ग्लोबल मार्केट्स इंडिया के प्रमुख गौतम छावछरिया का कहना है कि हालांकि कई लोग बाजार में मंदी के लिए विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों की बिकवाली को जिम्मेदार बता रहे हैं, लेकिन असली समस्या महंगे मूल्यांकन के बीच कमजोर आय है।
यूबीएस इंडिया समिट से पहले मुंबई में समी मोडक के साथ बातचीत में छावछरिया ने बताया कि वित्त वर्ष 2025 की कमजोर आय वृद्धि का असर अब बाजार के अनुमानों में दिख रहा है। निवेशकों का ध्यान आरबीआई और केंद्र सरकार के कदमों के साथ-साथ राज्यों के आगामी चुनाव नतीजों पर केंद्रित हो गया है। मुख्य अंश:
भारतीय बाजार सितंबर के अपने ऊंचे स्तरों से काफी नीचे आए हैं। गिरावट की क्या वजह है?
बाजार में कई लोग रिकॉर्ड विदेशी पोर्टफोलियो निकासी का जिक्र कर रहे हैं। बाजार पूंजीकरण के प्रतिशत या उनकी होल्डिंग के प्रतिशत के लिहाज से देखें तो बिकवाली बहुत अधिक नहीं है। हमारे विचार में मुख्य बात ऊंचे मूल्यांकन के लिहाज से आय का कमजोर रहना है। बाजार को दूसरी तिमाही में कमजोर आय की आशंका थी लेकिन वास्तविक आंकड़े इन कमजोर अपेक्षाओं से भी खराब थे।
क्या एफपीआई की बिकवाली जारी रहेगी? विदेशी निवेश को बनाए रखने के लिए क्या करना होगा?
हमारा मानना है कि अमेरिकी चुनाव परिणाम के बाद वहां की नीतिगत स्थिति अमेरिकी इक्विटी की तुलना में उभरते बाजार (ईएम) इक्विटी के लिए प्रतिकूल हो सकती है। अमेरिका में बदले नीतिगत परिदृश्य के प्रभाव के लिहाज से भारत उभरते बाजारों में बेहतर स्थिति में है। हालांकि यह मूल्यांकन में दिख सकता है क्योंकि बाजार इस तरह के परिणाम की उम्मीद कर रहे थे। इसलिए बिकवाली का कुछदबाव रह सकता है, लेकिन एफपीआई की रुचि बनी रहेगी। हमारे यूबीएस इंडिया शिखर सम्मेलन में उनकी मौजूदगी से यह साफ है।
क्या भारतीय बाजार घरेलू संस्थागत निवेशकों के समर्थन का लाभ उठाते रहेंगे?
मुझे ऐसी ही संभावना दिख रही है। स्थानीय खुदरा निवेशकों ने पिछले दशक में तीन महत्वपूर्ण बाजार सुधार देखे हैं। निवेश प्रवाह लगातार बढ़ता जा रहा है। बुनियादी आधार पर हालांकि अल्पावधि में वृद्धि में नरमी दिखी है। लेकिन मध्यावधि परिदृश्य मजबूत बना हुआ है, जिससे घरेलू निवेश प्रवाह सुधर सकता है।
चीन के बाजार अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं और वहां राहत पैकेज आने से क्या भारत के साथ अंतर और कम हो पाएगा?
यह चीन के मल्टीपल बढ़ने पर अधिक निर्भर करता है, भारत के मल्टीपल के सही होने पर कम। यह चीन के आगे के प्रोत्साहन उपायों के आकार और समय पर निर्भर करता है।
भारत के आकर्षण के पीछे मजबूत आय वृद्धि को मुख्य कारण माना गया। दूसरी तिमाही में आय में निराशा के साथ वित्त वर्ष 2025 में आय वृद्धि सपाट रह सकती है। क्या यह चिंता का कारण है?
वित्त वर्ष 2025 कमजोर आय वाला वर्ष रहेगा, यह अंदाजा लग गया है। धीरे-धीरे इसका असर दिख भी रहा है। महत्वपूर्ण बात यह है कि इससे आगे का दृष्टिकोण क्या है। आरबीआई और केंद्र सरकार दोनों का नीतिगत रुख, सुधार एजेंडे और अंततः राज्यों के आगामी चुनावों के बाद राजनीतिक अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना है। हमारा माना है कि वित्त वर्ष 2026 में आय में सुधार आएगा।
भारतीय इक्विटी के लिए अन्य प्रमुख बाधाएं और अनुकूल परिस्थितियां क्या हैं? अगले बड़े ट्रिगर क्या हैं?
अल्पावधि में विकास और राजनीतिक अर्थव्यवस्था की चिंताएं मुख्य समस्या हैं जबकि स्थानीय निवेश अनुकूल बना हुआ है। आगामी मुख्य बदलाव अमेरिका द्वारा कोई बड़ा नीतिगत कदम उठाना, सुधारों के एजेंडे को आगे बढ़ाना और सबसे महत्वपूर्ण बात, नीति में ढील देना हो सकते हैं।