Categories: बाजार

‘टीका आने में एक साल लग जाएगा’

Published by
बीएस संवाददाता
Last Updated- December 15, 2022 | 5:00 AM IST

सरकार के शीर्ष वैज्ञानिकों एवं अधिकारियों ने एक संसदीय समिति के समक्ष कहा है कि कोविड-19 महामारी का टीका बनने में कम-से-कम एक साल लग जाएगा और यह उनका सबसे आशावान आकलन है। शुक्रवार को हुई इस बैठक में बताया गया कि भारत इस महामारी के इलाज के लिए टीके के विकास की होड़ में काफी अहम भूमिका निभाने जा रहा है। दुनिया भर के 60 फीसदी टीके भारत में ही विकसित होते हैं।
हालांकि दवाओं के निर्माण में कच्चे माल के तौर पर इस्तेमाल होने वाली अद्यतन औषधि सामग्रियों (एपीआई) के मामले में चीन पर भारतीय दवा कंपनियों की निर्भरता को एक ‘बड़ी रणनीतिक चिंता’ माना गया है। इससे निपटने के लिए कुछ अल्पावधि समाधान भी सुझाए गए हैं।
वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के वैज्ञानिकों ने संसदीय समिति से कहा कि कोविड महामारी की वजह से कुछ बेहतरीन भारतीय छात्र विदेशी विश्वविद्यालयों में पढऩे के लिए नहीं जा पा रहे हैं जो एक तरह से प्रतिभाओं के पलायन को रोकने का एक मौका भी देता है।
सीएसआईआर ने समिति को यह सुझाव दिया कि पीएचडी-पश्चात शोध फेलोशिप (पीडीएफ) की संख्या को अगले साल से 300 से बढ़ाकर 800 कर दिया जाए। इसके साथ ही सीएसआईआर-नेट के जरिये पीएचडी छात्रों की संख्या को भी 5,000 से बढ़ाकर 7,500 करने की सिफारिश की गई है। इन दोनों प्रस्तावों पर अमल के लिए अगले पांच वर्षों में 2388.22 करोड़ रुपये के अतिरिक्त बजट की जरूरत पड़ेगी।
वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान विभाग (डीएसआईआर) ने भविष्य में आने वाली महामारियों के लिए योजना बनाने के वास्ते एक ‘रणनीतिक थिंक-टैंक’ बनाने का सुझाव भी रखा। यह विचार-समूह जीनोम-एडिटिंग जैसे नैतिक सवालों पर भी गौर करेगा। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन पर गठित संसद की स्थायी समिति के 30 में से केवल छह सदस्य ही शुक्रवार सुबह हुई इस बैठक में शामिल हो पाए। इस तरह समिति के अध्यक्ष जयराम रमेश की वह मांग सही साबित होती हुई नजर आई जिसमें उन्होंने राज्यसभा के सभापति एवं उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू से सदस्यों को ऑनलाइन भागीदारी की अनुमति देने का अनुरोध किया था। संसद का सत्र नहीं होने और महामारी के काल में अधिकतर संसद सदस्य इस समय दिल्ली से बाहर ही हैं। मौजूदा हालात को देखते हुए संसदीय समिति की बैठक में शामिल हुए सभी छह सांसदों ने एकमत से यह मांग रखी कि वर्चुअल बैठक की अनुमति दी जानी चाहिए। इनमें सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद भी शामिल थे।
समिति की इस बैठक में ‘कोविड-19 के लिए वैज्ञानिक एवं तकनीकी तैयारी’ के विषय पर चर्चा की गई। करीब तीन घंटे चली इस बैठक में भविष्य की आपदाओं के लिए भी तैयारी को दुरुस्त करने पर जोर दिया गया। बैठक में जैव-प्रौद्योगिकी विभाग, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, सीएसआईआर एवं डीएसआईआर के प्रतिनिधियों के अलावा सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार के विजय राघवन भी मौजूद थे। उन्होंने कोविड महामारी को लेकर जारी तैयारियों के बारे में सांसदों को जानकारी दी। उन्हें कोविड के  टीके की जल्द उपलब्धता और दवाइयों एवं स्वास्थ्य उपकरणों की स्थिति के बारे में भी जानकारी दी गई।
वैज्ञानिकों ने समिति को बताया कि दुनिया भर में सबसे जल्द कोई टीका 2021 की शुरुआत में ही आ सकेगा और यह इस पर निर्भर करता है कि इंसानों पर किए जाने वाले सभी परीक्षणों के नतीजे सकारात्मक निकलें। बहरहाल वैज्ञानिकों के बीच इस पर एक तरह की सहमति थी कि अगर अगले एक साल में भी कोई टीका आ जाता है तो वह आशावादी नजरिया ही होगा।
भारतीय दवा कंपनियों द्वारा चीन से एपीआई के आयात के मसले पर अधिकारियों ने कहा कि कोई अल्पावधि समाधान नहीं होने से यह एक नीतिगत चुनौती है। भारत की घरेलू दवा कंपनियों को स्वदेश में ही एपीआई बनाने पर निवेश की जरूरत पर बल दिया गया।
भविष्य में महामारियों के लिए तैयारी की एक रणनीति के तौर पर डीएसआईआर ने अकादमिक शोध एवं विकास संस्थानों को मजबूत करने का सुझाव दिया है। उसने कहा कि विषाणु-विज्ञान एवं संक्रामक बीमारियों के क्षेत्र में उत्कृष्टता के लिए उन्नत केंद्रों के गठन की भी जरूरत है।

First Published : July 10, 2020 | 10:52 PM IST