोगुना भार रखता है। अगला बड़ा बाजार जापान है जो सूचकांक में पांच फीसदी हिस्सेदारी रखता है। दुनिया में कहीं भी वैश्विक शेयरों पर होने वाली चर्चा में 90 फीसदी से अधिक समय अमेरिका पर खर्च किया जाता है। यह इकलौता बाजार है जो मायने रखता हुआ नजर आता है।
अन्य सभी बाजार और वैश्विक रुझान अमेरिका केंद्रित हैं। अमेरिकी शेयर वैश्विक शेयरों की तुलना में रिकॉर्ड स्तर पर कारोबार कर रहे हैं। ऐसा केवल ऐपल, माइक्रोसॉफ्ट, गूगल की मातृ कंपनी अल्फाबेट, एमेजॉन, एनवीडिया, मेटा और टेस्ला जैसी सात बड़ी कंपनियों की बदौलत नहीं है। अगर हम इन्हें छोड़कर एसऐंडपी की शेष 493 कंपनियों की बात करें और उनकी तुलना यूरोपीय संघ के शेयरों से करें तो अमेरिकी कंपनियों को हर क्षेत्र में मूल्यांकन में बढ़त हासिल है।
मूल्यांकन प्रीमियम का संबंध शेयरों पर उच्च प्रतिफल से है। बहरहाल, हमेशा ऐसा नहीं था। अमेरिकी शेयरों के पक्ष में यह स्थिति वैश्विक वित्तीय संकट के बाद निर्मित हुई। संकट मोटे तौर पर अमेरिका में केंद्रित था और आक्रामक तथा तीव्र नीतिगत प्रयासों के माध्यम से अमेरिका ने मुनाफे पर ध्यान केंद्रित करते हुए समस्या से पार पाया।
अगर हम पीछे मुड़कर देखें तो संकट के ऐन पहले यानी 2007 के आखिर तक व्यापक यूरोप का बाजार पूंजीकरण और वैश्विक सूचकांकों पर भार अमेरिका से अधिक था। वर्ष 2002 से 2009 तक आठ साल की अवधि संकट की ओर ले गई। एमएससीआई वर्ल्ड ने आठ में से सात सालों में एसऐंडपी को पीछे छोड़ दिया। आज कल्पना करना मुश्किल है लेकिन 1989 में वैश्विक सूचकांकों में जापान का भार अमेरिका से अधिक था। वह दुनिया का सबसे मूल्यवान और महंगा बाजार था।
अमेरिका जहां दीर्घकालिक प्रतिफल के मामले में सभी प्रमुख शेयर बाजारों में बेहतर रहा, वहीं करीब 7 फीसदी की वास्तविक वृद्धि दर के साथ वह कभी भी एकतरफा रुझान का विषय नहीं रहा। पांच साल या उससे लंबी अवधि ऐसी भी रही जब वह वैश्विक बाजारों में पीछे रहा। हालात हमेशा आज जैसे नहीं रहे। विगत 15 साल के शानदार प्रदर्शन के साथ अब अमेरिकी मूल्यांकन रिकॉर्ड स्तर पर हैं। रुझान संकेतकों की भी बात करें तो पेशेवर फंड प्रबंधकों सहित किसी भी सर्वे में अमेरिकी बाजारों की तेजी इससे ऊंचे स्तर पर नहीं रही है।
खुदरा रुझान संकेतक भी तकरीबन अब तक के उच्चतम स्तर पर हैं और खुदरा आवक भी शायद ही कभी इससे ऊंचे स्तर पर रही हो। हालांकि क्रिप्टोकरेंसी सहित बाजार और परिसंपत्तियों का एक हिस्सा ऐसा है जो अभी भी अटकलबाजी में लिप्त नजर आ रहा है। वर्ष 2008 के बाद अमेरिकी शेयरों में बेहतरीन तेजी देखने को मिली। रुझान और मूल्यांकन दोनों ही मोर्चों पर शायद ही कभी इससे अधिक तेजी देखने को मिली हो।
इस बात पर सहमति है कि अमेरिका के विरुद्ध दांव लगाना उचित नहीं और वैश्विक सूचकांकों में भार के मामले में भी वह अब तक के उच्चतम स्तर के करीब है। मैं इस नजरिये के साथ हूं कि व्यक्तिगत निवेशकों या प्रोपराइटरी पूंजी का प्रबंधन कर रहे किसी भी व्यक्ति के लिए यह बात समझदारी भरी है कि अमेरिका को कम महत्त्व देते हुए गति को धीमा करे। अमेरिका इक्विटी ऐसेट में उच्चतम स्तर पर है और उसके प्रदर्शन में देर सबेर धीमापन आएगा।
एक रणनीतिक कदम के रूप में यह बहुत सहज संभव है कि अमेरिका पांच साल तक वैश्विक स्तर पर कमजोर प्रदर्शन करे। मूल्यांकन के मौजूदा बिंदुओं को देखते हुए क्या अमेरिका आने वाले दिनों में अन्य बाजारों से पीछे भी रह सकता है? यकीनन ऐसा हो सकता है। उभरते बाजार और यूरोप दोनों की वापसी संभव है। लंबी अवधि में अमेरिका ने सबसे अच्छा प्रतिफल दिया है और किसी भी वैश्विक इक्विटी आवंटन में वह मूल में रहेगा। नवाचार और प्रौद्योगिकी में उसकी बढ़त बहुत ज्यादा है और मुनाफे पर उसका ध्यान इतना अधिक है कि उसकी आय वृद्धि दुनिया के किसी भी अन्य हिस्से से अधिक ही रहेगी।
संस्थागत निवेशकों के लिए निर्णय अधिक कठिन है। सक्रिय धन-प्रबंधन की खतरनाक प्रवृत्ति को देखते हुए अधिकांश फंड कमजोर प्रदर्शन को बरदाश्त नहीं कर सकते हैं जिसकी गारंटी अमेरिका को कम करके आंकने से मिल जाएगी। इनमें से कई फंड बीते पांच सालों से अमेरिकी शेयरों से दूरी बनाने की वकालत कर रहे हैं और वे पूरी तरह गलत साबित हुए। ऐसे में वे दोबारा उसे दोहराना नहीं चाहते।
अमेरिकी बाजारों का कमजोर प्रदर्शन कब शुरू होगा इसका अनुमान लगा पाना मुश्किल है। अमेरिका हमेशा बेहतरीन प्रदर्शन नहीं करता रह सकता है। वह वैश्विक सूचकांकों में 80-85 फीसदी का हिस्सेदारी नहीं हो सकता। यह स्थिति जरूर बदलेगी। बस यह अनुमान लगाना कठिन है कि ऐसा कब होगा।
ऐसे हालात में अपने धन का प्रबंधन और अपने प्रति जवाबदेह होते हुए जोखिम लेना आसान होता है। अधिकांश संस्थागत निवेशकों के पास लंबे समय तक कमजोर प्रदर्शन को झेलने की क्षमता नहीं होती। वे परिभाषा के स्तर पर अमेरिकी बाजारों से दूर जाने में देर कर देंगे।
(लेखक अमांसा कैपिटल से जुड़े हैं)