Union Budget 2024 में पूंजीगत लाभ कर ढांचे में बड़ा बदलाव कर दिया गया है। इससे अल्पकालिक और दीर्घकालिक दोनों तरह के निवेशक प्रभावित होंगे। इसलिए आप इससे किस प्रकार निपटेंगे?
स्टॉक, म्यूचुअल फंड, रियल एस्टेट और सोने जैसी पूंजीगत संपत्ति को बेचकर मिलने वाले लाभ पर लगाए जाने वाले कर को पूंजीगत लाभ कर कहते हैं। यह कर संपत्ति की प्रकृति और होल्डिंग अवधि पर निर्भर करता है।
आनंद राठी वेल्थ लिमिटेड के डिप्टी सीईओ फिरोज अजीज कहते हैं, ‘एलटीसीजी में 10 प्रतिशत से 12.5 प्रतिशत (इक्विटी के लिए) तक की मामूली बढ़ोतरी के साथ दीर्घावधि वाले निवेशकों को थोड़ा अधिक कर चुकाना पड़ सकता है, लेकिन चूंकि छूट सीमा 1.25 लाख तक बढ़ा दी गई है, इसलिए अल्पावधि वाले निवेशकों को मध्यम स्तर का लाभ मिलेगा।
एसटीसीजी में 15 से 20 प्रतिशत की वृद्धि अल्पावधि के इक्विटी निवेशकों को प्रभावित करेगी। यद्यपि कर दरों में मामूली बढ़ोतरी होती है, इसलिए अन्य के मुकाबले इक्विटी म्युचुअल फंड अभी भी आकर्षक निवेश की श्रेणी में बना हुआ है। इसलिए हम यह नहीं कहते कि कर दरों में बदलाव होने से निवेशक बहुत तेजी से इक्विटी म्युचुअल फंडों की तरफ रुख कर जाएंगे।’
निवेश को लंबे समय तक रोके रखें : विशेषज्ञों का कहना है कि बढ़ी हुई एसटीसीजी दर होने पर निवेशकों को चाहिए कि अपनी संपत्ति को लंबे समय तक बनाए रखें ताकि निम्न एलटीसीजी दरों का लाभ उठाया जा सके।
निवेशकों को एलटीसीजी के लिए छूट सीमा 1.25 लाख तक बढ़ने की सुविधा का पूरा लाभ उठाना चाहिए। इससे उन्हें अधिक से अधिक कर मुक्त लाभ अर्जित होगा।
निवेशकों को लंबे समय में मिलने वाले पूंजीगत लाभ की अपेक्षा अपने दीर्घावधि और अल्पावधि पूंजीगत हानि से बचने पर ध्यान देना चाहिए। इससे कर देयता कम से कम होगी और उन्हें केवल एलटीसीजी कर देना होगा।
इक्विटी से जुड़ी बचत योजनाओं (ईएलएसएस) और नैशनल पेंसन सिस्टम (एनपीएस) जैसे निवेश आय कर अधिनियम की धारा 80-सी के अंतर्गत कर लाभ निवेशकों को मिल जाता है। इसलिए इस दिशा में निवेश पर ध्यान देना चाहिए। इससे संभावित रूप से पूंजीगत कर श्रेणी को घटाकर यह आपकी कुल कर योग्य आय को कम करने में मदद कर सकता है।
निवेशकों को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि वे अपने पोर्टफोलियो की नियमित रूप से समीक्षा करते रहें। इसका बड़ा फायदा यह होगा कि उन्हें ऐसी संपत्तियों को चिह्नित करने में मदद मिलेगी कि कौन सी संपत्ति कर दायरे में आ रही है और कौन नहीं, ताकि उसे रखने या बेचने के बारे में फैसला कर सकें। नए कर ढांचे में तो यह बहुत ही जरूरी हो गया है।
कर देयता की स्थिति और व्यक्तिगत वित्तीय लक्ष्यों को समझने और उसी हिसाब से आगे की रणनीति बनाने के लिए निवेशक कर पेशेवरों या वित्तीय सलाहकारों से सलाह ले सकते हैं।
एसपीसी के संस्थापक सीए स्वप्निल पाटनी कहते हैं, ‘पूंजीगत लाभ कर दरों में उतार-चढ़ाव को देखते हुए निवेशकों को अपनी कर देयता कम से कम करने के लिए रणनीति बनाकर चलना होगा। इसका एक प्रभावी तरीका टैक्स लॉस हार्वेस्टिंग है, जहां आप अपने लाभ को निवेश से हुई हानि से संतुलित करते हैं यानी अपने स्टॉक अथवा फंड यूनिट को घाटे में बेचकर उससे पूंजीगत लाभ कर की देयता को कम कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त, एक साल तक अपनी संपत्ति को रोक कर रखने से भी दीर्घावधि पूंजीगत लाभ दरों का फायदा लिया जा सकता है, क्योंकि ये अल्पावधि दरों से अमूमन कम ही होती हैं। यह आईआरएस अथवा 401 (के) जैसी कर लाभ खातों के इस्तेमाल के लिए भी फायदेमंद होता है, जहां निवेश कर दायरे में आने से बच सकता है।
निवेश में विविधता लाकर और वित्तीय सलाहकार से सलाह लेने कर कोड की जटिलताओं को कम करने में मदद मिल सकती है और यह आपकी रणनीति को बेहतर तरीके से लागू करने में कारगर हो सकता है। कानूनी बदलावों के बारे में जानकारी रखना भी बहुत महत्त्वपूर्ण होता है। इससे आप अपने निवेश पोर्टफोलियो को समय रहते समायोजित कर सकते हैं। पहले से योजना बनाना और कर नियमों की समझ आपके कर देयता के बाद रिटर्न को बढ़ाने की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण होता है।’