कर नियमों में बदलाव के बाद कंपनियां शेयर पुनर्खरीद की घोषणा नहीं कर रही हैं। असल में नए नियम के मुताबिक 1 अक्टूबर, 2024 से शेयर पुनर्खरीद पर कर देनदारी कंपनियों के बजाय शेयरधारकों की होगी। इसमें पुनर्खरीद से होने वाले लाभ को लाभांश की तरह माना जाएगा और इस पर शेयरधारक को अपने आयकर स्लैब के हिसाब से कर चुकाना होगा। इससे उच्च कर दायरे में आने वाले धनाढ्य और संस्थागत निवेशकों पर कर देनदारी बढ़ जाएगी यानी पुनर्खरीद मामले में उन्हें ज्यादा कर चुकाना होगा।
नियम में बदलाव के बाद दो कंपनियां मैट्रिमनी डॉट कॉम (72 करोड़ रुपये) और फेरो अलॉय विनिर्माता नावा (360 करोड़ रुपये) के ही पुनर्खरीद पूरे हुए हैं। प्राइम डेटाबेस के प्रबंध निदेशक प्रणव हल्दिया ने कहा, ‘कर नियम में बदलाव के बाद से पुनर्खरीद का सूखा पड़ गया है। अक्टूबर से बाजार में नरमी का रुख बना हुआ था और आम तौर पर बाजार में मंदी के दौरान खूब पुनर्खरीद होती हैं, मगर इस बार ऐसा नहीं दिखा।’
कंपनियां अपने शेयरधारकों को अतिरिक्त नकदी लौटाने के लिए लाभांश और पुनर्खरीद का सहारा लेती हैं। नए कर ढांचे में लाभांश और पुनर्खरीद के बीच कर में अंतर को दूर कर दिया गया है। वर्तमान में लाभांश का भुगतान करने पर कंपनी को कर नहीं देना होता है क्योंकि कर का भुगतान लाभांश प्राप्त करने वालों को अपने कर स्लैब की दर के हिसाब से करना होता है।
कर विश्लेषकों का मानना है कि अधिशेष धन शेयरधारकों को लौटाने के लिए लाभांश अभी भी अच्छा तरीका है। पुनर्खरीद के विपरीत लाभांश वितरण के लिए मर्चेंट बैंकरों की आवश्यकता नहीं होती है और भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड से कम अनुपालन आवश्यकताओं को पूरा करना होता है। इसकी वजह से लाभांश वितरण तेजी से हो जाता है जबकि पुनर्खरीद पूरी होने में कम से कम सप्ताह भर लगता है।
वित्त वर्ष 2017 और 2019 के बीच कर विसंगति के कारण अधिशेष नकदी आवंटन में पुनर्खरीद का हिस्सा काफी बढ़ गया था। 1 अप्रैल, 2016 को सरकार ने लाभांश पर अतिरिक्त 10 फीसदी कर लगा दिया था जिससे प्रभावी लाभांश वितरण कर 20.6 फीसदी हो गया जबकि सूचीबद्ध कंपनियों द्वारा पुनर्खरीद पर कर छूट थी। वित्त वर्ष 2016 में कुल अधिशेष धनराशि वितरण में पुनर्खरीद की हिस्सेदारी महज 1 फीसदी थी जो वित्त वर्ष 2017 से 2019 के दौरान औसतन 25 फीसदी तक बढ़ गई। कर खामियों को दूर करने के लिए सरकार ने 1 अप्रैल, 2019 से पुनर्खरीद पर 20 फीसदी कर लागू कर दिया।
एचडीएफसी सिक्योरिटीज के पूर्व रिटेल शोध प्रमुख दीपक जसानी ने कहा, ‘कंपनियां अब पुनर्खरीद की जगह लाभांश को तरजीह दे रही हैं। पुनर्खरीद से प्रति शेयर आय में मामूली इजाफा होता है क्योंकि पुनर्खरीद राशि बाजार पूंजीकरण का एक छोटा हिस्सा होता है।’ उन्होंने कहा कि पुनर्खरीद से केवल प्रवर्तकों को अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने का फायदा होता है। बाजार नियामक सेबी के मार्च 2025 से खुले बाजार से पुनर्खरीद को खत्म करने का भी इस पर असर पड़ा है।