सरकार निष्क्रिय जनधन खातों को बंद करने की तैयारी कर रही है ताकि इन खातों का दुरुपयोग न होने पाए। मामले से अवगत लोगों ने बताया कि सरकारी बैंकों को ऐसा निर्देश दिया गया है कि अगर लाभार्थी अपने जनधन खाते को सक्रिय नहीं रखना चाहते हैं तो उन्हें बंद कर दिया जाना चाहिए क्योंकि लोगों को ठगने के लिए म्यूल खातों के रूप में इनका इस्तेमाल हो रहा है।
मामले से जुड़े एक सूत्र ने कहा, ‘अगर उनका इस्तेमाल नहीं हो रहा है तो उन्हें खुला रखने पर जोर न देने का निर्देश मिला है क्योंकि उनका दुरुपयोग किया जा सकता है।’ ऐसा कहा जा रहा है कि बैंक निष्क्रिय खातों को नए सिरे से सक्रिय करने के लिए उचित प्रक्रिया का पालन करते हुए री-केवाईसी प्रक्रिया शुरू कर रहे हैं। अगर लाभार्थी खातों को सक्रिय रखने के इच्छुक नहीं हैं, तो खाते बंद किए जा रहे हैं। किसी बैंक खाते को निष्क्रिय तब माना जाता है जब लगातार 24 महीने की अवधि में कोई लेनदेन न हो।
एक सरकारी बैंक के एक वरिष्ठ बैंकर के अनुसार, अधिकतर निष्क्रिय जनधन खाते ग्रामीण इलाकों से हैं। उन्होंने कहा, ‘सभी बैंक इस समस्या से निपटने और खातों को चालू करने के लिए री-केवाईसी की कोशिश कर रहे हैं। अगर ग्राहक अपने खाते का उपयोग नहीं करना चाहते हैं तो उन्हें बंद भी किया जा रहा है।’
धोखाधड़ी करने के लिए जनधन खातों का म्यूल खातों के रूप में हो रहे दुरुपयोग के मद्देनजर चिंताएं बढ़ गई हैं। हाल के वर्षों में ऐसी घटनाएं काफी बढ़ गई हैं और भारतीय रिजर्व बैंक को इन खातों का पता लगाने के लिए म्यूल हंटर नाम से एक पहल करनी पड़ी है।
यह रिजर्व बैंक इनोवेशन हब द्वारा विकसित एआई/एमएल आधारित मॉडल है, जिसे बैंकों को म्यूल खातों की पहचान करने के लिए डिजाइन किया गया है। साइबर अपराधी धोखाधड़ी के जरिये प्राप्त रकम को रखने के लिए ऐसे खातों का उपयोग करते हैं।
बैंक ऑफ इंडिया के एमडी एवं सीईओ रजनीश कर्नाटक ने हाल में एक कार्यक्रम में कहा, ‘हमने पाया है कि कुछ जनधन खातों का इस्तेमाल साइबर धोखाधड़ी के लिए म्यूल खातों के रूप में किया जा रहा है। हम इससे भलीभांति अवगत हैं। आरबीआई ने म्यूल हंटर लॉन्च किया है जो बैंकों के भीतर ऐसे खातों का पता लगाने में मदद करता है। अकेले बैंक ऑफ इंडिया में पिछले छह महीनों के दौरान जमाकर्ताओं के 147 करोड़ रुपये प्रभावित हुए हैं।’
रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2025 में डिजिटल भुगतान श्रेणी में 13,516 धोखाधड़ी के मामले सामने आए और इनमें से अधिकतर मामले बैंकिंग से संबंधित थे। कुल मामलों में इन धोखाधड़ियों की हिस्सेदारी 56.5 फीसदी थी जिसमें 520 करोड़ रुपये शामिल थे।
भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने अपनी पहचान जाहिर न करने की शर्त पर कहा, ‘प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) योजना के तहत अधिक खाते होने से अधिक लाभ मिलेगा, इस गलत धारणा के आधार पर 2014-15 में काफी खाते खोले गए थे। अब डीबीटी स्थिर हो गया है जिससे यह स्पष्ट है कि किन खातों को लाभ मिलता है। अन्य खाते निष्क्रिय रहते हैं, जिससे साइबर धोखाधड़ी के लिए उनका दुरुपयोग होने का जोखिम बरकरार है।’
बैंकों द्वारा खातों को बंद करने के किसी भी निर्णय से जटिलताएं पैदा हो सकती हैं। खास तौर पर लाभार्थियों पर पड़ने वाले प्रभाव को अनदेखा किया जाने पर ऐसा हो सकता है। इन खातों के लिए केवाईसी पूरा करने की जिम्मेदारी बैंकों की है और ऐसे में री-केवाईसी प्रक्रिया को पूरा करने के लिए अतिरिक्त 1.5 साल लग सकता है। आरबीआई को इस पर विचार करना चाहिए। प्रधानमंत्री जनधन योजना वित्तीय सेवाओं तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए एक राष्ट्रीय मिशन है। इसके तहत किसी भी बैंक शाखा या बैंक मित्र आउटलेट में उन व्यक्तियों का एक बुनियादी बचत बैंक जमा खाता खोला गया था जिनके पास कोई खाता नहीं था।
प्रधानमंत्री जनधन योजना के तहत 25 जून तक 55.7 करोड़ खाते खोले गए हैं। इन खातों में कुल मिलाकर 2.60 लाख करोड़ रुपये जमा हैं। करीब 55.7 करोड़ खातों में से 31.06 करोड़ खाते महिला लाभार्थियों के हैं। खोले गए कुल खातों में से 37 करोड़ से अधिक खाते ग्रामीण एवं कस्बाई बैंक शाखाओं में हैं जबकि 18.53 करोड़ शाखाएं महानगरों में हैं।
बिज़नेस स्टैंडर्ड ने जनवरी 2025 में खबर दी थी कि प्रधानमंत्री जनधन योजना के तहत हर 5 में से एक से अधिक खाते दिसंबर 2024 तक निष्क्रिय हो गए थे। निष्क्रिय जन धन खाते मार्च 2024 में कुल खातों के 19 फीसदी से बढ़कर उसी साल दिसंबर तक 21 फीसदी हो चुके थे।