facebookmetapixel
Corporate Action Next Week: अगले हफ्ते शेयर बाजार में स्प्लिट-बोनस-डिविडेंड की बारिश, निवेशकों की चांदीBFSI फंड्स में निवेश से हो सकता है 11% से ज्यादा रिटर्न! जानें कैसे SIP से फायदा उठाएं900% का तगड़ा डिविडेंड! फॉर्मिंग सेक्टर से जुड़ी कंपनी का निवेशकों को तोहफा, रिकॉर्ड डेट अगले हफ्तेDividend Stocks: निवेशक हो जाएं तैयार! अगले हफ्ते 40 से अधिक कंपनियां बांटेंगी डिविडेंड, होगा तगड़ा मुनाफाStock Split: अगले हफ्ते दो कंपनियां करेंगी स्टॉक स्प्लिट, छोटे निवेशकों के लिए बनेगा बड़ा मौकादेश में बनेगा ‘स्पेस इंटेलिजेंस’ का नया अध्याय, ULOOK को ₹19 करोड़ की फंडिंगस्पैम और स्कैम कॉल्स से राहत! CNAP फीचर से पता चलेगा कॉल करने वाला कौनमुंबई बना एशिया का सबसे खुशहाल शहर; बीजिंग, शंघाई और हॉन्ग कॉन्ग को छोड़ दिया पीछेBonus Stocks: अगले हफ्ते दो कंपनियां देंगी बोनस शेयर, जानिए कौन से निवेशक रहेंगे फायदे मेंसंसद का शीतकालीन सत्र 1 से 19 दिसंबर तक चलेगा, संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने दी जानकारी

वर्ष 2025 में निदेशक मंडलों का एजेंडा

कारोबारों की प्रगति के साथ ही परिचालन का माहौल अधिक पेचीदा हो जाता है और निवेशकों की अपेक्षाएं भी बढ़ जाती हैं। इन्हें देखते हुए सभी की नजरें बोर्ड पर टिकी होंगी।

Last Updated- January 13, 2025 | 10:49 PM IST
women directors in company boards

नया साल यानी 2025 उथल-पुथल भरा रह सकता है। ऐसे में निदेशक मंडलों (बोर्ड) पर अपनी कंपनियों को इस नए साल में नई चुनौतियों से उबारने की जिम्मेदारी होगी। नीचे कुछ प्रमुख मुद्दों की चर्चा की जा रही है जो बोर्ड की कार्यसूची या उनके कामकाज में शीर्ष पर रह सकते हैं।

भू-राजनीतिः निदेशक मंडलों की बैठकों में भू-राजनीति से जुड़े मुद्दों को बहुत अहमियत नहीं दी जाती है। औपचारिक बैठकों से पहले और इनके बाद इस विषय पर थोड़ी बहुत चर्चा हो जाती है। मोटे तौर पर सोच यही रही है कि एकल मुद्रा के साथ भारत एकल बाजार है और मुद्रा भी एक है। मगर वर्तमान परिस्थितियों में भारत को अलग-थलग नहीं माना जा सकता। दो विश्व युद्ध हमें इस बात का एहसास भी करा चुके हैं। वास्तव में यह कहा जा सकता है कि अर्थव्यवस्था जिस रफ्तार से और जिस स्तर पर काम कर रही है उसे देखते हुए छोटी-छोटी घटनाएं एक देश से दूसरे देश पर बड़ा असर डाल सकती हैं, इसलिए दुनिया में हो रहे घटनाक्रम को बिल्कुल नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।

आपूर्ति व्यवस्था में बाधा, शुल्कों पर देशों की आपसी तनातनी, द्विपक्षीय समझौते जैसे सभी मुद्दे राजनीति एवं नीतियों – मौद्रिक, राजकोषीय, शुल्क संरचना और प्रोत्साहनों – पर असर डालते हैं और कारोबारी रणनीति का निर्धारण करते हैं। कारोबार में ‘स्थानीय’ मजबूती ही सुरक्षा की गारंटी नहीं हो सकती। उदाहरण के लिए ऑस्ट्रेलिया-भारत आर्थिक सहयोग एवं व्यापार समझौता भारतीय शराब की कीमतें निर्धारित करने की क्षमता को प्रभावित करता है। इस समझौते के अंतर्गत शराब पर शुल्क कम करने का प्रावधान है। बोर्ड और कार्यकारी नेतृत्व के लिए बाहरी दुनिया में हो रहे घटनाक्रम पर नजर रखे रहना जरूरी है ताकि वे जोखिमों को पहचान सकें और निरंतर बदलाव से उत्पन्न अवसरों का लाभ उठा सकें।

एआई/जेनेरेटिव एआईः बोर्ड को अपने मुख्य काम-काम एवं संचालन में आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) को शामिल करने पर ध्यान देना चाहिए। ऐसा करने से उन्हें अपना प्रदर्शन बेहतर बनाने और नवाचार तथा नए बदलाव लाने में जेनेरेटिव एआई का लाभ उठाने में मदद मिलेगी। निर्णय लेने की प्रक्रिया में सुधार और परिचालन क्षमता मजबूत बनाने में हमारी मदद कर एआई हमें रणनीतिक लाभ पहुंचाती है। एआई का पूर्वाभासी विश्लेषण (प्रीडिक्टिव एनालिटिक्स) राजस्व के नए स्रोत पहचान कर सकता है और कारोबारों के समक्ष चुनौतियां दूर करने में मदद कर सकता है। जिस तेजी से बदलाव हो रहे हैं, उन्हें देखते हुए जो संगठन या संस्थान एआई नहीं अपना रहे हैं उनके सामने अपने प्रतिस्पर्द्धियों से पीछे छूटने का जोखिम भी है।

बोर्ड को कर्मचारियों का कौशल बढ़ाने में निवेश करना चाहिए ताकि वे इस तकनीक का कारगर तरीके से इस्तेमाल कर सकें। संस्थान के प्रदर्शन और जोखिमों पर एआई के प्रभावों की नियमित समीक्षा करना भी जरूरी है। एआई को तरजीह देकर बोर्ड अपने संगठनों को भविष्य में होने वाले बदलावों के लिए तैयार कर सकते हैं और तेजी से बदलती डिजिटल व्यवस्था में गतिशील बनाए रख सकते हैं। साथ ही नवाचार और विकास भी तेजी से आगे बढ़ता रहेगा।

कर्मचारियों की नियुक्ति और जुड़ावः एक कुशल और प्रेरित श्रमबल किसी भी संगठन की सफलता की बुनियाद होती है। बोर्ड इस कार्य की जिम्मेदारी प्रायः प्रबंधन पर छोड़ देते हैं। मगर आज के हालात में इस कार्य पर बोर्ड का पूरा ध्यान होना चाहिए। भारतीय रिजर्व बैंक की हाल में प्रकाशित ‘भारत में बैंकिंग के रुझान एवं इसकी प्रगति’, 2023-24 रिपोर्ट बताती है कि ‘निजी क्षेत्र के बैंकों में कर्मचारियों की नौकरी छोड़ने की दर बढ़कर लगभग 25 प्रतिशत हो गई है’। इससे भर्ती एवं प्रशिक्षण पर खर्च बढ़ता है, परिचालन के लिए जोखिम काफी बढ़ जाता है, हुनरमंद लोग छोड़कर चले जाते हैं और बचे कर्मचारियों का मनोबल टूटता है। निदेशक मंडल की प्राथमिकता सूची में सबसे ऊपर मजबूत नियोक्ता की छवि तैयार करना, कार्यस्थल पर सकारात्मक माहौल को बढ़ावा देना और प्रतिस्पर्द्धी वेतन एवं करियर विकास के अवसर सुनिश्चित करना होना चाहिए।

दीर्घकालिक या दूरदर्शी सोचः निदेशक मंडलों ने दीर्घकालिक असर छोड़ने वाले उपायों पर गौर तो जरूर किया है मगर इसका दायरा बिजनेस रेस्पॉन्सिबिलिटी ऐंड सस्टेनेबिलिटी रिपोर्टिंग (बीआरएसआर) तक ही सीमित रख दिया है। इस कारण यह महज खानापूरी बनकर रह गया है। उन्हें अपनी रफ्तार बदलने की जरूरत है। पर्यावरण से जुड़ी बढ़ती चुनौतियों, नए दिशानिर्देशों, हितधारकों की उम्मीदों और ग्राहकों का विश्वास जीतने जैसी बातों को ध्यान में रखते हुए पर्यावरण पर ध्यान देना आवश्यक हो गया है।

उदाहरण के लिए पर्यावरण के प्रति जागरूक ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए टाटा मोटर्स टिकाऊ भविष्य के उपायों पर ध्यान केंद्रित करने में सक्षम रही है। पर्यावरण के अनुकूल व्यवहार जैसे अक्षय ऊर्जा का इस्तेमाल या कचरे में कमी करने जैसे उपाय परिचालन खर्च और नियामकीय एवं व्यवहारगत जोखिम कम करने में मददगार होते हैं। कर्मचारी, उपभोक्ता एवं निवेशक तेजी से पर्यावरण के प्रति जागरूक कंपनियों की तरफ मुड़ रहे है, जिसे देखते हुए बोर्ड के लिए अपनी प्रमुख रणनीतियों में पर्यावरण के अनुकूल एवं टिकाऊ उपायों को शामिल करना अनिवार्य हो गया है।

शेयरधारकों की भूमिकाः शेयरधारिता का ढांचा भी तेजी से बदल रहा है। अब प्रवर्तकों और खुदरा निवेशकों के प्रभाव के बजाय संस्थागत निवेशकों का दबदबा बढ़ गया है। यह अलग बात है कि स्वयं संस्थागत निवेश में भी बदलाव देखने को मिल रहे हैं। संस्थागत निवेशक अब ‘सक्रिय प्रबंधन, परोक्ष जुड़ाव’ से ‘परोक्ष प्रबंधन, सक्रिय जुड़ाव’ में बदल रहा है। कारोबार बढ़ाने, संचालन व्यवस्था मजबूत बनाने और बाजार में प्रभाव जमाने के लिए संस्थागत निवेशकों से मिल रहे पूंजी स्रोतों का कंपनियों को पूरा लाभ उठाना चाहिए। इसे देखते हुए बोर्ड को वित्तीय आंकड़ों के अलावा उन बातों (मजबूत कंपनी परिचालन व्यवहारों एवं प्रभावी तुलना) पर ध्यान देना चाहिए जो निवेशकों के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। ये सभी बातें बोर्ड के परंपरागत कार्यों की सूची में अमूमन शामिल नहीं रही हैं मगर कुछ विशेष बातें भी हैं जिन्हें कुछ बोर्डों के प्राथमिकता देनी होगी।

नई सूचीबद्धताः पिछले साल शेयर बाजार में लगभग 93 कंपनियां मुख्य एक्सचेंजों पर (और लगभग 240 लघु एवं मझोले उद्यम एक्सचेंज पर) सूचीबद्ध हुईं। कंपनी सूचीबद्ध हो या न हो, उसके लिए सफलता से जुड़ी बुनियादी बातें समान हैं मगर इनकी समय-सीमा भिन्न होती है। गैर-सूचीबद्ध परिवार-नियंत्रित कंपनियां सूचीबद्धता के बाद भी कारोबार पर पीढ़ीगत नजरिया रख सकती हैं भले ही बाजार उनका तिमाही आधार पर मूल्यांकन क्यों न करें। इन कंपनियों के लिए पारिवारिक नियंत्रण एक सुरक्षा कवच के रूप में काम करता है। प्राइवेट इक्विटी नियंत्रित गैर सूचीबद्ध कंपनियां मूल्य बढ़ाने पर ध्यान देती हैं ताकि निवेश बेचकर बाहर निकलने (अमूमन पांच वर्षों के भीतर) समय उन्हें ज्यादा से ज्यादा मुनाफा हो सके। इसलिए उनके पास लंबी अवधि के लक्ष्य तय करने का समय ही नहीं होता। सार्वजनिक निवेशकों का व्यवहार निजी इक्विटी और परिवारों के निवेशकों से काफी भिन्न है। सूचीबद्धता के बाद निदेशक मंडलों को कदम पीछे खींच लेने चाहिए और अपनी प्राथमिकताओं की दोबारा समीक्षा करनी चाहिए। इसके साथ ही उन्हें एक टिकाऊ कारोबार स्थापित करने के अलावा हितधारकों के बीच अपनी विश्वसनीयता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

पारिवारिक विवादों (जिनमें इजाफा हो रहा है और कुछ निदेशक मंडलों के लिए मायने भी रखते हैं) से निपटने जैसे मुद्दे या उत्तराधिकार योजना आदि के कारण बोर्ड का कामकाज हमेशा अहम बना रहता है। कारोबारों की प्रगति के साथ ही परिचालन का माहौल अधिक पेचीदा हो जाता है और निवेशकों की अपेक्षाएं भी बढ़ जाती हैं। इन्हें देखते हुए सभी की नजरें बोर्ड पर टिकी होंगी कि वे निगरानी एवं संचालन प्रक्रियाओं से जुड़े अपने दायित्वों का निर्वहन किस तरह करते हैं।
वर्ष 2025 के लिए शुभकामनाएं!

(लेखक प्रॉक्सी एडवाइजरी फर्म इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर एडवाइजरी सर्विसेस इंडिया लिमिटेड से जुड़े हैं)

First Published - January 13, 2025 | 10:32 PM IST

संबंधित पोस्ट