दुनिया में आई मंदी की मार से सभी शेयर बाजार औंधे मुंह पड़े हैं। इस वजह से कई कंपनियां भी बाजार से दूरी बनाए रखते हुए अपने आईपीओ लाने से कतरा रही हैं।
नतीजतन जारी वर्ष की पहली छमाही में 2003 केबाद सबसे कम आईपीओ लिस्ट हुए। विकास की मौजूदा रफ्तार और कर्ज के फैलते जाल को देखते हुए हालात बदलने का भरोसा रखने वाले निवेशकों की संख्या बहुत कम हो गई है।
एक एजेंसी के आकड़ों के अनुसार जून तक दुनिया के बाजारों में 333 कंपनियों ने अपने आईपीओ लिस्ट कराए, जबकि पिछले साल इसी समयावधि में इनकी संख्या 702 थी। इन आईपीओ के जरिए कुल 73.2 अरब डॉलर की राशि एकत्र की गई। यह राशि बीते साल के मुकाबले 41 फीसदी कम थी, जबकि 2005 के बाद यह सबसे कम है।
अमेरिका में 1978 के बाद यह पहली बार पिछली तिमाही में कि अमेरिका के वेंचर केपिटल फंड किसी कंपनी को पब्लिक कंपनी बनाने में असफल रहे। निवेशक किसी नई पब्लिक कंपनी से नजरें हटा रहे हैं क्योंकि ग्लोबल क्रेडिट क्रंच से ग्राहकों का विश्वास डगमगा गया है। आईपीओ वॉल स्ट्रीट जनरल का सबसे अधिक प्रॉफिट देने वाला कारोबार है। लेकिन मंदी के कारण वहां अंडरराइटिंग फीस 50 फीसदी घटकर 2.42 अरब डॉलर ही रह गई है।
2008 की पहली छमाही में आईपीओ के लिए अदा की गई फीस कुल जुटाई रकम का 3.3 फीसदी था। जबकि जुटाई गई इस रकम के लिए उन्होने एक फीसदी का मर्जर एडवाइजरी रेट अदा किया। क्लीवलैंड स्थित एलिगेंट एसेट मैनजमेंट के फंड मैनेजर एलेक्स वेलीसिलो ने बताया कि लोग अब और जोखिम नहीं उठाना चाहते। फिर जब आईपीओ की बात आती है तो आप सामान्यतौर पर छोटी कंपनियों के बारे में बात करते हैं जिनके बारे में वे कम ही जानते हैं।
एलिगेंट ने एसेट में 28 अरब डॉलर लगा रखे हैं। नतीजतन इश्यू खस्ताहाल हैं। बाजार की हालत रातोंरात तो बदलने से रही सो अब लोगों को अब एक ड्रामेटिक रीबाउंड की उम्मीद है जो निराशा के माहौल को बदलकर रख दे। दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियां अब तक 400 अरब रुपये गंवा चुकी हैं। इस स्थिति को अमेरिका के हाउसिंग क्षेत्र में आई मंदी ने और खराब कर दिया है।