जून 2020 से शेयर बाजार में शानदार तेजी देखी जा रही है। इस दौरान पिछले 30 वर्षों की तुलना में खुदरा निवेशकों ने समय और रकम दोनों लिहाज से अपनी भागीदारी अधिक बढ़ाई है। इस दौरान खुदरा निवेशक बाजार में डुबकी लगाने के किसी अवसर से नहीं चूके हैं। कई दशकों में पहली बार एक समूह के रूप में खुदरा निवेशकों ने नकद बाजार में कारोबार पर दबदबा कायम किया है। इस बाजार में रोजाना करीब 60,000 करोड़ रुपये का कारोबार होता है। पिछले छह वर्षों के दौरान वित्त वर्ष 2016 की 33 प्रतिशत की तुलना में व्यक्तिगत निवेशकों की हिस्सेदारी 12 प्रतिशत अंक बढ़कर वित्त वर्ष 2021 में 45 प्रतिशत हो गई। खासकर वित्त वर्ष 2021 में खासी तेजी दर्ज की गई। इस बाजार में विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) एवं घरेलू संस्थागत निवेशकों (डीआईआई) की हिस्सेदारी कम होकर एक अंक में रह गई है। वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान औसतन प्रति महीने 12 लाख डीमैट खाते खुले हैं। वित्त वर्ष 2019-20 में यह आंकड़ा औसतन 4.20 लाख रहा था। इस वर्ष ऐसे खाते खुलने की दर दोगुना हो गई जब पहली तिमाही में मासिक औसत डीमैट खातों की संख्या 24 लाख तक पहुंच गई। इनमें अधिकांश खाते खुदरा निवेशकों के हैं।
हालांकि जब बाजार पूरे उफान पर होता है तो गलतियों की शुरुआत भी यहीं से होती है। जैसा हमने पहले भी देखा है कि शेयर बाजार में तेजी के दौरान जब बड़ी संख्या में नए निवेशक छलांग लगाते हैं तो वे अपने साथ कुछ जोखिम भी साथ लाते हैं। फिलहाल दो ऐसे रुझान दिख रहे हैं जो हालात और बिगाड़ सकते हैं। ये रुझान पहले नहीं दिखे थे। इनमें एक है तकनीक जिससे अल्गोरिद्म के जरिये स्व-चालित कारोबार को बढ़ावा मिल रहा है। दूसरा रुझान है सोशल मीडिया का विस्तार जहां एक बड़े भेड़-चाल की प्रवृत्ति जन्म ले सकती है जो शायद पहले नहीं देखी गई है। इन दोनों कारणों से सहजता एवं सरलता बढ़ी है और लोगों में एक दूसरे के साथ चीजें साझा करने की भी प्रवृत्ति बढ़ी है। ये खूबियां निवेशकों के हितों के खिलाफ भी जा सकती हैं। उत्सव कपूर के साथ जो कुछ हुआ वह आने वाले खतरे की घंटी है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) से पढ़ाई कर चुके उत्सव की नौकरी कोविड-19 महामारी के कारण अप्रैल 2020 में छिन गई। उनके पास बचत के रूप में 25 लाख रुपये (सभी सावधि जमा) में थे। उसी समय बेंगलूरु की एक कंपनी मार्केटकॉल्स ने उत्सव से संपर्क किया। उन्होंने शेयर कारोबार की रणनीति सीखने के लिए कंपनी को फीस के रूप में करीब 1.2 लाख रुपये दिए। मार्केटकॉल्स ने कारोबार के लिए उच्च, उच्च तकनीक, सर्वर आधारित सॉफ्टवेयर ‘अल्गोमोजो’ की शुरुआत की। इस सॉफ्टवेयर की मदद से बिना किसी निगरानी के सर्वर आधारित अल्गो कारोबार आसान हो गया। इसने कई कारोबारी रणनीतियां भी बताईं। इस तकनीक के इस्तेमाल से चार महीनों में उत्सव को 8 लाख रुपये की चपत लग गई। इस अल्गो का दावा था कि उसका नुस्खा आजमाया हुआ है और इससे शानदार प्रतिफल मिलेगा। अल्गो ट्रेडिंग शेयर बाजार में कारोबार करने का वह जरिया होता है जिसके तहत पहले से तैयार स्वचालित निर्देशों के तहत शेयरों की खरीद-फरोख्त होती है और मानव निगरानी की जरूरत नहीं होती है।
हतोत्साहित होकर उत्सव ने एक और ऐप ‘ट्रेडट्रॉन’ का सहारा लिया। ट्रेडट्रॉन के बारे में कहा गया कि इससे हरेक महीने शेयर बाजार से 20 प्रतिशत या इससे अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है। यह भी अल्गो ट्रेडिंग के लिए सर्वर आधारित ऐप है जिसमें किसी मानव हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है। वास्तव में ट्रेडट्रॉन एक ऐसा माध्यम (मार्केटप्लेस) है जहां कारोबारी नुस्खे बताने वाले लोग निवेशकों को रणनीति समझाते हैं। उत्सव कहते हैं, ‘इनमें प्रत्येक रणनीतिकार आकर्षक प्रतिफल का वादा करते हैं और अपने तर्कों से किसी को भी प्रभावित कर देते हैं।’ उत्सव कहते हैं कि ट्रेडट्रॉन का यूजर इंटरफेस (यूआई) किसी ऑनलाइन गेमिंग पोर्टल की तरह ही सुंदर है और लोगों को जल्द इसकी लत लग जाती है। उत्सव को यहां भी तगड़ा नुकसान हुआ। सितंबर 2020 से फरवरी 2021 के बीच उन्हें 20 लाख रुपये से अधिक नुकसान हो गया। कुल मिलाकर अल्गो ट्रेडिंग में उलझने के बाद एफडी के रूप में उनकी पूरी बचत खत्म हो गई और भविष्य निधि (प्रॉविडेंट फंड) में जमा रकम भी काफूर हो गई।
उत्सव ने डीमैट खाते खुलवाने के बाद अप्रैल 2020 और फरवरी 2021 के बीच छह ब्रोकिंग कंपनियों के जरिये कारोबार किया। इनमें सभी ब्रोकिंग कंपनियों ने अल्गो ट्रेडिंग की सिफारिश की थी। उत्सव मानते हैं कि उन्होंने कारोबार जारी रख कर बेवकूफी की मगर उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि वह शेयर बाजार से मुनाफा कमाने के लिए उतने तेज-तर्रार नहीं थे। वह कहते हैं, ‘उनकी इस मान्यता की वजह इन अल्गो प्लेटफॉर्म द्वारा चलाया गया दुष्प्रचार था।’ हालांकि उन्होंने अल्गोरिद्म पर गहराई से शोध करना शुरू किया और पाया कि अल्गो प्लेटफॉर्म नैशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) और भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) द्वारा तय नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं। इस बीच, ब्रोकरेज कंपनी आईआईएफएल सिक्योरिटीज उत्सव को ‘नया एवं सबसे अलग’ प्लेटफॉर्म अल्गोबाबा आजमाने के लिए लगातार कॉल कर रही है।
मेरा मानना है कि जब बाजार में अनिश्चितता बढ़ेगी और अल्गो का चलन जोर पकड़ेगा तो उत्सव जैसे कई लोग मिल जाएंगे। पिछली बार जब कीमतें निचले स्तर आई थीं तो अपने दम पर निवेश संबंधी निर्णय लेने वाले निवेशकों का रवैया तर्कसंगत नहीं रह गया। आने वाले समय में अल्गो के जरिये स्वचालित कारोबार ऐसी उथल-पुथल को बढ़ावा दे सकता है जिससे हमेशा से पेचीदा समझे जाने वाले बाजार में अनिश्चितता और बढ़ सकती है। वास्तव में हमारे पास इस बात का उदाहरण मौजूद है कि बिना सोच-विचार के लिए गए निर्णय किस तरह हालात बिगाड़ सकते हैं। 19 अक्टूबर, 1987 को प्रोग्राम्ड ट्रेडिंग से एक ही दिन अमेरिका में डाऊ जोन्स इंडस्ट्रियल इंडेक्स 22.6 प्रतिशत तक लुढ़क गया। इससे दुनिया के बाजारों में हाहाकार मच गया और वे 20-45 प्रतिशत तक फिसल गए। इसका कारण एक ट्रेडिंग प्रोग्राम था जिसे पोर्टफोलियो इंश्योरेंस का नाम दिया गया। इसमें कहा गया था कि शेयरों के नए निचले स्तर पर जाते ही बिकवाली शुरू कर देनी चाहिए। इस तरह का ट्रेडिंग प्रोग्राम शेयर बाजार में गिरावट लाएगा क्योंकि इसके बाद गिरावट, बिकवाली, गिरावट और फिर बिकवाली का सिलसिला थमने का नाम नहीं लेगा।
ऐसी किस बड़ी गिरावट के सभी कारण स्पष्ट रूप से मौजूद हैं। इसमें पहला है ब्रोकरेज कंपनियों द्वारा कारोबार को बढ़ावा देने के लिए अल्गो ट्रेडिंग का प्रचार-प्रसार करना। दूसरी बात यह है कि इसे शुरू करने के लिए कोडिंग की जरूरत नहीं होती है। तीसरी गौर करने वाली बात यह है कि यह कम समय में निवेशकों को अपना आदि बना लेता है। इतना ही नहीं, इसका इस्तेमाल आसान होता है और शोध, विश्लेषण आदि की जरूरत नहीं है। पांचवीं बात यह है कि इसमें एक साथ कई दांव खेले जा सकते हैं। बस एक बाहरी कारक चाहिए और बाजार में ऐसी उथल-पुथल मचेगी जिसे संभालना मुश्किल हो जाएगा। यह ठीक उसी तरह होगा जैसे अत्यधिक ज्वलनशील टैंक के पास माचिस की तीली सुलगाना। अफसोस की बात है कि सेबी इसे खतरे के रूप में नहीं देख रहा है और खुदरा अल्गो का नियमन करने में भी दिलचस्पी नहीं ले रहा है। इससे पूरा बाजार पर खतरा मंडरा रहा है।
(लेखक डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट मनीलाइफ डॉट इन के संपादक हैं।)
