Minimising payout on home loan: पिछले दो वर्षों में भारत के प्रमुख शहरों में घरों की कीमतों (Housing prices) में औसतन 18% की बढ़ोतरी हुई है। PropEquity की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, अब औसत कीमत ₹7,989 से लेकर ₹34,026 प्रति वर्ग फुट के बीच पहुंच गए हैं। ऐसे में जहां एक ओर लोग घर खरीदने की लागत घटाने की कोशिश कर रहे हैं। वहीं, उन्हें होम लोन (Home Loan) की फाइनेंसिंग लागत कम करने पर भी ध्यान देना चाहिए।
लोन के लिए अप्लाई करने से पहले अपना क्रेडिट स्कोर जरूर जांचें। बैंकबाजार डॉट कॉम के सीईओ आदिल शेट्टी कहते हैं, “होम लोन की ब्याज दरें आपके क्रेडिट स्कोर से जुड़ी होती हैं। अगर स्कोर अच्छा है तो आपको सबसे कम ब्याज दर मिल सकती है।” आमतौर पर 750 से ऊपर का स्कोर अच्छा माना जाता है। अगर आपका स्कोर कम है, तो लोन लेने की योजना थोड़ी टाल दें और पहले अपने क्रेडिट प्रोफाइल को बेहतर बनाएं।
अगर आपका क्रेडिट स्कोर 700 से कम है तो बैंक आपको लोन देने से मना कर सकते हैं। Wishfin के सीईओ ऋषि मेहरा कहते हैं, “ऐसे में आपको नॉन-बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनी (NBFC) या हाउसिंग फाइनेंस कंपनी का रुख करना पड़ सकता है, जो आमतौर पर ज्यादा ब्याज दर वसूलती हैं।”
किसी अन्य व्यक्ति के साथ मिलकर लोन लेने से आपकी लोन एलिजिबिलिटी बढ़ जाती है। उदाहरण के लिए, अगर आप ₹40 लाख के लिए योग्य हैं और आपका को-बॉरोअर भी ₹40 लाख के लिए योग्य है, तो आपकी संयुक्त पात्रता ₹80 लाख हो जाती है। आपकी एलिजिबिलिटी के मुकाबले कम लोन अमाउंट लेने पर बेहतर ब्याज दर मिलने की संभावना बढ़ जाती है। अगर को-बॉरोअर महिला हो, तो कुछ मामलों में उसे ब्याज दर पर 5 से 10 बेसिस प्वाइंट की छूट भी मिल सकती है।
हमेशा अधिकतम लोन-टू-वैल्यू (LTV) रेश्यो लेने से बचें। शेट्टी कहते हैं, “मान लीजिए आप ₹1 करोड़ का घर खरीद रहे हैं और आपको ₹75 लाख तक लोन मिल सकता है। लेकिन अगर आप केवल ₹60 लाख का लोन लेते हैं, तो इससे आपको थोड़ी बेहतर ब्याज दर मिल सकती है।”
सबसे कम ब्याज दर पाने के लिए अलग-अलग लेंडर्स से ऑफर जानें। मेहरा कहते हैं, “अगर आपका क्रेडिट स्कोर अच्छा है, तो आप लेंडर से बेहतर रेट के लिए बातचीत कर सकते हैं।” हालांकि प्रोसेसिंग फीस, लीगल और डॉक्युमेंटेशन चार्ज आमतौर पर लगभग समान होते हैं, फिर भी इनकी तुलना करना फायदेमंद हो सकता है।
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SEBI रजिस्टर्ड निवेश सलाहकार (RIA) दीपेश राघव का सुझाव है कि डिफेंस सेक्टर से जुड़े लोगों को यह जरूर जांच लेना चाहिए कि क्या उनके लिए कोई विशेष छूट उपलब्ध है।
कम अवधि का लोन लेने से कुल ब्याज भुगतान को कम किया जा सकता है। मेहरा कहते हैं, “अगर कोई व्यक्ति ज्यादा EMI चुका सकता है और 20 साल की बजाय 15 साल का लोन लेता है, तो उसका कुल ब्याज खर्च काफी कम हो जाएगा।”
ओवरड्राफ्ट से जुड़ी होम लोन सुविधा में अगर आप अतिरिक्त राशि लोन अकाउंट में जमा करते हैं, तो उस पर ब्याज नहीं लगता, जिससे ब्याज खर्च कम हो जाता है। जब जरूरत हो, तब उस राशि को निकाला भी जा सकता है। राघव कहते हैं, “ऐसे लोन थोड़े महंगे जरूर होते हैं, लेकिन ये ब्याज लागत घटाते हैं और लचीलापन भी देते हैं।”
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प्रीपेमेंट करने से ब्याज पर होने वाला कुल खर्च काफी हद तक कम किया जा सकता है। शेट्टी कहते हैं, “अगर आपकी लोन अवधि 20 साल की है और आप हर साल बचे हुए लोन का 5% प्रीपे कर देते हैं, तो आपकी लोन अवधि 20 साल से घटकर करीब 12 साल रह जाएगी।” हालांकि, अलग-अलग लेंडर और लोन प्रोडक्ट्स के प्रीपेमेंट नियम अलग-अलग होते हैं। इन्हें अच्छी तरह समझ लें ताकि बाद में कोई रुकावट न आए।
आपके फाइनेंशियल स्वभाव के अनुसार यह तय करें कि आपको एक्स्ट्रा पैसा प्रीपेमेंट में लगाना है या निवेश में। राघव कहते हैं, “होम लोन की टैक्स के बाद की लागत बहुत कम होती है, इसलिए कुछ लोग ऐसे एसेट क्लास में निवेश करना पसंद करते हैं, जो लंबी अवधि में ज्यादा रिटर्न दे सके।”