facebookmetapixel
ट्रंप प्रशासन की कड़ी जांच के बीच गूगल कर्मचारियों को मिली यात्रा चेतावनीभारत और EU पर अमेरिका की नाराजगी, 2026 तक लटक सकता है ट्रेड डील का मामलाIndiGo यात्रियों को देगा मुआवजा, 26 दिसंबर से शुरू होगा भुगतानटेस्ला के सीईओ Elon Musk की करोड़ों की जीत, डेलावेयर कोर्ट ने बहाल किया 55 बिलियन डॉलर का पैकेजत्योहारी सीजन में दोपहिया वाहनों की बिक्री चमकी, ग्रामीण बाजार ने बढ़ाई रफ्तारGlobalLogic का एआई प्रयोग सफल, 50% पीओसी सीधे उत्पादन मेंसर्ट-इन ने चेताया: iOS और iPadOS में फंसी खतरनाक बग, डेटा और प्राइवेसी जोखिम मेंश्रम कानूनों के पालन में मदद के लिए सरकार लाएगी गाइडबुकभारत-ओमान CEPA में सामाजिक सुरक्षा प्रावधान पर होगी अहम बातचीतईयू के लंबित मुद्दों पर बातचीत के लिए बेल्जियम जाएंगे पीयूष गोयल

बढ़ते बॉन्ड प्रतिफल को लेकर चिंता क्यों

Last Updated- December 12, 2022 | 7:51 AM IST

10 वर्षीय बॉन्ड प्रतिफल सोमवार को 6.20 प्रतिशत पर पहुंच गया, जो 21 अप्रैल, 2020 के बाद से उसका सर्वाधिक ऊंचा स्तर था। सामान्य तौर पर, यह ज्यादा चिंताजनक स्थिति नहीं हो सकती है, लेकिन आरबीआई ने उधारी सस्ती बनाने के लिए सरकार की मदद करने के लिए इस वित्त वर्ष में यह प्रतिफल 6 प्रतिशत से नीचे बनाए रखने की काफी कोशिश की है। बॉन्ड बाजार का प्रभाव अर्थव्यवस्था के लिए काफी नकारात्मक हो सकता है। आइए, जानते हैं क्यों।

बॉन्ड प्रतिफल क्यों बढ़ रहा है?
मुख्य वजह है बॉन्डों की अत्यधिक आपूर्ति। सरकार ने बजट में इस वित्त वर्ष के लिए 80,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त उधारी और अगले साल के लिए 120.5 लाख करोड़ रुपये की सकल बाजार उधारी की घोषणा की। चालू वित्त वर्ष में, सरकार बाजार से 13 लाख करोड़ रुपये उधार ले चुकी है। बॉन्ड बाजार के प्रमुख निवेशक हैं बैंक, बीमा कंपनियां और भविष्य निधि/पेंशन फंड। विदेशी निवेशकों ने 5 प्रतिशत से कम की हिस्सेदारी बनाए रखी। स्पष्ट है कि जैसे ही आपूर्ति और मांग में अंतर होगा निवेशक बॉन्डों के लिए कम कीमत की पेशकश करेंगे। जब बॉन्ड कीमतें गिरती हैं, प्रतिफल बढ़ता है।

प्रतिफल में वृद्घि हर किसी के लिए चिंताजनक क्या है?
सॉवरिन बॉन्ड प्रतिफल में वृद्घि का मतलब है अर्थव्यवस्था में ब्याज दर बढऩा। यदि ब्याज दर बढ़ती है तो बैंक अपनी उधारी दर को महंगा बनाते हैं। बाजार उन कंपनियों के लिए ज्यादा ब्याज खर्च की भी मांग करते हैं जो अपनी वित्तीय जरूरतें पूरी करने के लिए बॉन्ड जारी करना चाहती हों। ब्याज एक महत्वपूर्ण उत्पादन लागत है और इससे अर्थव्यवस्था में कुल लागत बढ़ती है। जब मूल्य निर्धारण ताकत कम मांग की वजह से सीमित हो तो बढ़ती लागत से मुनाफा प्रभावित होता है, उद्यमी अर्थव्यवस्था में निवेश से परहेज करते हैं। सरकार भी इन्फ्रास्ट्रक्चर और अन्य सामाजिक खर्चों पर पर्याप्त खर्च नहीं कर सकती। लोग अपने अतिरिक्त खर्च टालते हैं और कार तथा खरीदारी को ठंडे बस्ते में डाल देते हैं। इन सबका आर्थिक वृद्घि पर प्रभाव पड़ता है।

बढ़ते प्रतिफल का बैंकों और सरकार पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
वित्त वर्ष 2020-21 के ज्यादातर हिस्से के लिए 10 वर्षीय बॉन्ड प्रतिफल 6 प्रतिशत से नीचे रहा। यदि अब यह प्रतिफल बढ़ता है तो और तिमाही के अंत तक 6.20 प्रतिशत पर रहता है तो बैंकों को अपनी बॉन्ड होल्डिंग पर नुकसान होगा, जिसे उन्हें प्रतिफल नुकसान के तौर पर दिखाना चाहिए। यदि बैंकों को इस तरह के नुकसान से जूझना पड़ेगा तो वे बॉन्ड खरीदारी बंद कर देंगे। सरकार उस स्थिति में सस्ती उधारी में सक्षम नहीं होगी। यदि सेकंडरी बाजार में प्रतिफल बढ़ता है तो ताजा बॉन्ड निर्गम भी ऊची ब्याज दर पर होगा। इससे सरकार के लिए ब्याज लागत काफी बढ़ जाएगी। इसलिए आरबीआई इस प्रतिफल को कम बनाए रखने की कोशिश करेगा।

केंद्रीय बैंक इस समस्या को दूर करने के लिए क्या कर रहा है?
आरबीआई बाजार प्रतिफल के हिसाब से बॉन्ड बिक्री से परहेज कर रहा है। साथ ही, वह सेकंडरी बाजार से बड़ी मात्रा में बॉन्ड खरीदारी कर रहा है। अब तक इस वित्त वर्ष में उसने 3.04 लाख करोड़ रुपये की बॉन्ड खरीदारी की है। हालांकि बाजार उम्मीद कर रहा है कि आरबीआई हर सप्ताह बॉन्ड की खरीदारी करेगा जिससे कि वह पुराने बॉन्ड घटा सकेगा और ताजा खरीद सकेगा।

आरबीआई ने प्रतिफल सीमित करने के लिए प्रयास किए हैं?
आरबीआई के पास प्रयासों की कमी नहीं है, लेकिन अब बेहद प्रभावी प्रयास है ज्यादा बॉन्ड खरीदारी पर नजर रखना। यह ऐसी थ्योरी भी है जब बाजार में शॉर्ट-सेलर मौजूद होते हैं। यदि शॉर्ट-सेलर्स को दूर रखा जाए तो प्रतिफल काफी नीचे आ सकता है। आरबीआई द्वारा बैंकों को भी ज्यादा बॉन्ड खरीदने और उन्हें परिपक्वता तक बनाए रखनेकी अनुमति दी जानी चाहिए।

First Published - February 24, 2021 | 11:24 PM IST

संबंधित पोस्ट