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STP: बाजार में जबरदस्त उतार-चढ़ाव, कैसे उठाएं Systematic Transfer Plan का फायदा ?

STP (Systematic Transfer Plan) के जरिए एक फंड में जमा धनराशि को दूसरे फंड में लंप सम के बजाए नियमित अंतराल पर एक निश्चित अवधि में ट्रांसफर किया जाता है।

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अजीत कुमार   
Last Updated- May 30, 2024 | 12:44 PM IST

STP:  म्युचुअल फंड (Mutual Funds) में जब भी निवेश की बात होती है तो लोग SIP (Systematic Investment Plan) की बात करते हैं। लेकिन बहुत सारे लोगों को यह पता नहीं होता कि SIP की तर्ज पर किसी एक फंड से धनराशि दूसरे फंड में ट्रांसफर भी की जा सकती है। एक फंड से दूसरे फंड में जमा धनराशि (कॉपर्स) के ट्रांसफर के इसी व्यवस्थित तरीके को सिस्टमैटिक ट्रांसफर प्लान (Systematic Transfer Plan) यानी एसटीपी (STP) कहते हैं। इस रणनीति को अपनाने से बाजार में उतार-चढ़ाव के दौरान रिस्क का एवरेजिंग हो जाता है और निवेशकों को कम से कम नुकसान उठाना पड़ता है।  बाजार में भारी उतार-चढ़ाव के दौर में निवेश पर जोखिम को कम से कम करते हुए बेहतर रिटर्न हासिल करने की भी यह एक रणनीति है।

STP क्या है?
जैसा कि नाम से ही जाहिर है यह एक सिस्टमैटिक ट्रांसफर प्लान है जिसके जरिए एक फंड में जमा धनराशि को दूसरे फंड में लंप सम के बजाए नियमित अंतराल पर (हर  हफ्ते, महीने, तीन महीने…) एक निश्चित अवधि में ट्रांसफर किया जाता है। जबकि एसआईपी के जरिए आप अपने खाते में जमा रकम को  म्युचुअल  फंड की किसी स्कीम में नियमित तौर पर एक निश्चित अवधि में लगाते/ डालते हैं।

एसटीपी के जरिए किसी एक फंड में जमा रकम को आप एक से अधिक फंड में भी ट्रांसफर कर सकते हैं। जिस फंड में आप लंप सम जमा करते हैं उसे सोर्स फंड और जिसमें ट्रांसफर किया जाता है उसे टारगेट या डेस्टिनेशन फंड कहते हैं।

STP कब और कैसे करें?

अगर आपके पास एकमुश्त नगद है लेकिन आप नियर टर्म में वोलैटिलिटी की आशंका को देखते इक्विटी/इक्विटी फंड में निवेश नहीं करना चाह रहे हैं। इस स्थिति में आप डेट फंड (लिक्विड या अल्ट्रा शॉर्ट टर्म फंड) में लंप सम निवेश कर सकते हैं। और फिर इसे STP के जरिये धीरे धीरे नियमित तौर पर एक निश्चित अवधि में इक्विटी फंड में ट्रांसफर कर सकते हैं। इससे फायदा यह होगा कि डेट फंड पर तो आपको रिटर्न मिलेगा ही जो आम तौर पर बचत खाते (सेविंग अकाउंट) पर मिलने वाले ब्याज से ज्यादा होता है। साथ ही में एसआईपी की तरह नियमित रूप से (हर हफ्ते, महीने, तीन महीने…) आप इक्विटी फंड में निवेश करते जाएंगे।

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आप इक्विटी फंड में जमा रकम को डेट फंड में भी एसटीपी के जरिए ट्रांसफर कर सकते हैं। लेकिन आम तौर पर डेट फंड से इक्विटी फंड में ट्रांसफर के लिए ही STP का इस्तेमाल किया जाता है।

हां एक स्थिति है जब आम तौर पर डेट फंड से इक्विटी फंड में जमा रकम को ट्रांसफर किया जाता है या करना चाहिए। लेकिन यह तब जब आप रिटायरमेंट के नजदीक हों, यानी अब आगे जोखिम नहीं ले सकते हो। ऐसे समय में आप थोड़ा-थोड़ा कर यानी एसटीपी के जरिए इक्विटी फंड में जमा रकम को डेट फंड में ट्रांसफर कर सकते हैं। अगर आपने लांग टर्म उद्देश्य के हिसाब से निवेश का लक्ष्य हासिल कर लिया है और वह उद्देश्य नजदीक है तो आप इक्विटी फंड में जमा रकम को एसटीपी के जरिए डेट फंड में शिफ्ट कर सकते हैं।

STP के क्या हैं फायदे?

जिस तरह से लंप सम निवेश के जोखिम हैं उसी तरह अगर आप एक फंड से दूसरे फंड में लंप सम ट्रांसफर करेंगे तो इसके अपने जोखिम हैं। इसी जोखिम को कम से कम करने के लिए फंड हाउस निवेशकों को एसटीपी की सुविधा देते हैं। जब आप एक फंड में जमा रकम को एसटीपी के जरिए दूसरे फंड में ट्रांसफर करते हैं तो आपको परचेजिंग कॉस्ट के एवरेजिंग का फायदा मिलता है। यानी जब बाजार में गिरावट होगी तो एकसमान ट्रांसफर की राशि पर पर ज्यादा यूनिट मिलेंगे। वहीं तेजी के दौर में कम यूनिट ट्रांसफर होंगे। इस तरह से एसटीपी के जरिए पोर्टफोलियो की रीबैलेंसिंग भी हो जाती है।

STP पर क्या हैं टैक्स के नियम?

जब आप सोर्स फंड से जमा रकम टारगेट फंड में शिफ्ट करेंगे तो उसे रिडेम्पशन माना जाएगा जिस पर होल्डिंग पीरियड के आधार पर टैक्स लगेगा। वहीं जब जमा रकम टारगेट फंड में शिफ्ट हो जाएगा और जब आप उसे भविष्य में रिडीम करेंगे तो फिर आपको होल्डिंग पीरियड के आधार पर टैक्स देना होगा। सोर्स और टारगेट फंड पर टैक्स के वही नियम हैं जो रिडेम्पशन के समय डेट और इक्विटी फंड के लिए होते हैं।

-इक्विटी म्युचुअल फंड 

इस कैटेगरी के तहत वैसे म्युचुअल फंड आते हैं जहां इक्विटी यानी लिस्टेड कंपनियों के शेयर में एक्सपोजर 65 फीसदी से ज्यादा है। नियमों के मुताबिक, एक वर्ष से कम अवधि में अगर आप इक्विटी म्युचुअल फंड बेचते यानी रिडीम करते हैं तो कैपिटल गेन/लॉस शॉर्ट-टर्म मानी जाएगी। शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन पर आपको 15 फीसदी (4 फीसदी सेस मिलाकर कुल 15.6 फीसदी) शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन (एसटीसीजी) टैक्स देना होगा। लेकिन अगर आप एक वर्ष के बाद बेचते हैं तो पॉजिटिव/नेगेटिव रिटर्न लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन/लॉस मानी जाएगी। सालाना एक लाख रुपए से ज्यादा के लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन पर आपको 10 फीसदी (4 फीसदी सेस मिलाकर कुल 10.4 फीसदी) लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन टैक्स (एलटीसीजी) देना होगा। ध्यान रहे कि सालाना एक लाख रुपए से कम के लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन पर टैक्स का प्रावधान नहीं है।

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-डेट म्युचुअल फंड  

इस कैटेगरी के अंतर्गत वैसे म्युचुअल फंड आते हैं जहां इक्विटी में एक्सपोजर 35 फीसदी से ज्यादा नहीं है। इसके तहत डेट फंड, इंटरनैशनल फंड … आते हैं। 1 अप्रैल 2023 से लागू नए नियम के अनुसार इस कैटेगरी के फंड को रिडीम करने के बाद जो कैपिटल गेन होगा वह आपकी इनकम में जुड़ जाएगा और आपको टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स देना होगा। जबकि 1 अप्रैल 2023 से पहले इस तरह के फंड से होने वाली कमाई पर टैक्स होल्डिंग पीरियड (खरीदने के दिन से लेकर बेचने के दिन तक की अवधि) के आधार पर लगता था। मतलब 36 महीने से कम के होल्डिंग पीरियड पर शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स जबकि 36 महीने के ऊपर के होल्डिंग पीरियड पर इंडेक्सेशन के फायदे के साथ 20 फीसदी (सेस मिलाकर 20.8 फीसदी) लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स का प्रावधान था।

-म्युचुअल फंड  (इक्विटी में एक्सपोजर 35 फीसदी से ज्यादा लेकिन 65 फीसदी से कम )

इस कैटेगरी के अंतर्गत वैसे म्युचुअल फंड आते हैं जहां इक्विटी में एक्सपोजर 35 फीसदी से ज्यादा लेकिन 65 फीसदी से कम है। नियमों के अनुसार अगर इस तरह के फंड में होल्डिंग पीरियड 36 महीने से कम है तो होने वाली कमाई को शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन माना जाएगा। जो आपके ग्रॉस टोटल इनकम में जोड़ दिया जाएगा और आपको अपने टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स चुकाना होगा। लेकिन अगर होल्डिंग पीरियड 36 महीने से ज्यादा है तो कैपिटल गेन पर इंडेक्सेशन के फायदे के साथ 20 फीसदी (सेस  मिलाकर 20.8 फीसदी) लांग टर्म कैपिटल गेन  टैक्स देना होगा। इंडेक्सेशन के तहत महंगाई के हिसाब से पर्चेज प्राइस को बढा दिया जाता है। जिससे रिटर्न कम हो जाता है और टैक्स देनदारी में कमी आती है।

 

First Published : May 30, 2024 | 12:44 PM IST