देश का बैंकिंग क्षेत्र मजबूत स्थिति में है। विभिन्न मानकों मसलन पूंजी पर्याप्तता, प्रॉविजन कवरेज अनुपात, नकदी कवरेज अनुपात, परिसंपत्ति पर रिटर्न और ऋण के अनुपात में सकल फंसे हुए कर्ज (जीएनपीए) के आधार पर यह क्षेत्र आज ऐसी मजबूती दिखा रहा है जैसी पांच साल पहले सोची भी नहीं जा सकती थी।
व्यवस्था में पूंजी पर्याप्तता 17.3 फीसदी है। सरकारी बैंकों की पूंजी पर्याप्तता 16.2 फीसदी है। इसका नियामकीय रूप से तय न्यूनतम स्तर 5 फीसदी से ऊपर रहना समझदारी भरा और स्थिरता प्रदान करने वाला है। परिसंपत्ति पर रिटर्न (आरओए) की बात करें तो वह सभी बैंकों के लिए 1.4 फीसदी रहा। सरकारी बैंकों का आरओए 1.1 फीसदी रहा जो बैंकिंग में 1 फीसदी के मानक से बेहतर है।
जब कोई बैंक 1 फीसदी या अधिक का आरओए उत्पन्न करता है तो वह बाजार से पूंजी हासिल करने को लेकर निश्चिंत रह सकता है। दूसरे शब्दों में सरकारी बैंकों को पूंजी सहायता के लिए सरकार की बाट नहीं जोहनी होती। एक सवाल अक्सर पूछा जाता है कि सरकारी बैंक उच्च रिटर्न हासिल करने वाले निजी बैंकों के साथ प्रतिस्पर्धा कैसे करें? इसका जवाब यह है कि जब तक वे बाजार से पूंजी जुटा सकते हैं, वे अपनी शर्तों पर प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं। बैंकिंग क्षेत्र मजबूत कदमों से चलता रहेगा। हमारे पास निजी बैंक हैं जो आम जनता को सेवाएं देते हुए अपने मुनाफे को अधिकतम करना चाहते हैं तो वहीं सरकारी बैंक भी हैं जो मुनाफे के साथ-साथ बाजार और सामाजिक लक्ष्यों का भी ध्यान रखकर चलते हैं। यह पूरा मॉडल तब तक व्यवहार्य बना रहता है जब तक कि मुनाफे का मानक पूरा होता रहता है। लब्बोलुआब यह है कि फिलहाल बैंकिंग मजबूत स्थिति में है। इसके अलावा भारतीय रिजर्व बैंक की ताजा वित्तीय स्थायित्व रिपोर्ट (जून 2025) से कुछ बिंदु उभरते हैं।
सबसे पहले, 2024-25 में ऋणवृद्धि में उल्लेखनीय गिरावट आई और यह 2023-24 के 16 फीसदी और 2022-23 के 15.4 फीसदी से कम होकर 11 फीसदी रह गई। 2024-25 में सरकारी बैंकों की ऋण वृद्धि निजी बैंकों से अधिक रही। इसका अर्थ यह हुआ कि वर्षों की गिरावट के बाद उनकी बाजार हिस्सेदारी बढ़ी है।
ऋणवृद्धि में धीमापन सोचा समझा था और इसे नियामक ने तय किया था। रिजर्व बैंक की दो चिंताएं थीं। पहली, ऋण वृद्धि जमा वृद्धि से आगे निकल रही थी और इसका अर्थ यह था कि इसकी भरपाई उच्च लागत वाले अस्थिर फंड्स से की जा रही थी। दूसरा, पर्सनल लोन और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) जैसे क्षेत्रों में वृद्धि असहज करने के स्तर तक अधिक थी। अप्रैल 2022 से मार्च 2024 के बीच खुदरा क्षेत्र को बैंक ऋण 25.2 फीसदी की गति से बढ़ा और सेवा क्षेत्र को ऋण,जिसमें एनबीएफसी को दिया गया बैंक ऋण शामिल है, वह 22.4 फीसदी की गति से बढ़ा। यह 16.4 फीसदी की समग्र ऋण वृद्धि से काफी अधिक था आरबीआई ने दोनों क्षेत्रों पर जोखिम भार बढ़ाया जिससे इनमें ऋण वृद्धि में कमी आई।
दूसरा, ऋण वृद्धि में धीमेपन ने मुनाफे में वृद्धि पर विपरीत असर नहीं डाला। सभी बैंकों के लाभप्रदता में मामूली कमी आई लेकिन सरकारी बैंकों की लाभप्रदता 0.9 फीसदी से बढ़कर 1.1 फीसदी हो गई। सभी बैंकों का कर पश्चात लाभ 17 फीसदी बढ़ा। सरकारी बैंकों में यह 32 फीसदी बढ़ा। इसमें परिचालन लाभ का प्रमुख योगदान रहा।
तीसरी बात, 2024-25 में सूक्ष्म, लघु और मझोले उपक्रमों यानी एमएसएमई को ऋण ने अन्य सभी क्षेत्रों को पीछे छोड़ दिया। एमएसएमई को दिए जाने वाले ऋण में 14.1 फीसदी की दर से बढ़ोतरी हुई जबकि सेवा क्षेत्र में यह वृद्धि 11.2 फीसदी और खुदरा ऋण में 11.7 फीसदी थी। खुदरा ऋण में एमएसएमई क्षेत्र का हिस्सा मार्च 2024 के 17 फीसदी से बढ़कर मार्च 2025 में 17.7 फीसदी हो गया।
चौथी बात, व्यवस्था में सकल एनपीए ऋण के 2.3 फीसदी रह गया है जो अब तक का न्यूनतम है। एमएसएमई के एनपीए में भारी कमी आई है। इस क्षेत्र का सकल एनपीए 2022-23 के 6.8 फीसदी से घटकर 2023-24 में 4.5 फीसदी और 2024-25 में 3.6 फीसदी रह गया है।
एमएसएमई क्षेत्र का एनपीए ऐतिहासिक रूप से 9 फीसदी या उससे अधिक रहा है। कुछ वर्ष पहले तक सरकारी बैंकों के बैंकर आश्चर्य जताते थे कि भला एमएसएमई की ऋण की दिक्कतों से कैसे निपटा जाएगा। 2024-25 में एसएमई क्षेत्र को सरकारी बैंकों ने निजी बैंकों से अधिक ऋण दिया। इससे पुराना रुझान उलट गया। क्या एमएसएमई को दिए जाने वाले ऋण में कुछ बुनियादी परिवर्तन आया है। उनके फंसे कर्ज में भारी कमी कैसे आई?
रिजर्व बैंक को केवल आंकड़े पेश करने के बजाय इस पर प्रकाश डालना चाहिए था। यह भी सही है कि एमएसएमई की फाइनैंसिंग के लिए बैंकरों को ट्रेड रिसीवेबल्स डिस्काउंटिंग सिस्टम यानी टीआरईडीएस जैसे नवाचारी तरीके मिले हैं। यह एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म है जो निगमों, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों और सरकारी विभागों से एमएसएमई के ट्रेड रिसीवेबल्स यानी व्यापारिक प्राप्तियों पर फाइनैंसिंग की सुविधा प्रदान करता है। इन्हें कम जोखिम वाला माना जाता है।
वर्ष 2023-24 में एमएसएमई के बहीखाते में टीआरईडीएस बुक की हिस्सेदारी 2.7 लाख करोड़ रुपये यानी करीब 10 फीसदी थी। इससे समूचे एमएसएमई क्षेत्र के 3.6 फीसदी का एनपीए स्तर समझ नहीं आता। इमरजेंसी क्रेडिट लाइन गारंटी स्कीम (ईसीएलजीएस) में एनपीए का स्तर 5.6 फीसदी है। याद रहे कि इसे मई 2020 में महामारी के दौरान शुरू किया गया था ताकि एमएसएमई को अतिरिक्त ऋण मुहैया कराया जा सके। इसकी अहर्ता शर्तें काफी सख्त थीं।
वर्ष 2021-23 के बीच ईसीएलजीएस के तहत दिया गया ऋण करीब 3.68 लाख करोड़ रुपये या 2024-25 में एमएसएमई के बकाया ऋण का 12 फीसदी था। अगर ईसीएलजीएस ऋण का कुल एनपीए 5.6 फीसदी और कुल एमएसएमई ऋण का एनपीए 3.6 फीसदी है तो यकीनन बाकी 88 फीसदी एमएसएमई ऋण का प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा है। इसे समझने की जरूरत है। क्या इसकी व्याख्या विगत कुछ वर्षों में एमएसएमई ऋण में आई तेजी से की जा सकती है? अगर ऐसा है तो आने वाले वर्षों में फंसे कर्ज में इजाफा नजर आएगा। ऐसे में रिजर्व बैंक के स्ट्रेस टेस्ट के अनुमान आशावादी साबित हो सकते हैं।
बैंकों ने कर्ज देने में जोखिम से बचने का नजरिया अपनाया है। ऋण वृद्धि उद्योग को दिए गए कार्यशील पूंजी ऋण, खुदरा ऋण और एनबीएफसी सहित सेवा क्षेत्र को दिए गए ऋण के भरोसे हुई है। वर्ष 2024-25 में एमएसएमई को दिया गया ऋण अन्य क्षेत्रों को दिए गए ऋण से कहीं अधिक तेजी से बढ़ा। यह एक बड़ा बदलाव था। इस बदलाव का परिसंपत्ति गुणवत्ता पर प्रभाव देखने के लिए हमें एक दो वर्ष प्रतीक्षा करनी होगी।
असली परीक्षा की घड़ी तब आएगी जब निजी निवेश बढ़ने पर बैंक सावधि ऋण और परियोजना वित्त की रफ्तार बढ़ाएंगे। एनपीए में भारी गिरावट का जश्न तब तक नहीं मनाया जाना चाहिए जब तक कि बैंक हाल के वर्षों की तुलना में अधिक जोखिम उठाना न शुरू कर दें।