वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल में आयोजित स्टेट बैंक ऑफ इंडिया इकनॉमिस्ट कॉन्क्लेव में कहा था कि बैंकएश्योरेंस ने बीमा की पैठ को बेहतर किया है, मगर उसने मिस-सेलिंग यानी गलत बिक्री को भी बढ़ावा दिया है। उन्होंने कहा कि इससे ग्राहकों के लिए उधारी लागत बढ़ती है। भारतीय बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) के अध्यक्ष देवाशिष पांडा ने भी इससे सहमति जताते हुए बैंकों द्वारा बीमा पॉलिसियों की गलत बिक्री के बारे में बढ़ती चिंताओं को उजागर किया।
बीमा को सावधि जमा के रूप में पेश करना: बैंकों के रिलेशनशिप मैनेजर अक्सर बीमा पॉलिसियों को उच्च रिटर्न वाली सावधि जमा (एफडी) के तौर पर पेश करते हुए ग्राहकों को गुमराह करते हैं। इंश्योरेंस समाधान की सह-संस्थापक एवं मुख्य परिचालन अधिकारी शिल्पा अरोड़ा ने कहा, ‘कभी-कभी वे बीमा पॉलिसियों को ऐसे अल्पकालिक निवेश के रूप में प्रस्तुत करते हैं जिनकी अवधि बमुश्किल 3 से 5 साल होती है।’
ऋण के साथ बीमा: टर्म, प्रॉपर्टी एवं अन्य बीमा पॉलिसी खरीदने को ऋण की मंजूरी के लिए एक पूर्व शर्त के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। लॉर्ड्स मार्क इंश्योरेंस ब्रोकिंग सर्विसेज के प्रबंध निदेशक एसके राघव ने कहा, ‘ऋणधारकों को लगता है कि उनके पास खरीदने के अलावा कोई अन्य विकल्प मौजूद नहीं है।’ इतना ही नहीं कभी-कभी ऋणधारकों को बेवजह बीमा पॉलिसी बेच दी जाती है।
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) में पंजीकृत निवेश सलाहकार (आरआईए) दीपेश राघव ने कहा, ‘ग्राहकों को टर्म लाइफ पॉलिसी के बजाय व्यक्तिगत दुर्घटना कवर बेच दिया जाता है जो परिवार को ऋण देनदारी से पूरी तरह से सुरक्षित नहीं रखता है।’
वरिष्ठ नागरिकों के लिए पॉलिसी: वरिष्ठ नागरिकों को आम तौर पर यूनिट-लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान (यूलिप), डेफर्ड एनुइटी और आय की गारंटी वाली योजनाएं गलत तरीके से बेची जाती हैं। आईआईटी मद्रास के एसोसिएट प्रोफेसर और फ्रीफिनकल के संस्थापक एम पट्टाभिरमण ने कहा, ‘कभी-कभी वरिष्ठ नागरिकों को एफडी के विकल्प के रूप में ऐसी योजनाएं बेची जाती हैं।’
मगर वरिष्ठ नागरिकों को इन योजनाओं की शर्तों और जोखिम के बारे में ठीक से नहीं बताया जाता है। मोर्टेलिटी शुल्क वाली यूलिप योजनाएं वरिष्ठ नागरिकों के रिटर्न को काफी प्रभावित कर सकती हैं। राघव ने कहा, ‘उम्र बढ़ने के साथ मोर्टेलिटी शुल्क में भी इजाफा होता रहता है।’ मगर वरिष्ठ नागरिकों को स्पष्ट तौर पर नहीं बताया जाता है कि मोर्टेलिटी शुल्क अधिक होने से यूलिप का रिटर्न कम हो जाएगा।
एक अन्य सामान्य रणनीति यह है पार्टिसिपेटिंग प्लान जैसी योजनाओं से काफी अधिक रिटर्न की उम्मीद करना। उन्होंने कहा, ‘इस बात को स्पष्ट नहीं किया जाता कि रिटर्न और बोनस विभिन्न कारकों पर निर्भर करते हैं और उनकी गारंटी नहीं होती है।’
ग्रुप हेल्थ पॉलिसी: बैंक अक्सर समूह योजनाओं के तहत पॉलिसी को बढ़ावा देते हैं। राघव ने कहा, ‘ऐसी पॉलिसी आम तौर पर सीमित कवरेज के साथ आती है। बीमाधारक बेहतर कवरेज के लिए इस पॉलिसी को किसी अन्य बीमाकर्ता के यहां पोर्ट भी नहीं कर सकता है।’
प्रीमियम भुगतान का तरीका: रेगुलर प्रीमियम वाली योजनाओं को कभी-कभी गलत तरीके से सिंगल-प्रीमियम वाली पॉलिसी के रूप में बेचा जाता है। जब ग्राहकों को पता चलता है कि उन्हें एकमुश्त सालाना प्रीमियम का भुगतान करना पड़ेगा तो कई लोग भुगतान नहीं कर पाते हैं।
ऋणधारकों को भलीभांति पता होना चाहिए कि ऋण लेने के लिए कोई बीमा पॉलिसी खरीदना अनिवार्य नहीं है। राघव ने कहा, ‘कभी भी ऋण के साथ-साथ बीमा पॉलिसी खरीदने के लिए बाध्य न हों।’
नई पॉलिसी खरीदने के बजाय मौजूदा जीवन बीमा पॉलिसी को ही ऋण कवर के तौर पर रखने के बारे में सोचें। अगर आपको उच्च रिटर्न अथवा गारंटी के साथ रिटर्न की पेशकश की जाती है तो उससे दूर रहें। अरोड़ा ने कहा, ‘ऐसी पेशकश से सतर्क रहें जो इतनी अच्छी लगती हैं कि उन पर भरोसा ही न होता हो। ऐसे में बीमाकर्ता को फोन करें और पॉलिसी की प्रामाणिकता की पुष्टि करें।’
पॉलिसी जारी किए जाने से पहले और बाद के वेरिफिकेशन कॉल को अवश्य उठाएं। अरोड़ा ने कहा, ‘सुनिश्चित करें कि पॉलिसी आपकी जरूरतों को पूरा करती है। अगर ऐसा नहीं है तो इसे खारिज करना ही बेहतर होगा।’
राघव ने सुझाव दिया कि कोई भी स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी खरीदने से पहले उसकी उपसीमा, एक्सक्लूजन यानी उसमें क्या शामिल नहीं है, पोर्टेबिलिटी एवं अन्य नियमों व शर्तों पर गंभीरता से विचार करें।
केवल आवश्यक पॉलिसियों को ही बरकरार रखें। पट्टाभिरमण ने कहा, ‘अगर आप कमाते हैं और आपके आश्रित भी हैं तो शुद्ध टर्म बीमा पॉलिसियों को चुनें और आय जरूरतों के लिए एनुइटी योजनाओं पर विचार करें।’
सभी ग्राहकों और विशेष रूप से वरिष्ठ नागरिकों को ऑनलाइन बैंकिंग सेवाओं को अवश्य अपनाना चाहिए। पट्टाभिरमण ने कहा, ‘इससे शाखाओं में जाने की जरूरत नहीं होगी और गलत पॉलिसियों के शिकार होने का जोखिम कम रहेगा।’