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वित्त वर्ष 2024-25 के लिए आयकर रिटर्न भरने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। आकलन वर्ष 2025-26 के लिए आयकर विभाग ने ITR-1 और ITR-4 फॉर्म जारी कर दिए हैं, जो ₹50 लाख तक की सालाना आय वालों के लिए हैं। ऐसे में टैक्सपेयर्स के लिए जरूरी है कि वे आयकर अधिनियम, 1961 की उन महत्वपूर्ण सेक्शन्स को समझें जो टैक्स छूट पाने और सही टैक्स कैलकुलेशन में मदद करती हैं।
सेक्शन 139(1) के तहत, अगर किसी व्यक्ति या संस्था की सालाना आय निर्धारित सीमा से अधिक है, तो उनके लिए आयकर रिटर्न फाइल करना अनिवार्य है। यह धारा उन मामलों में भी लागू होती है जहां स्वेच्छा से रिटर्न भरना हो।
अगर कोई व्यक्ति किराए के मकान में रहता है और सालाना ₹1 लाख से अधिक किराया देता है, तो वह सेक्शन 10(13A) के तहत हाउस रेंट अलाउंस (HRA) पर टैक्स छूट का लाभ ले सकता है। इसके लिए कुछ नियमों का पालन करना जरूरी है।
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पुरानी टैक्स व्यवस्था को अपनाने वाले टैक्सपेयर्स के लिए सेक्शन 80C के तहत PPF, EPF, ELSS, टैक्स सेविंग FD, और जीवन बीमा प्रीमियम जैसे निवेशों पर ₹1.5 लाख तक की छूट मिलती है। लेकिन, नई टैक्स व्यवस्था में यह छूट उपलब्ध नहीं है।
नई व्यवस्था में केवल सेक्शन 80CCD(2) के तहत NPS में एम्प्लॉयर के योगदान पर 10% तक की छूट मिलती है। इसके अलावा, सेक्शन 80JJAA और 80CCH के तहत कुछ खास खर्चों पर छूट ली जा सकती है।
स्वास्थ्य बीमा पर भुगतान किए गए प्रीमियम पर टैक्स छूट का लाभ सेक्शन 80D के तहत मिलता है। अगर टैक्सपेयर और उसके परिवार के सदस्य 60 साल से कम उम्र के हैं, तो अधिकतम ₹25,000 तक की छूट मिलती है। 60 साल या उससे अधिक उम्र के लिए यह सीमा ₹50,000 है। माता-पिता के लिए अलग से छूट मिलती है, जिससे कुल छूट ₹1 लाख तक पहुंच सकती है।
घर के लिए लिए गए लोन या होम इंप्रूवमेंट लोन पर दिए गए ब्याज पर सेक्शन 24B के तहत अधिकतम ₹2 लाख तक की छूट मिलती है। यह छूट पुरानी और नई दोनों टैक्स व्यवस्थाओं में उपलब्ध है।
अगर कोई व्यक्ति तय समयसीमा के बाद ITR फाइल करता है, तो सेक्शन 234F के तहत उस पर जुर्माना लगाया जाता है। ₹5 लाख से कम आय वालों के लिए यह जुर्माना ₹1,000 है, जबकि ₹5 लाख से ज्यादा आय होने पर जुर्माना ₹5,000 तक हो सकता है। इसके साथ ही, सेक्शन 234A और 234B के तहत ब्याज भी देना पड़ सकता है।
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टैक्स विशेषज्ञ बलवंत जैन के अनुसार, आयकर अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत कुछ विशेष स्थितियों में व्यक्तिगत करदाताओं के लिए ITR भरना अनिवार्य हो जाता है, भले ही उनकी कुल आय टैक्स देनदारी के दायरे में न आती हो। आइए जानें किन-किन मामलों में ITR फाइल करना जरूरी होता है:
यदि आपकी कुल आय (धारा 80C, 80D, 80G आदि के तहत मिलने वाली छूट से पहले) निम्न सीमा से अधिक है, तो ITR भरना अनिवार्य है:
सामान्य व्यक्ति: ₹2.5 लाख
60 वर्ष से अधिक आयु के निवासी: ₹3 लाख
80 वर्ष से अधिक आयु के निवासी: ₹5 लाख
नई टैक्स व्यवस्था में सभी के लिए समान छूट: ₹3 लाख
लंबी अवधि के पूंजीगत लाभ (LTCG) को भी इसमें जोड़ा जाएगा।
अगर आप भारत में रिज़िडेंट टैक्सपेयर हैं और:
विदेश में आपके नाम कोई संपत्ति है (भले ही कोई रकम शेष न हो)
विदेशी बैंक खाता या संपत्ति में आपकी हिस्सेदारी या सिग्नेचर अथॉरिटी है
तो आपको ITR फाइल करना अनिवार्य है।
उदाहरण: विदेश में नौकरी के दौरान खुला बैंक अकाउंट, विदेशी कंपनी के ESOPs या म्यूचुअल फंड में निवेश आदि।
निम्न खर्चों पर तय सीमा पार होने पर भी रिटर्न भरना जरूरी है:
सालभर में बिजली बिल: ₹1 लाख से ज्यादा
विदेश यात्रा खर्च (किसी के भी लिए): ₹2 लाख से ज्यादा
अगर आपकी जमा राशियाँ निम्न सीमाओं से ऊपर हैं, तो ITR फाइल करना जरूरी है:
करंट अकाउंट: ₹1 करोड़ से ज्यादा कुल जमा
सेविंग अकाउंट: ₹50 लाख से ज्यादा कुल जमा
नकद, चेक, ड्राफ्ट या ऑनलाइन ट्रांसफर – सभी प्रकार की जमा राशियाँ शामिल की जाएंगी।
यदि आप व्यवसाय कर रहे हैं और टर्नओवर ₹60 लाख से अधिक है
यदि आप प्रोफेशनल हैं और ग्रॉस रिसीप्ट्स ₹10 लाख से अधिक है
यदि आपके ऊपर साल भर में ₹25,000 (सीनियर सिटीजन के लिए ₹50,000) से ज्यादा TDS/TCS कटा है