हरेक निवेश फायदा नहीं देता। मगर नुकसान कराने वाला निवेश भी आपको टैक्स लॉस हार्वेस्टिंग यानी कर देनदारी कम करने का मौका दे जाता है। निवेशक अपने पोर्टफोलियो में मौजूद शेयरों, म्युचुअल फंडों, एक्सचेंज ट्रेडेड फंडों (ETF) और दूसरी प्रतिभूतियों (securities) का कुछ हिस्सा घाटे में बेच सकते हैं और दूसरी प्रतिभूतियां बेचने पर जो पूंजीगत लाभ होता है, उसमें से घाटे के बराबर रकम पर कर देने से बच सकते हैं।
अंतरराष्ट्रीय कर वकील आदित्य रेड्डी कहते हैं, ‘इसमें घाटा करा रही और मुनाफा दे रही परिसंपत्तियां पहचानी जाती हैं और मुनाफे को घाटे से बराबर यानी ऑफसेट कर लिया जाता है।’ एक्विलॉ में कार्यकारी निदेशक और कर के राष्ट्रीय प्रमुख राजर्षि दासगुप्ता समझाते हैं कि इस तरह कर योग्य आय घट जाती है, जो ऊंचे कर दायरे में आने वाले करदाताओं के लिए अहम है।
कर नुकसान की हार्वेस्टिंग ऐसे शेयर या इक्विटी फंड की बिक्री से शुरू होती है, जो लगातार लुढ़क रहे हैं। घाटा उठाने के बाद आप इसकी भरपाई पूंजीगत लाभ से कर लेते हैं। इस तरह कुल पूंजीगत लाभ में से घाटा कम हो जाता है यानी टैक्स हार्वेस्टिंग पूंजीगत लाभ कम करा देती है, जिससे कर देनदारी भी घट जाती है।
यदि किसी निवेशक का पोर्टफोलियो घाटे में जा रहा है तो वह मुनाफे में चल रहे शेयर बेच सकता है और बाद में उन्हें दोबारा खरीद सकता है। टैक्समैन के उप महाप्रबंधक नवीन वाधवा कहते हैं, ‘मगर उसे ध्यान रखना चाहिए कि वह कितने पुराने शेयर बेच रहा है। अगर उसका घाटा अल्पावधि पूंजीगत नुकसान है तो वह नए-पुराने कोई भी शेयर बेच सकता है क्योंकि अल्पावधि पूंजीगत घाटे को अल्पावधि या दीर्घावधि पूंजीगत लाभ में से घटाया जा सकता है।’
घाटा दीर्घावधि है तो निवेशक को ऐसे शेयर ही बेचने चाहिए, जो 12 महीने से ज्यादा समय से उसके पास हैं। ये शेयर बेचने पर उसे दीर्घावधि पूंजीगत लाभ होगा, जिसमें से दीर्घावधि पूंजीगत नुकसान घटाया जा सकता है। वाधवा की सलाह है, ‘निवेशक चाहे तो नुकसान की भरपाई फौरन करने के बजाय उसे अगले आठ साल तक रख सकता है और आगे होने वाले पूंजीगत लाभ से उसकी भरपाई कर सकता है।’
टैक्स हार्वेस्टिंग कर देनदारी ही कम नहीं करती, कई दूसरे फायदे भी देती है। सीएनके में पार्टनर पल्लव प्रद्युम्न नारंग कहते हैं, ‘इससे आपका पोर्टफोलियो ज्यादा से ज्यादा मुनाफा देने वाला बन जाता है क्योंकि आपके पास केवल फायदा देने वाले शेयर ही बचते हैं।’
मगर टैक्स हार्वेस्टिंग की कीमत भी चुकानी होती है। आईपी पसरीचा ऐंड कंपनी के मनीत पाल सिंह कहते हैं कि परिसंपत्तियां बेचने पर आपको ट्रांजैक्शन शुल्क देना पड़ सकता है। कई बार बाजार में इतनी उठापटक चलती है कि आपकी पूरी कवायद बेकार हो जाती है।
वेद जैन ऐंड एसोसिएट्सप में पार्टनर अंकित जैन कहते हैं कि बेचे गए शेयर दोबारा खरीदने में ज्यादा देर हो गई तो पूरे फायदे पर पानी फिर जाता है। मान लीजिए आपने कोई शेयर बेचा और जब तक उसे वापस खरीदा तब तक उसका भाव बहुत चढ़ गया तो आपको कोई फायदा नहीं होगा। इसलिए जैन को लगता है कि कई बार एक साल में हुआ घाटा अगले साल के लिए टालना सबसे अच्छा रहता है।
यह उन निवेशकों के लिए कारगर है, जिन्हें भारी पूंजीगत लाभ हुआ हो। नारंग की राय है, ‘यह उनके लिए अच्छा हो सकता है, जिन्हें साल के अंत में नकदी की जरूरत है और जिनके पोर्टफोलियो में मौजूद कई शेयरों पर मुनाफा और कई पर घाटा हो रहा हो। इससे किसी खास परिसंपत्ति की बिकवाली का असर कम हो जाता है।’
सिंह के मुताबिक उन निवेशकों को इससे दूर रहना चाहिए, जो बेहद कम कर दायरे में आते हैं या जिनका कर ही नहीं बनता। ऐसे लोग भी इससे दूर रहें, जो कम समय के लिए निवेश कर रहे हैं और पोर्टफोलियो में तब्दीली नहीं करना चाहते। वाधवा कहते हैं कि दीर्घावधि पूंजीगत लाभ 1 लाख रुपये से कम है तो टैक्स हार्वेस्टिंग की जरूरत नहीं पड़ती।
विशेषज्ञ इस बारे में एकराय नहीं हैं कि कोई भी परिसंपत्ति बेचने के कितने समय बाद दोबारा खरीदनी चाहिए। कुछ कहते हैं कि निवेशक बेचे गए शेयरों को उसी दिन या कुछ दिन के भीतर दोबारा खरीद सकता है। कुछ का कहना है कि बेची गई परिसंपत्ति या उसी तरह की परिसंपत्ति कुछ समय रुककर खरीदने में ही समझदारी है।
अगर आप बिक्री और खरीद के बीच कुछ अंतराल नहीं रखते तो कर अधिकारी घाटे की भरपाई का आपका दावा यह करकर खारिज कर सकते हैं कि शेयर कर बचाने के इरादे से ही बेचे गए थे।
दिल्ली उच्च न्यायालय के वकील शशांक अग्रवाल कहते हैं कि पूंजीगत घाटे को किसी अन्य मद में लगने वाले आयकर से नहीं घटाया जा सकता। जिस मद में घाटा हुआ, उसी मद के आयकर में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।