पिछले कुछ दिनों में करीब 22,000 करदाताओं को आयकर विभाग से नोटिस मिले हैं क्योंकि आयकर रिटर्न में उन्होंने कटौती के जो दावे किए हैं और विभाग के पास जो जानकारी मौजूद है, वे मेल नहीं खाते। ये नोटिस आयकर अधिनियम की धारा 143(1) के तहत भेजे गए हैं और कर निर्धारण वर्ष 2023-24 के लिए भरे गए रिटर्न के सिलसिले में हैं।
करंजावाला ऐंड कंपनी में प्रिंसिपल असोसिएट अंकित राजगढ़िया कहते हैं, ‘इस तरह की गड़बड़ी तब हो सकती है, जब करदाता के फॉर्म 16 (नियोक्ता से मिलने वाला सैलरी सर्टिफिकेट), वार्षिक सूचना विवरण (एआईएस) या आयकर विभाग के पास मौजूद रिकॉर्ड में दर्ज कटौती आपस में मेल नहीं खाती हो।’
टीएएस लॉ में सीनियर असोसिएट शिवानी भूषण के मुताबिक इस तरह के नोटिस वेतनभोगी व्यक्तियों, धनाढ्य व्यक्तियों, अविभाजित हिंदू परिवारों, ट्रस्टों आदि को भेजे गए हैं। इन नोटिसों से करदाताओं को गलतियां या गड़बड़ियां सुधारने का मौका मिलता है या सब सही होने पर वे विभाग को सबूत के साथ इस बारे में इत्तिला कर सकते हैं। उच्चतम न्यायालय में वकील संदीप बजाज का कहना है, ‘इन नोटिसों का बुनियादी मकसद कर अदायगी में पारदर्शिता और सटीकता सुनिश्चित करना है। साथ ही ये करदाताओं को समस्या कारगर तरीके से सुलझाने का मौका भी देते हैं।’
कर विभाग काम से मतलब रखता है। पीएसएल एडवोकेट्स ऐंड सॉलिसिटर्स में पार्टनर विपुल जय कहते हैं, ‘आयकर विभाग कर चोरी करने वालों और अनुपालन नहीं करने वालों पर सख्ती बरत रहा है। करदाताओं को पता होना चाहिए कि गलत या अधूरा आयकर रिटर्न भरने पर कितना खतरा हो सकता है।’
कौन सी गड़बड़ियां
नोटिस जारी होने की कई वजहें हो सकती हैं। हो सकता है कि कर काटने वाले और कर देने वाले ने हिसाब लगाने के अलग-अलग तरीके अपनाए हों। लूथड़ा ऐंड लूथड़ा लॉ ऑफिसेस इंडिया में पार्टनर रूबल बंसल मैनी का कहना है, ‘हो सकता है कि जिस आय पर कर काटा गया हो, उसे करदाता दो या अधिक वर्षों की आय मान रहा हो मगर विभाग उसे एक ही साल में हुई आय मान रहा हो।’
यह भी हो सकता है कि कर काटने वाली कंपनी ने करदाता को सही फॉर्म 16 नहीं दिया हो या कर काटने के बाद भी उसने आयकर विभाग के पास कर की रकम जमा नहीं की हो। उस सूरत में टीडीएस मेल नहीं खाएगा। बंसल बताती हैं कि टीडीएस का मेल नहीं खाना करदाताओं के लिए सबसे बड़ी दिक्कत होती है।
फौरन हरकत में आएं
ये पहली बार सूचना देने वाले नोटिस होते हैं। भूषण का कहना है कि यदि करदाता इनका जवाब नहीं देते हैं या अपनी सफाई पेश नहीं करते हैं तब विभाग कर की मांग करते हुए नोटिस जारी करता है।
नोटिस सही है तो
यदि करदाता मानता है कि नोटिस में बताई गई गड़बड़ी वाकई है तो उसके पास दो विकल्प हैं। बजाज समझाते हैं, ‘अपडेटेड रिटर्न दाखिल करें। सही जानकारी के साथ संशोधित कर रिटर्न दाखिल किया जा सकता है, जिसमें अतिरिक्त आय, कटौती या उससे संबंधित ब्योरा दिया जा सकता है। दूसरा विकल्प मांगा गया कर भरना है।’
मगर यदि आपसे बकाया कर मांगा गया है तो उसे जमा करने में देर बिल्कुल नहीं करें। साथ ही जो ब्याज मांगा गया है वह भी अदा करें।
नोटिस सही नहीं तो
अगर आपको लगता है कि कर नोटिस सही नहीं है तो अपना पक्ष रखने के लिए तैयार रहें। कानूनी फर्म एमवी किनी में पार्टनर प्रतीक गोयल कहते हैं, ‘अपना पक्ष विस्तार से रखें और साथ में दस्तावेजी सबूत भी पेश करें। आयकर विभाग आपके जवाब को ठीक से देखेगा और सही फैसला लेगा।’
जय समझाते हैं, ‘अगर कोई चूक या गलती नहीं मिलती है और करदाता विभाग की बात से सहमत नहीं होता है तो वह धारा 154(1) के तहत सुधार का आवेदन कर सकता है।’ इस धारा के तहत कर निर्धारण यानी असेसिंग अधिकारी को अपनी गलती सुधारने की इजाजत मिल जाती है।
हाथ पर हाथ न धरें
नोटिस का जवाब नहीं देने का नतीजा खराब भी हो सकता है। भूषण समझाते हैं, ‘यदि सब कुछ मेल खा रहा है या रिफंड नहीं बन रहा है तो कुछ भी करने की जरूरत नहीं है। मगर बाकी मामलों में करदाता को जवाब देना होगा वरना उस पर जुर्माना लगाया जा सकता है।’
मैनी भी आगाह करती हैं कि यदि कोई जवाब नहीं दिया तो मान लिया जाएगा कि करदाता भी टीडीएस मेल नहीं खाने यानी गड़बड़ी होने की बात कबूल कर रहा है।
यदि करदाता इस तरह के नोटिस का जवाब बताए गए समय में नहीं देता है तो उसके पास कर मांग का नोटिस यानी डिमांड नोटिस पहुंचेगा। डिमांड नोटिस में अच्छा खासा जुर्माना भी शामिल हो सकता है। गोयल समझाते हैं कि जवाब नहीं देने पर आपके कर रिटर्न को रद्द किया जा सकता है, जिससे कर बचत का फायदा आपके हाथ से निकल जाएगा। कुल मिलाकर नोटिस का फौरन और उचित जवाब देना बहुत जरूरी है।