भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने कहा कि वह विदेशी संस्थागत निवेशकों(एफआईआई)द्वारा पी-नोट्स केजरिये विदेशों में शेयरों के उधार लेने और देने के पक्ष में नहीं है।
सेबी ने अपनी वेबसाइट पर जारी किए गए बयान में कहा कि यह विदेशी संस्थागत निवेशकों के उधार लेने और देने क्रियाकलापों पर गंभीरता से नजर रख रही है और पी-नोट के जरिये शॉर्ट सेलिंग पर लगाम लगाने केलिए आवश्यक मजबूत कदम उठाएगी। उल्लेखनीय है कि इक्विटी के बदले एफआईआई विदेशों में अपने क्लाइंट को पीएन जारी करते हैं लेकिन ये क्लाइंट इन शेयरों को अपने पास ही रखने के बजाय इसे दूसरे लोगों को देते हैं जोकि शॉर्ट सेलिंग करते हैं।
अधिकांश समय तो वास्तविक पीएन-धारक इन सब चीजों से अनभिज्ञ रहता है। गौरतलब है कि बाजार में भागीदारी करने वालों ने इस महीने सेंसेक्स और निफ्टी में 23 प्रतिशत की गिरावट आने केबाद बाजार में हो रही शॉर्ट सेलिंग पर चिंता जताई थी। इसकेबाद सेबी ने एफआईआई और उनके सब-एकाउंट से उनकी विदेशों में होनेवाली लेंडिंग क्रियाकलापों के आंकड़े मांगे।
एफआईआई पर लगाम लगाने के बाबत सेबी के अध्यक्ष सी बी भावे ने कहा कि एफआईआई के लेंडिंग क्रिया कलापों पर प्रतिबंध लगाने से इंनकार नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि स्टॉक लेंडिंग में सुधार के लिए स्थितियों की पुनर्समीक्षा की जाएगी और उन्होंने साथ ही कहा कि भारत में इसकी अवधि को बढाने की आवश्यकता है।
बाजार में कारोबारियों की माने तों इस साल अभी तक एफएफआई के द्वारा बेचे जाने वाले कुल शेयरों में से दो अरब डॉलर मूल्य के शेयरों की बिकवाली एफआई आई ने विदेशों में की है। अभी तक सेबी केसाथ पंजीकृत 250 विदेशी संस्थागत निवेशकों में से मात्र 17 ने अभी तक अपने आंकड़े जमा किए हैं।
इन 250 में से 50 ब्रोकर हैं जोकि एफआईआई केरूप में पंजीकृत हैं और ये ब्रोकर विदेशों में लेडिंग में किए जा रहें लेंडिंग और बारोइंग में सक्रिय हैं। मौजूदा आंकड़ों में सिर्फ 33 प्रतिशत ही विदेशी संस्थागत निवेशक हैं जोकि पी-नोट जारी करते हैं जो विदेशों में बिकवाली करते हैं।
सूत्रों के अनुसार इस कारोबार में जो विदेशी संस्थागत निवेशक अग्रणी हैं उनमें गोल्डमेन सैक्स, यूबीएस, मॉर्गन स्टैनली, डयुश बैंक, जेपी मॉर्गन शामिल हैं। ब्रोकर का कहना है कि पी-नोट पर से प्रतिबंध हटाने का विपरीत असर पडा है।