पिछले कई वर्षों से भारत सहित दुनिया के कई देश चीन से आयातित सस्ते सामान से अपने स्थानीय उद्योगों को होने वाले नुकसान को लेकर चिंतित रहे हैं। अमेरिका और चीन के बीच जारी व्यापार युद्ध के कारण हाल में यह चिंता और बढ़ गई है। 16 जून तक अमेरिका ने चीन के आयात पर प्रभावी शुल्क बढ़ाकर 55 फीसदी कर दिया है।
अमेरिका को निर्यात होने वाली वस्तुओं पर मोटा शुल्क लगने के बाद चिंता बढ़ गई है कि चीन अपने सामान दूसरे बाजारों में खपाना शुरू कर देगा। इसके जवाब में भारत जैसे कई देश अपने स्थानीय उद्योगों के हित सुरक्षित रखने के लिए डंपिंग-रोधी शुल्क (एडीडी) का इस्तेमाल कर रहे हैं।
भारत दुनिया में डंपिंग-रोधी शुल्कों का सबसे अधिक इस्तेमाल करने वाला देश बन गया है। यह न केवल चीन बल्कि दूसरे देशों के खिलाफ भी एडीडी का इस्तेमाल कर रहा है। सस्ते सामान देसी बाजार में आना चिंता का कारण जरूर है मगर भारत जिस तरह बड़े पैमाने पर एडीडी का इस्तेमाल कर रहा है उससे नई समस्याएं खड़ी हो सकती हैं। इसे देखते हुए नीति निर्धारकों को एडीडी का इस्तेमाल सावधानी और पूरी सतर्कता के साथ करना चाहिए।
अंतरराष्ट्रीय व्यापार में डंपिंग तब होती है जब कोई देश अपना सामान विदेशी बाजारों में उचित बाजार मूल्य से कम पर बेचना शुरू कर देता है। विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) सीधे तौर पर डंपिंग को अनुचित नहीं मानता है मगर स्थानीय उद्योग को ‘बड़ा नुकसान’ पहुंचने की स्थिति में ही यह देशों को डंपिंग रोधी शुल्क लगाने की इजाजत देता है।
चीन डंपिंग रोधी शुल्क के निशाने पर सबसे अधिक रहा है। 2001 में डब्ल्यूटीओ में इसके शामिल होने के बाद डंपिंग रोधी मामलों को लेकर जितनी जांच शुरू हुई है उनमें 25 फीसदी मामलों में चीन लिप्त है। दूसरी तरफ, भारत कुछ उन विकासशील देशों में शामिल है जिन्होंने लंबे समय से एडीडी लगाने के मामले में कोई कोताही नहीं बरती है। वर्ष 1995 से 2023 तक भारत ने 1,100 डंपिंग-रोधी मामलों की जांच शुरू की (अमेरिका और यूरोपीय संघ से भी अधिक) और इनमें न केवल चीन बल्कि यूरोपीय संघ, स्विट्जरलैंड, दक्षिण कोरिया, जापान सभी को निशाना बनाया गया है। वर्ष 2024 में भारत ने व्यापारिक संतुलन बहाल रखने के लिए 47 जांच की शुरुआत की जिनमें 37 चीन के उत्पादों जैसे एल्युमीनियम फॉयल, वैक्यूम फ्लास्क और इस्पात से संबंधित थे।
कुछ मामलों में एडीडी स्थानीय उद्योगों को सुरक्षित रखने में मदद कर सकते हैं मगर उनके इस्तेमाल के साथ कुछ खामियां भी जुड़ी हैं। सबसे पहले तो एडीडी लगाने से स्थानीय उद्योगों के लिए लागत बढ़ सकती है जिससे उनकी प्रतिस्पर्द्धी क्षमता पर प्रतिकूल असर होगा। मार्च 2024 में भारत ने चीन और हॉन्ग कॉन्ग से आयातित प्रिंटेड सर्किट बोर्ड (पीसीबी) पर 30 फीसदी एडीडी लगा दिया था। इससे आईटी हार्डवेयर विनिर्माता कंपनियों के लिए उत्पादन लागत 1-4 फीसदी तक बढ़ गई। इनमें से कई कंपनियां सरकार की उत्पादन संबंधी प्रोत्साहन (पीएलआई) का हिस्सा थीं।
मगर बढ़ी लागत से उनके मुनाफे और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा करने की उनकी क्षमता को नुकसान पहुंचा। इससे विनिर्माण और निर्यात बढ़ाने के लिए शुरू पीएलआई योजना के उद्देश्य भी प्रभावित हुए। घरेलू पीसीबी आपूर्तिकर्ता गुणवत्ता से जुड़े मुद्दों के कारण पेश चुनौतियों का मुकाबला नहीं कर पाए जिससे इलेक्ट्रॉनिक्स एवं लाइटिंग कंपनियों को ऊंची लागत का वहन करना पड़ा या उन्हें उपभोक्ताओं पर इसका बोझ डालना पड़ा।
दूसरी बात, एडीडी सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों (MSME) की सेहत पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। एमएसएमई पहले ही नियमों के अनुपालन के बोझ से परेशान चल रहे हैं। बड़ी कंपनियां तो रियायतों के लिए सरकार पर दबाव भी डाल सकती हैं मगर एसएमएमई के पास ऊंची लागत वहन करने या कारोबार बंद करने के अलावा दूसरा रास्ता नहीं बचता है। जब भारत ने 2017 में बांग्लादेश और नेपाल से जूट रेशों और परिधान के आयात पर एडीडी लगा दिया तो भारतीय जूट मिलों को तत्काल फायदा मिला मगर इस कदम से छोटे पैकेजिंग एवं परिधान कारोबारों को नुकसान पहुंचा। इनमें केवल एक संयंत्र से काम करने वाली कई इकाइयों को बढ़ी उत्पादन लागत से जूझना पड़ा।
तीसरी बात, एडीडी वृहद राष्ट्रीय नीति उद्देश्यों के साथ टकराव भी उत्पन्न कर सकते हैं। भारत ने 2024 में स्थानीय उत्पादकों को चीन से आयातित सोलर ग्लास की मार से बचाने के लिए उस पर एडीडी लगा दिया। इससे सोलर फोटोवोल्टिक (पीवी) मॉड्यूल के दाम 10-12 फीसदी तक बढ़ गए। इसका नतीजा यह हुआ कि परियोजना लागत 7-8 फीसदी बढ़ गई जिससे विनिर्माताओं (डेवलपर) को अनुबंधों पर दोबारा बातचीत करनी पड़ी और बड़ी परियोजनाएं टालनी पड़ीं। इससे स्वच्छ ऊर्जा की तरफ कदम बढ़ाने की भारत की गति पर भी प्रतिकूल असर हुआ। एडीडी लगाने से सौर ऊर्जा महंगी हो गई और इसमें (सौर ऊर्जा) निवेशकों की दिलचस्पी कम हो गई और अक्षय ऊर्जा उत्पादन का राष्ट्रीय लक्ष्य प्राप्त करने की राह मुश्किल हो गई।
सार यह है कि बार-बार एडीडी लगाने से कारोबार एवं व्यवसायों के लिए अनिश्चितता बढ़ती है और उन्हें दीर्घ अवधि की योजना तैयार करने में परेशानी पेश आती है। पिछले पांच वर्षों के दौरान भारत ने 418 उत्पादों (जिनमें ज्यादातर रसायन क्षेत्र में थे) के खिलाफ 133 डंपिंग-रोधी कदम उठाए हैं। जो कंपनियां कच्चे माल के स्रोत के रूप में इन रसायनों पर निर्भर रहती हैं उन पर अचानक शुल्क लगने की तलवार लटकी रहती हैं। इसका नतीजा कीमतों में उतार-चढ़ाव और आपूर्ति तंत्र में बाधा के रूप में सामने आता है। यह भी सच है कि चीन का अनुचित व्यापार व्यवहार चिंता का वास्तविक कारण बना हुआ है और डंपिंग के कुछ खास उदाहरण स्थानीय कारोबारियों को नुकसान की स्थिति में डाल देते हैं।
अब प्रश्न यह है कि भारत को क्या करना चाहिए? भारत के नीति निर्धारकों को एडीडी का इस्तेमाल सावधानीपूर्वक करना चाहिए और तभी करना चाहिए जब ऐसा करने की ठोस वजह एवं सबूत उपलब्ध हों। इस बात का ठोस प्रमाण होना जरूरी है कि विदेशी सामान उचित मूल्य से नीचे भारतीय बाजार में बेचे जा रहे हैं जिससे उन उद्योगों को गंभीर नुकसान पहुंच रहा है जहां भारत तुलनात्मक रूप से मजबूत स्थिति में है। संबंधित क्षेत्रों पर लागत-लाभ का विश्लेषण भी किया जाना चाहिए। ‘आर्थिक हित परीक्षण’ इसका एक उपयोगी तरीका हो सकता है जिसका इस्तेमाल ब्रिटेन करता है।
‘आर्थिक हित परीक्षण’ के जरिये उत्पादकों, उपभोक्ताओं और डाउनस्ट्रीम (परिवहन एवं वितरण) कंपनियों की आवश्यकताओं में संतुलन साधने और भारत को श्रेष्ठ वैश्विक व्यवहारों से जोड़ने में मदद मिलेगी। इससे कुछ बड़ी कंपनियों को आयात रोकने के लिए एडीडी का बेजा इस्तेमाल करने से भी रोका जा सकेगा। पिछले तीन वर्षों के दौरान एडीडी से जुड़े एक तिहाई मामले ऐसे थे जो इक्की-दुक्की घरेलू कंपनियों की शिकायतों पर आधारित थे। यह इस बात की ओर इशारा कर रहा है कि कभी-कभी एक-दो कंपनियों का दबदबा बरकरार रखने के लिए भी एडीडी इस्तेमाल में लाए जाते हैं।
दुनिया सहित भारत में भी संरक्षणवाद तेजी से बढ़ रहा है और इसे देखते हुए एडीडी को इसका जरिया बनने से रोका जाना चाहिए। नीति निर्धारकों को उन सुधारों पर ध्यान देना चाहिए जो स्थानीय कंपनियों में प्रतिस्पर्द्धा करने की क्षमता बढ़ाते हैं। इन सुधारों में बेहतर बुनियादी ढांचा, सरल नियम और कारक बाजार (फैक्टर मार्केट) में बदलाव शामिल हैं।
विनिर्माण को ताकत देने और व्यापार से लाभान्वित होने के लिए भारत को वैश्विक आपूर्ति व्यवस्था का हिस्सा बनना चाहिए न कि उससे दूरी बनानी चाहिए। इसके लिए एडीडी जैसे उपायों का सावधानी और सूझबूझ के साथ इस्तेमाल करना चाहिए।
(राजेश्वरी सेनगुप्ता आईजीआईडीआर, मुंबई में अर्थशास्त्र की एसोसिएट प्रोफ़ेसर और निहारिका यादव द एशिया ग्रुप में एसोसिएट हैं।)