कोविड संक्रमण और बढ़ते बॉन्ड प्रतिफल की वजह से दुनियाभर में ज्यादातर इक्विटी बाजारों ने पिछले कुछ महीनों से उतार-चढ़ाव का सामना किया है। ‘द ग्लूम, बूम ऐंड डूम रिपोर्ट’ के संपादक एवं प्रकाशक मार्क फेबर ने पुनीत वाधवा के साथ एक साक्षात्कार में कहा कि उनके पोर्टफोलियो में भारतीय शेयर शामिल नहीं हैं, और सेंसेक्स 40,000-45,000 के दायरे में आने पर वे खरीदारी पर फिर से विचार कर सकते हैं। मुख्य अंश:
2020 में गिरावट के बाद वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार दिख रहा है। क्या हम चिंताओं से उबर चुके हैं?
यह इस पर निर्भर करता है कि आप कितनी तेजी से सुधार दर्ज करते हैं। यदि शेयर बाजारों की बात की जाए, तो मेरा जवाब हां है। शेयर बाजार, संपत्ति बाजार, और क्रिप्टोकरेंसी में तेजी आई है। दूसरी तरफ, जब आप रोजगार की बात करें तो यह लोगों की संख्या पर निर्भर करता है, जो कुल आबादी के प्रतिशत के तौर पर काम करते हैं और फिर अर्थव्यवस्था, जो अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रही है। वैश्विक अर्थव्यवस्था 2019 में दर्ज स्तरों से नीचे है। वहां बड़ी तादाद में लोग अपना रोजगार गंवा चुके हैं। अमेरिका में ऐसे लोगों की तादाद अच्छी खासी है जो काम नहीं करना चाहते हैं, क्योंकि उन्हें सरकार से लाभ मिल रहा है। उन्हें काम के बदले मिलने वाले पारिश्रमिक से ज्यादा सब्सिडी मिलती है। इसलिए शेयर बाजार मजबूत दिख रहा है, अर्थव्यवस्था नहीं।
सभी क्षेत्रों में शेयर बाजार में रिकवरी असमान रही है। क्या यह स्थिति बनी रहेगी?
हां, यूरोप में शेयर बाजार अभी भी 2018-19 के मुकाबले काफी नीचे हैं। एशिया में, कई बाजार दो साल पहले के स्तरों के मुकाबले काफी नीचे बने हुए हैं। यह रुझान बरकरार रहगा।
कोविड के बढ़ते मामलों की पृष्ठभूमि में भारतीय अर्थव्यवस्था पर आपका क्या नजरिया है?
यह इस पर निर्भर करता है कि लोग कोविड के बारे में क्या सोचते हैं। मेरा मानना है कि यह फ्लू, एक गंभीर फ्लू जैसा है। जब पूरी दुनिया में यह फ्लू फैला है तो प्रतिरक्षा पर जोर दिया जाएगा। भारत, वियतनाम, और थाइलैंड में पिछले साल कोविड की पहली लहर के वक्त तुलनात्मक तौर कम मामले आए थे। अमेरिका में बड़ी तादाद में मामले आए। यदि हम अन्य बीमारियों से होने वाले नुकसान के साथ इस महामारी की तुलना करें तो, कोविड के मामलों में मृत्यु दर अभी भी नीचे बनी हुई है। मेरा मानना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था 2021 में वास्तविक संदर्भ में 4-5 प्रतिशत की दर से बढ़ सकती है। हालांकि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए फिलहाल किसी तरह की मंदी की भविष्यवाणी करना कठिन है।
पिछले एक साल में आपकी निवेश रणनीति कैसी रही?
मैंने रियल एस्टेट, शेयरों, बॉन्डों, जिंसों, कीमती धातुओं, और कुछ क्रिप्टोकरेंसी के विविधतापूर्ण पोर्टफोलियो को बनाए रखा। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि मैंने विविधता पर ध्यान दिया है। बेहद गैर-आकर्षक परिसंपात्तियां फिलहाल बॉन्ड हैं। हालांकि अमेरिका में, हमने प्रोत्साहन और कुछ खर्च की वजह से मजबूत रिकवरी दर्ज की। अब यह सब समाप्त हो जाएगा। इसलिए, मेरा मानना है कि अमेरिकी बॉन्ड बाजार में बदलाव आएगा। दीर्घावधि के लिहाज से दुनियाभर में ब्याज दरें बढ़ेंगी।
परिसंपत्ति वर्ग के तौर पर आप इक्विटी के बारे में क्या कहना चाहेंगे?
मैं एशियाई बाजारों को पसंद कर रहा हूं। हांगकांग और सिंगापुर में शेयर बाजार काफी सस्ते हैं। आप इन दो बाजारों में आसानी से ऐसा पोर्टफोलियो तैयार कर सकते हैं जो करीब 4 प्रतिशत का लाभांश प्रतिफल दे सके, और यह बैंक में पड़ी रकम पर ब्याज के मुकाबले बेहतर प्रतिफल है।
लेकिन भारत में प्रमुख सूचकांकों ने पिछले वित्त वर्ष में दो अंक में शानदार प्रतिफल दिया है। क्या आप इससे आकर्षित नहीं हुए हैं?
हां, मैं इस पर सहमत हूं कि प्रतिफल अच्छा रहा। यदि कोई यह मानता है कि भारतीय शेयर बाजार अगले 10 वर्षों तक हर साल 70 प्रतिशत तक चढ़ेंगे, तो मैं आपको इसकी शुभकामना देता हूं। सभी एशियाई बाजारों में, भारतीय बाजार बेहद महंगे हैं। मौजूदा समय में, भारतीय शेयर बाजार में मेरा निवेश नहीं है। मैं सेंसेक्स 40,000-45,000 के दायरे में आने पर भारतीय शेयरों पर विचार कर सकता हूं। अगले एक साल में भारतीय शेयर बाजार से प्रतिफल निराशाजनक रहेगा।