प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
दुनिया के तीसरे सबसे बड़े तेल आयातक और उपभोक्ता देश भारत के सामने आज एक बड़ा सवाल खड़ा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने दावा किया है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस से तेल खरीद बंद करने का वादा किया है। यह मुद्दा भारत और अमेरिका के बीच कूटनीतिक और व्यापारिक तनाव का कारण बन रहा है।
दूसरी तरफ, भारतीय तेल कंपनियां, जो रूस से दुनिया में दूसरी सबसे ज्यादा तेल खरीदती हैं, इस पर सरकार से स्पष्ट दिशा-निर्देश का इंतजार कर रही हैं। रूस का तेल भारत की रिफाइनरियों में पेट्रोल-डीजल जैसे ईंधन बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले कच्चे तेल का एक तिहाई हिस्सा है। इसे अचानक रोकना आसान नहीं है। आइए, इस पूरे मामले को समझते हैं कि भारत का रूस से तेल व्यापार कैसे शुरू हुआ, इसका महत्व क्या है, और इसे रोकने की क्या चुनौतियां हैं।
भारत को अपनी जरूरत का 87 फीसदी कच्चा तेल विदेशों से आयात करना पड़ता है। हर दिन करीब 55 लाख बैरल तेल की खपत होती है। पहले भारत अपनी तेल जरूरतों का दो-तिहाई हिस्सा मध्य-पूर्व के देशों जैसे इराक, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) से खरीदता था। लेकिन 2022 में यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद पश्चिमी देशों ने रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए। इन प्रतिबंधों की वजह से रूस का तेल अंतरराष्ट्रीय बाजार में सस्ता हो गया। भारत ने इस मौके का फायदा उठाया और रूस से सस्ता तेल खरीदना शुरू किया।
2019-20 में भारत के कुल तेल आयात में रूस का हिस्सा सिर्फ 1.7 फीसदी था, जो 2023-24 तक बढ़कर 40 फीसदी हो गया। इस दौरान रूस भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया। 2024-25 में भारत ने रूस से 8.8 करोड़ टन तेल आयात किया, जो कुल 24.5 करोड़ टन आयात का बड़ा हिस्सा है। रूस से तेल खरीदने की सबसे बड़ी वजह थी इसकी सस्ती कीमत। 2023 में रूस का तेल अन्य अंतरराष्ट्रीय तेल की तुलना में 19-20 डॉलर प्रति बैरल सस्ता था, हालांकि अब यह छूट घटकर 3.5-5 डॉलर प्रति बैरल रह गई है।
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सितंबर 2025 में भारत ने हर दिन करीब 47 लाख बैरल कच्चा तेल आयात किया, जो पिछले महीने की तुलना में 2.2 लाख बैरल ज्यादा था। इसमें रूस का हिस्सा 16 लाख बैरल प्रतिदिन था, यानी कुल आयात का 34 फीसदी। ग्लोबल ट्रेड एनालिटिक्स फर्म केपलर के शुरुआती आंकड़ों के मुताबिक, यह रूस से जनवरी-अगस्त 2025 की औसत खरीद (17.6 लाख बैरल प्रतिदिन) से थोड़ा कम था। अक्टूबर के पहले हफ्ते में रूस से तेल आयात बढ़कर 17.7 लाख बैरल प्रतिदिन हो गया।
रूस के बाद इराक भारत का दूसरा सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता है, जो 10.1 लाख बैरल प्रतिदिन तेल भेजता है। सऊदी अरब 8.3 लाख बैरल के साथ तीसरे नंबर पर है, जबकि अमेरिका ने UAE को पीछे छोड़कर चौथा स्थान हासिल किया है, जो 6.47 लाख बैरल प्रतिदिन तेल सप्लाई करता है। UAE अब 3.94 लाख बैरल प्रतिदिन के साथ पांचवें स्थान पर है।
रूस से तेल आयात को तुरंत रोकना लगभग नामुमकिन है। तेल की खरीद आमतौर पर डिलीवरी से 4-6 हफ्ते पहले तय हो जाती है। यानी, अक्टूबर में जो तेल भारत पहुंच रहा है, उसे अगस्त के आखिर या सितंबर की शुरुआत में बुक किया गया था। नवंबर के आखिर तक की डिलीवरी के लिए कॉन्ट्रैक्ट पहले ही हो चुके हैं। अगर ट्रंप का दावा सही है और भारत रूस से तेल खरीद बंद करने का फैसला करता है, तो इसका असर सबसे पहले नवंबर के तीसरे या चौथे हफ्ते से दिखेगा।
विश्लेषकों का कहना है कि अगले कुछ हफ्तों तक रूस से 16-18 लाख बैरल प्रतिदिन तेल का आयात बना रहेगा। केपलर के मुताबिक, ट्रंप का यह बयान कि भारत रूस से तेल खरीद बंद करेगा, ज्यादा राजनीतिक लगता है, क्योंकि नई दिल्ली से इसकी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है। अक्टूबर में रूस से तेल आयात 18 लाख बैरल प्रतिदिन तक पहुंच गया, जो सितंबर की तुलना में 2.5 लाख बैरल ज्यादा है। जुलाई-सितंबर में आयात में थोड़ी कमी आई थी, लेकिन यह कमी टैरिफ की चिंताओं से ज्यादा रिफाइनरियों में मेंटेनेंस की वजह से थी।
रूस का तेल भारत के लिए सिर्फ सस्ता ही नहीं, बल्कि रिफाइनरियों के लिए बेहद जरूरी भी है। यह भारत के कुल तेल आयात का 34 फीसदी हिस्सा है और इसकी कीमत अभी भी अन्य तेल की तुलना में सस्ती है। रूस का उराल क्रूड भारत की रिफाइनरियों के लिए खास तौर पर फायदेमंद है, क्योंकि यह डीजल और जेट ईंधन जैसे मिडिल डिस्टिलेट्स का ज्यादा उत्पादन देता है। भारत की रिफाइनरियां इस तेल के साथ अपनी पूरी क्षमता से ज्यादा काम कर पाती हैं और अच्छा मुनाफा कमा रही हैं।
अगर रूस से तेल आयात बंद होता है, तो भारत को दूसरों स्रोतों से तेल खरीदना होगा। इससे वैश्विक तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकती हैं, क्योंकि मांग बढ़ेगी और आपूर्ति सीमित होगी। रूस दुनिया का एक बड़ा तेल निर्यातक है, जो हर दिन 43-48 लाख बैरल तेल निर्यात करता है। इसका सबसे बड़ा खरीदार चीन (47 फीसदी) है, उसके बाद भारत (38 फीसदी) और तुर्की (6 फीसदी)। अगर भारत रूस से तेल लेना बंद करता है, तो उसे मध्य-पूर्व, अमेरिका या पश्चिमी अफ्रीका जैसे क्षेत्रों से तेल लेना होगा। लेकिन ये तेल रूस की तुलना में महंगे होंगे और भारत की रिफाइनरियों के लिए उतने अनुकूल नहीं होंगे।
रूस का तेल बंद होने से भारत को हर साल 3-5 अरब डॉलर का अतिरिक्त खर्च करना पड़ सकता है। अगर वैश्विक कीमतें और बढ़ती हैं, तो यह बोझ और भी बढ़ेगा। मध्य-पूर्व से 60-70 फीसदी तेल लिया जा सकता है, जबकि अमेरिका और अफ्रीका/लैटिन अमेरिका से बाकी की भरपाई हो सकती है। लेकिन अमेरिकी तेल (जैसे WTI मिडलैंड) हल्का होता है और डीजल का कम उत्पादन देता है, जो भारत की जरूरतों के लिए उपयुक्त नहीं है। इसके अलावा, लंबी दूरी की वजह से ढुलाई लागत भी बढ़ेगी।
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ट्रंप प्रशासन ने भारत पर रूस से सस्ता तेल खरीदकर मुनाफा कमाने और इसे रिफाइन करके यूरोप जैसे क्षेत्रों में बेचने का आरोप लगाया है। लेकिन भारत का कहना है कि उसने कोई अंतरराष्ट्रीय कानून नहीं तोड़ा। रूस से तेल खरीदने पर कोई प्रतिबंध नहीं है। यूरोपीय संघ ने हाल ही में रूसी तेल से बने ईंधन के आयात पर रोक लगाई है, लेकिन भारत ने हमेशा रूसी तेल की कीमत पर लगे प्राइस कैप का पालन किया है।
पिछले कुछ सालों में भारत ने सस्ते रूसी तेल की मदद से अपनी अर्थव्यवस्था को स्थिर रखा। 2022 में जब वैश्विक तेल की कीमतें बढ़ी थीं, तब भारत ने सस्ता रूस तेल खरीदकर पेट्रोल-डीजल की कीमतें स्थिर रखीं, जिससे महंगाई पर काबू पाया गया। अब अगर रूस से तेल खरीद बंद होती है, तो भारत को न सिर्फ महंगा तेल खरीदना होगा, बल्कि वैश्विक तेल की कीमतें बढ़ने से महंगाई का खतरा भी बढ़ सकता है।
विश्लेषकों का कहना है कि भारतीय रिफाइनरियां तकनीकी रूप से रूस के बिना काम कर सकती हैं, लेकिन इसके लिए बड़े आर्थिक और रणनीतिक बदलाव करने होंगे। मध्य-पूर्व के तेल के साथ-साथ अमेरिका, पश्चिमी अफ्रीका और लैटिन अमेरिका से तेल लेना पड़ सकता है। लेकिन इन तेलों की कीमत और रिफाइनिंग में कम अनुकूलता की वजह से भारत के लिए यह रास्ता आसान नहीं होगा।
आईसीआरए लिमिटेड के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट प्राशांत वशिष्ठ कहते हैं कि भारतीय रिफाइनरियां तेल की खरीद अर्थशास्त्र और उपलब्धता के आधार पर करती हैं। रूस का तेल अभी भी भारी मात्रा में आ रहा है, लेकिन उसकी छूट कम हो रही है। इस वजह से मध्य-पूर्व के तेल फिर से आकर्षक हो रहे हैं, क्योंकि ये भारत के करीब हैं और ढुलाई लागत कम है।
(PTI के इनपुट के साथ)