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बढ़ते प्रतिफल से कम अवधि के डेट फंडों में चमक

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 9:26 PM IST

सरकारी प्रतिभूतियों पर प्रतिफल पिछले दो दिनों के दौरान बढ़ा है, क्योंकि केंद्र ने अगले वित्त वर्ष के लिए राजकोषीय घाटा लक्ष्य और उधारी लक्ष्य बढ़ाया है। फंड प्रबंधकों का कहना है कि अगले कुछ महीनों के दौरान प्रतिफल बढऩे की उम्मीदों के बीच निवेशकों को कम अवधि के फंडों और लक्षित परिपक्वता वाले फंडों में निवेश करना चाहिए।
बजट 2022-23 में ऊंचे पूंजीगत खर्च के जरिये लगातार वृद्घि पर जोर दिया गया है। वित्त वर्ष 2023 में राजकोषीय घाटा अनुमान जीडीपी के 6.4 प्रतिशत और 2022 में 6.9 प्रतिशत पर है, और दोनों ही बाजार अनुमानों से कुछ अधिक रहेंगे।
बाजार कारोबारियों का कहना है कि वित्त वर्ष 2023 के लिए सकल बाजार उधारी कार्यक्रम 14.95 लाख करोड़ रुपये पर काफी ऊपर है, जिससे 10 वर्षीय सरकारी प्रतिभूतियों के प्रतिफल में भारी तेजी को बढ़ावा मिला है।
बुधवार को, 10 वर्षीय सरकारी प्रतिभूति का प्रतिफल 6.88 प्रतिशत पर कारोबार कर रहा था, वहीं पिछले महीने के मुकाबले यह 43 आधार अंक तक ज्यादा था।
ऐक्सिस एमएफ ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि बजट डेट बाजारों के लिए उत्साहित नहीं था। वैश्विक समावेशन के साथ साथ ऊंचे उधारी लक्ष्य से दरें और ऊपर जा सकती हैं।
ऐक्सिस एमएफ ने कहा है, ‘डेट रणनीतियों के लिए आवंटन की संभावना देख रहे निवेशकों को कम अवधि के प्रोफाइल वाले फंड सेगमेंट पर ध्यान देने की सलाह दी गई है और उन्हें 6-12 महीनों के दौरान ऊंची दरों में परिपक्वता रणनीतियों का इस्तेमाल करना चाहिए। बॉन्ड प्रतिफल में उतार-चढ़ाव बढ़ सकता है और इसलिए निवेशक अपने आवंटन में सतर्क बने रह सकते हैं।’
पिछले सप्ताह के दौरान कई दीर्घावधि फंड श्रेणियों ने कमजोर प्रतिफल दिया। वैल्यू रिसर्च के आंकड़े से पता चलता है कि औसत प्रतिफल 10 वर्षीय फंडों द्वारा 1.07 प्रतिशत रहा। वहीं लंबी अवधि के फंडों और जिल्ट फंडों में पिछले सप्ताह के दौरान 0.66 प्रतिशत और 0.44 प्रतिशत तक की कमी दर्ज की गई।
पीजीआईएम इंडिया एमएफ में फिक्स्ड इनकम के प्रमुख पुनीत पाल ने कहा, ‘आरबीआई द्वारा वित्त वर्ष 2023 में दरे बढ़ाने की संभावना के साथ दर चक्र बदल रहा है, जिसे देखते हुए हमें विश्वास है कि प्रतिफल की राह मजबूत बनी रहेगीऔर लंबी अवधि के बॉन्डों पर ऊंची उधारी की वजह से दबाव बना रहेगा। हम निवेशकों को अल्पावधि के फंडों (1-3 वर्षों की अवधि) में बने रहने की सलाह दे रहे हैं, क्योंकि आरबीआई दर वृद्घि में आक्रामकता नहीं दिखाएगा।’
निर्धारित आय वाली प्रतिभूतियों की कीमतें बाजारों में मौजूद ब्याज दरों द्वारा नियंत्रित हैं। ब्याज दरें और निर्धारित आय प्रतिभूतियों की कीमतों का विपरीत संबंध है। जब ब्याज दरें घटती हैं, निर्धारित आय वाली प्रतिभूतियों की कीमतें बढ़ती हैं। इसी तरह जब ब्याज दरों में इजाफा होता है, निर्धारित आय वाली प्रतिभूतियों की कीमतों में कमी आती है।

First Published : February 3, 2022 | 11:14 PM IST