जिन निवेशकों को डेट म्युचुअल फंडों में निवेश करते हुए तीन साल से ज्यादा समय हो गया है, उन्हें अभी तक इंडेक्सेशन के लाभ के साथ 20 फीसदी कर ही चुकाना पड़ता था। लेकिन 1 अप्रैल से उनके पूंजीगत लाभ पर उनके कर स्लैब के हिसाब से कर कटने लगा है। हालांकि यह निवेशकों के लिए बड़ा झटका है मगर विशेषज्ञों की राय है कि कई मामलों में डेट फंड अब भी काम के रहेंगे।
कॉरपोरेट ट्रेनर (डेट बाजार) और लेखक जयदीप सेन कहते हैं, ‘अब म्युचुअल फंड, बैंक सावधि जमा (FD) और बॉन्ड पर एकसमान कर लगने लगा है। इसीलिए निवेशक अब निवेश करते समय तीनों की तुलना लगेंगे और जो उन्हें उस वक्त सबसे सटीक साधन लगेगा उसी में निवेश करेंगे।’
कई विशेषज्ञों को लग रहा है कि अगले 12 महीनों के भीतर ही ब्याज दरों में कटौती शुरू हो जाएगी। ट्रस्ट म्युचुअल फंड के मुख्य कार्य अधिकारी (CEO) संदीप बागला का कहना है, ‘ब्याज दरें गिरेंगी तब लंबी अवधि के डेट फंडों से दो अंकों में रिटर्न हासिल हो सकता है, जो बैंक FD पर मिलने वाले रिटर्न से बहुत अधिक होगा।’ लेकिन वह स्वीकार करते हैं कि जब तरलता की तंगी होगी तो FD पर अधिक रिटर्न मिल सकता है, इसीलिए दोनों में निवेश करना चाहिए।
निवेशक लंबे समय के लिए रकम लगाएं तो उन्हें डेट फंड से काफी अच्छे रिटर्न मिल सकते हैं। बागला कहते हैं, ‘क्रिसिल कंपोजिट बॉन्ड इंडेक्स ने पिछले 10 साल में 8.75 फीसदी से ऊपर रिटर्न दिया है। ब्याज दर चढ़ी हों या गिरी हों, डेट फंड ने सभी में अच्छा रिटर्न दिया है।’
कम अवधि के फंडों – लिक्विड, अल्ट्रा-शॉर्ट, लो-ड्यूरेशन और मनी मार्केट फंड – में निवेशक हमेशा तीन साल से कम समय के लिए रकम लगाते हैं। कर नियमों में हुए बदलावों का उन पर कोई भी फर्क नहीं पड़ेगा।
बैंक FD पर आप जो ब्याज कमाते हैं, उस पर आपके स्लैब के हिसाब से हर साल कर काटा जाता है। सेबी में पंजीकृत वित्तीय सलाहकार और पर्सनलफाइनैंसप्लान के संस्थापक दीपेश राघव समझाते हैं, ‘डेट फंड में आपको कर तभी चुकाना होता है, जब आप निवेश भुनाते हैं। इसीलिए आप इसमें कर पर पूरी तरह नियंत्रण कर सकते हैं। अपनी जरूरत के हिसाब से रकम निकालिए और कर देनदारी को बेहतर तरीके से संभालिए।’
राघव यह भी कहते हैं कि डेट म्युचुअल फंड में अगर आप कर कटौती टाल देते हैं तो आपकी ज्यादा रकम इकट्ठी होती रहती है।
डेट फंड उन निवेशकों के लिए ज्यादा अच्छे होते हैं, जिन्हें यह पता ही नहीं होता कि निवेश कितने समय के लिए करना है। मान लीजिए कि आपको अगले छह से 18 महीनों में रकम की जरूरत पड़ सकती है। ब्याज दर अच्छी है तो आप 12 महीने के लिए FD करा लेते हैं। लेकिन आपको चार महीने बाद ही पैसे की जरूरत पड़ जाती है।
ऐसे में 12 महीने की जमा पर मिलने वाली दर के हिसाब से आपको ब्याज नहीं देगा। उसके बजाय वह चार महीने की जमा अवधि पर लागू दर के हिसाब से ब्याज देगा। साथ ही आपसे जुर्माना भी वसूला जाएगा। राघव कहते हैं, ‘ओपन एंड डेट फंड में किसी तरह का जुर्माना नहीं लिया जाता।’
डेट फंड से रिटर्न को अल्पावधि पूंजीगत लाभ माना जाएगा, जिसे अल्पावधि पूंजीगत नुकसान के एवज में बराबर किया जा सकता है। मगर FD में यह संभव नहीं होता।
यदि आपने FD में 2 लाख रुपये का निवेश किया है मगर आपको केवल 50,000 रुपये निकालने की जरूरत पड़ती है तो भी आपको पूरी FD तुड़वानी पड़ेगी। सेबी में पंजीकृत निवेश सलाहकार और फिड्युशियरीज के संस्थापक अविनिश लूथरिया कहते हैं, ‘डेट फंड में आप जरूरत भर रकम निकाल सकते हैं और आपके बाकी निवेश पर किसी तरह का असर नहीं पड़ता।’
आर्बिट्रेज फंड भी लुभावने हो गए हैं। लूथरिया कहते हैं, ‘अगर बाजार में बहुत अधिक उतार-चढ़ाव नहीं हो तो इन फंडों में भी उतार-चढ़ाव नहीं होता। साथ ही इन पर इक्विटी फंडों के बराबर ही कर वसूला जाता है।’ अगर इन श्रेणियों में बहुत अधिक रकम पहुंच जाती है तो इनका रिटर्न घट सकता है।