बाजार को टीसीएस के नतीजों से झटका लगा है। सितंबर की तिमाही में उसे 1,262 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ है।
यह जून की तिमाही की तुलना में बिलकुल फ्लैट है। हालांकि उसे हेजिंग के चलते भी कुछ नुकसान उठाना पड़ा है। हालांकि टीसीएस का वाल स्ट्रीट में एक्सपोजर और वैश्विक बाजार की खराब हालत को देखते हुए यह नतीजे इतने बुरे नहीं है।
कंपनी के लिए अच्छी खबर है कि उसके राजस्व में 42 फीसदी का हिस्सा रखने वाली बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र से राजस्व इस तिमाही में बढ़ा है। इस तिमाही में ऑफशोरिंग में भी इजाफा हुआ है जबकि इस दौरान कीमतों में मामूली तीन फीसदी की और वॉल्यूम में छह फीसदी बढ़ीं। नतीजतन कंपनी का राजस्व 8.5 फीसदी बढ़कर 6,953 करोड़ रुपये हो गया।
जून की तिमाही में वॉल्यूम बेहद कम इजाफा हुआ था। इस तिमाही में सेलिंग कास्ट में इजाफा जरूर हुआ, लेकिन अन्य लागतों को नियंत्रण में रखा गया। इसी का परिणाम है कि इसका ऑपरेटिंग मार्जिन 2.3 फीसदी बढ़कर 26.2 फीसदी हो गया। यह स्थिति और बेहतर होती अगर उसने उन वित्तीय सेवा एकाउंट जिनसे उसे नुकसान होने का अंदेशा था, के लिए अतिरिक्त प्रोविजनिंग न की होती। क्लाइंटों की संख्या के लिहाज से भी टीसीएस की स्थिति बेहतर थी।
जून की तिमाही में उसने जहां 51 फीसदी क्लाइंट जोड़े थे तो सितंबर की तिमाही में उसने 35 क्लाइंट जोड़ लिए। इसमें सिटी ग्रुप के ऑर्डर समेत छह अच्छे बड़े ऑर्डर भी शामिल हैं। टीसीएस में भर्ती की प्रक्रिया भी चल रही है। इसके तहत उसने जारी वर्ष 35,000 नए लोगों को भर्ती करने की योजना बनाई है।
सबसे अहम बात यह है कि कंपनी लगातार अच्छे क्लाइंट तलाश रहा है। उसने लगभग हर क्षेत्र में अपने क्लाइंट बढ़ाए हैं जिनकी बिलिंग 10 लाख डॉलर से अधिक है। इससे उसे 5 करोड़ डॉलर का कुल राजस्व मिला।
भले ही कंपनी के नतीजे संतोषप्रद हों, लेकिन उसे लगातार चुनौतीपूर्ण वातावरण से जूझना पड़ सकता है जिससे कीमतों और वॉल्यूम दोनों छोर से कंपनी को दबाव का सामना करना पड़ सकता है। अमेरिका और यूरोप में आ रही मंदी और वैश्विक वित्त बाजार के संकट जैसी समस्याएं अभी खत्म होने की स्थिति में नहीं हैं।
टेक कंपनियों के मुनाफे पर कमजोर करंसी मुवमेंट भी बुरा असर डाल रहा है। भले ही टीसीएस के शेयर की कीमत में भारी करेक्शन हुआ है और यह 546 रुपये पर पहुंच गई है। इसके बाद भी यह कहना मुश्किल ही होगा कि उसके लिए मुश्किलों का दौर खत्म हो गया है। आने वाले माहों में साफ तस्वीर सामने आने की उम्मीद है।
अशोक लीलैंड: धीमी चाल
बस और ट्रक निर्माता कंपनी अशोक लीलैंड के सितंबर तिमाही के नतीजे बाजार की उम्मीदों के अनुसार ही रहे। विश्लेषक इस समय इस बात को लेकर अधिक चिंतित हैं कि आने वाले सालों में विकास की गति के धीमें पड़ने की आशंका से कॉमर्शियल वाहनों की बिक्री कम हो सकती है।
परेशानी इतनी भर नहीं है। इस समय ब्याज की दरें अधिक हैं और क्रेडिट की स्थिति बेहद तंग है। इसके चलते कंपनी को डेट पर अधिक ब्याज दर चुकानी होगी जिसकी जरूरत कंपनी को अगले दो सालों में पूंजी व्यय के लिए पड़ने वाली है।
अब से वित्तीय वर्ष 2010 तक कंपनी विभिन्न मदों में 2,500 करोड़ रुपये के व्यय की योजना बना रही है। इसके चलते कंपनी के मुनाफे के इस साल 20 फीसदी के करीब आने का अनुमान है जो वित्तीय वर्ष 2008 में 479 करोड़ रुपये था।
सितंबर की तिमाही में कंपनी का वॉल्यूम बेहद कम 9.3 फीसदी पर आ गया। इसका कारण घरेलू बाजार में बिक्री में आई कमी रही। कंपनी ने अपनी कीमतों में इजाफा किया और इसके साथ इंजिन, रक्षा आयुध आपूर्ति और स्पेयर पार्ट्स की बिक्री आदि कारोबारों में उसका प्रदर्शन बेहतर रहा।
इसके लिए चलते उसके राजस्व में 7 फीसदी का इजाफा हुआ है। प्रबंधन ने अक्टूबर से बस और ट्रक दोनों की कीमतों में 2 फीसदी के इजाफे की घोषणा की है। इससे वॉल्यूम शेष साल बेहद कमजोर रहेगा।
एसआईएम के आंकड़े बताते हैं कि मध्यम और भारी कमर्शियल वाहनों वॉल्यूम अप्रैल और सितंबर की तिमाही के बीच 1.6 फीसदी गिरा है। मध्यम और भारी कॉमर्शियल वाहनों के क्षेत्र में एल कई प्रॉडक्ट मिक्स लेकर आया है।
इससे उसे अच्छा रियेलाइजेशन अर्जित करने में मदद मिलेगी। हालांकि इसका लाभ उसे लंबी अवधि में ही नजर आएगा। सितंबर की तिमाही में ऊंची इनपुट लागत को देखते हुए इसका रियेलाइजेशन अच्छा नहीं रहा।
इस दौरान इसका ऑपरेटिंग मार्जिन 1.1 फीसदी गिरकर 8.3 फीसदी रह गया जबकि कच्चे माल की लागत बिक्री के हिस्से के रूप में 2.6 फीसदी बढ़ा। इन दोनों के कारण कंपनी को 14.35 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा का नुकसान हुआ। इसके लिए कंपनी अपनी फॉरेन करंसी एसेट और लाइबिलिटीज को रीस्टेट कर रही है।
इस तिमाही में कंपनी का शुध्द मुनाफा 67 करोड़ रुपये से 16 फीसदी कम हो गया। आर्सेलर मित्तल ने कहा था कि कमजोर मांग के साथ सामंजस्य बिठाने के लिए उसने अपना आउटपुट 15 फीसदी घटा लिया है।