सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद बैंक अब क्रेडिट कार्ड के बकाये का देर से भुगतान करने पर ग्राहकों से ज्यादा ब्याज वसूल सकते हैं। न्यायालय ने आज राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद समाधान आयोग (एनसीडीआरसी) के उस फैसले को दरकिनार कर दिया जिसमें क्रेडिट कार्ड के बिल भुगतान में देरी पर सालाना अधिकतम 30 फीसदी ब्याज दर की सीमा तय की गई थी। 15 साल पुराने इस मामले में अदालत के फैसले से कार्ड कंपनियों को बड़ी राहत मिल सकती है।
न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी और सतीश चंद्र शर्मा के पीठ ने स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक, सिटी बैंक और एचएसबीसी बैंक द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह फैसला सुनाया। बैंकों ने क्रेडिट कार्ड बिल का देय तिथि के बाद देर से भुगतान करने वाले ग्राहकों से अधिकतम 30 फीसदी सालाना ब्याज की सीमा तय करने के एनसीडीआरसी के फैसले को चुनौती दी थी।
वर्ष 2008 में एनडीआरसी ने आपने आदेश में कहा था कि समय पर पूर्ण भुगतान करने में विफल रहने या केवल न्यूनतम देय राशि का भुगतान करने पर क्रेडिट कार्ड धारकों से 30 फीसदी सालाना की दर से अधिक ब्याज वसूलना अनुचित व्यापार व्यवहार है।
हालांकि बैंकों ने तर्क दिया था कि ब्याज दर पर फैसला लेने का वैधानिक अधिकार भारतीय रिजर्व बैंक का है। बैंकों ने अदालत को बताया कि आयोग ने ब्याज दर की अधिकतम सीमा तय करते समय इस बात का ध्यान नहीं रखा कि ब्याज की वसूली केवल भुगतान में चूक करने वाले ग्राहकों से की जाती है और समय पर भुगतान करने वाले ग्राहक को बिना रेहन के करीब 45 दिन के लिए ब्याज मुक्त कर्ज और अन्य लाभ दिए जाते हैं।
इस बीच भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने कहा कि उसने बैंकों को ज्यादा ब्याज नहीं वसूलने के निर्देश दिए हैं मगर बैंकों द्वारा ली जाने वाली ब्याज दर को सीधे विनियमित करने की नीति नहीं है। ऐसे में आरबीआई ने इस मामले में निर्णय लेने का अधिकार बैंकों के बोर्डों पर छोड़ दिया था।
एनसीडीआरसी ने अपने आदेश में कहा था, ‘अगर आरबीआई को देश के वित्त और अर्थव्यवस्था का प्रहरी में से एक माना जाता है और मौजूदा ऋण स्थितियां ऐसी हैं कि उसे नीतिगत हस्तक्षेप करना चाहिए। हमारे विचार में देय तिथि से पहले बकाये को भुगतान नहीं करने वाले ग्राहकों से सालाना 36 से 49 फीसदी तक ब्याज वसूला जाता है और यह कर्ज लेने वालों का एक तरह से शोषण है और ऐसा करने वाले बैंकों को नियंत्रित नहीं करने का कोई उचित कारण नहीं है।’
आयोग ने कहा कि आरबीआई ने विभिन्न परिपत्र जारी कर कहा है कि बैंकों को अत्यधिक ब्याज दर नहीं वसूलनी चाहिए लेकिन वह यह निर्दिष्ट करने में विफल रहा कि वह किसे अत्यधिक या सूदखोरी वाला ब्याज दर कहेगा।
विशेषज्ञों ने कहा कि 30 फीसदी ब्याज दर की सीमा हटाए जाने से बैंकों और वित्तीय संस्थानों को क्रेडिट कार्ड बिल का देर से भुगतान करने के मामले में ब्याज दर तय करने में सहूलियत होगी। सिरिल अरमचंद मंगलदास में पार्टनर गौहर मिर्जा ने कहा, ‘इससे देय तिथि के बाद क्रेडिट कार्ड का बिल भुगतान करने वाले ग्राहकों को ज्यादा ब्याज चुकाना पड़ सकता है। बैंक बाजार की स्थिति और व्यक्तिगत जोखिम आकलन के आधार पर भी ब्याज दर तय कर सकेंगे। इससे बैंकों को क्रेडिट कार्ड कारोबार से ज्यादा आय मिल सकता है।’
बैंकों की ओर से सर्वोच्च न्यायालय में मामला पेश करने वाले एसएनजी ऐंड पार्टनर में मैनेजिंग पार्टनर (विवाद समाधान) संजय गुप्ता संजय गुप्ता ने इस फैसले का स्वागत किया है और कहा कि इस फैसले से देश में क्रेडिट कार्ड उद्योग को बड़ी राहत मिली है।