विश्लेषकों का मानना है कि मौजूदा स्तरों पर ईंधन कीमतों से संबंधित मुद्रास्फीति का प्रभाव बाजारों पर पूरी तरह से नहीं दिखा है। विश्लेषकों को मुद्रास्फीति संबंधित दबाव शुरू होने पर प्रमुख सूचकांकों में 8-10 प्रतिशत की गिरावट आने की आशंका दिख रही है।
सप्ताहांत के दौरान थोक खरीदारों के लिए डीजल कीमतों में 25 रुपये प्रति लीटर की वृद्घि के बाद सरकार ने पेट्रोल और डीजल कीमतों में 80 पैसे प्रति लीटर तक की वृद्घि की है, जबकि घरेलू रसोई गैस (एलपीजी) कीमतों में प्रति सिलिंडर 50 रुपये तक का इजाफा किया गया था और इसके साथ ही बढ़ती कच्चे तेल की कीमतों में दर बदलाव को लेकर साढ़े चार महीने से चल रही चुनाव संबंधित अनिश्चितता समाप्त हो गई है।
आईडीबीआई कैपिटल में शोध प्रमुख ए के प्रभाकर ने कहा, ‘बाजार ईंधन कीमतों में वृद्घि के लिए पहले से ही तैयार है और यही वजह है कि हाल में तेज गिरावट आई है। रूस से सस्ता कच्चा तेल हासिल होने के बावजूद, आपको यह ध्यान रखना चाहिए कि भारत में सिर्फ दो रिफाइनरियां (आरआईएल और एस्सार ऑयल) को ही इस क्रूड वेरायटी के प्रसंस्करण की क्षमता हासिल है। सार्वजनिक क्षेत्र की रिफाइनिंग कंपनियां एचपीसीएल, बीपीसीएल और आईओसी के लिए प्रसंस्करण लागत ज्यादा आएगी, इसलिए रूसी कच्चे तेल के लिए छूट कुछ हद तक तटस्थ रहेगी। मौजूदा स्तरों से बाजार में अन्य 8-10 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है, क्योंकि उनमें ईंधन कीमत आधारित मुद्रास्फीति प्रभाव का पूरा असर दिखना बाकी है।’
पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतें अक्टूबर 2021 से थमी हुई थीं, जब कच्चे तेल की कीमतें 80 डॉलर प्रति बैरल के आसपास थीं। वहीं तेल कीमतों में पिछले एक महीने में उतार-चढ़ाव आया है और रूस एवं यूक्रेन के बीच भूराजनीतिक तनाव की वजह से ये बढ़कर 140 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गईं, लेकिन समस्याएं कुछ हद तक थमने के संकेत की वजह से घटकर 95 डॉलर के आसपास आ गईं। फिर से कीमतें चढ़कर 110 डॉलर के स्तर पर पहुंच गई हैं।
इक्विनोमिक्स रिसर्च के संस्थापक एवं मुख्य निवेश अधिकारी जी चोकालिंगम ने कहा, ‘बड़े उपयोगकर्ताओं के लिए डीजल कीमतों में वृद्घि का कदम कम मुद्रास्फीतिकारी है और इससे मुद्रास्फीतिकारी प्रभाव के लिए समय अंतर बढ़ेगा। खासकर, राज्य चुनाव परिणाम आने के बाद और खासकर रूस एवं यूक्रेन हमले की पृष्ठभूमि तथा कच्चे तेल की कीमतों पर उसके प्रभाव के बाद बाजार कीमतों में बड़ी तेजी की उम्मीद कर रहा था।’
आर्थिक दबाव
यूबीएस सिक्योरिटीज के विश्लेषकों का कहना है कि चूंकि भारत अधिक मांग के साथ शुद्घ तेल आयातक है और अपनी तेल जरूरत का 84 प्रतिशत हिस्सा आयात करता है, इसलिए वैश्विक तेल कीमतों में लगातार तेजी अर्थव्यवस्था के लिए नकारात्मक झटका है और इससे ऊंची मुद्रास्फीति को बढ़ावा मिल सकता है।
यूबीएस सिक्योरिटीज में अर्थशास्त्री तन्वी गुप्ता जैन ने कहा, ‘कच्चे तेल की कीमतों में 10 प्रतिशत की तेजी से सीपीआई मुद्रास्फीति में 30 आधार अंक तक का इजाफा होगा, यदि सरकार पूरी वृद्घि का बोझ उपभोक्ता पर डाले।’
इस बीच उपभोक्ता कीमत सूचकांक (सीपीआई) मुद्रास्फीति फरवरी में सालाना आधार पर बढ़कर 6.1 प्रतिशत पर पहुंच गई, जो जनवरी के 6 प्रतिशत से ज्यादा है।