सुप्रीम कोर्ट ने आज भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) से उन उपायों के बारे में सोमवार तक जवाब दाखिल करने को कहा जिनके जरिये अदाणी समूह के बारे में अमेरिकी शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद शेयर बाजार में भारी गिरावट जैसी संकट की स्थिति से भारतीय निवेशकों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
शीर्ष अदालत ने इस मुद्दे पर सेबी से विस्तृत जवाब दाखिल करने को कहा है। सुप्रीम कोर्टने पूछा है कि इस प्रकार की घटनाएं रोकने के लिए एक मजबूत ढांचा किस प्रकार स्थापित किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़, पीएस नरसिम्हा एवं जेबी पर्दीवाला के पीठ ने कहा, ‘ऐसा कहा जा रहा है कि भारतीय निवेशकों को कई लाख करोड़ रुपये का नुकसान हो गया है। हम उनकी सुरक्षा कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं? बताया गया है कि नुकसान 10 लाख करोड़ रुपये तक हो सकता है। भविष्य में सेबी की क्या भूमिका होनी चाहिए?’
शीर्ष अदालत ने सेबी को व्यापक शक्तियां प्रदान करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति गठित करने का सुझाव दिया। अदालत ने कहा, ‘एक सुझाव यह है कि कोई समिति गठित की जाए। हम सेबी अथवा नियामकीय एजेंसियों पर शंका जाहिर नहीं करना चाहते हैं। लेकिन हमारा सुझाव यह है कि सोच-विचार की प्रक्रिया को कहीं अधिक व्यापक बनाया जाए ताकि कुछ इनपुट हासिल हो सके। उसके बाद सरकार निर्णय ले कि नियामकीय ढांचे में कहां संशोधन करने की आवश्यकता है। एक खास चरण के बाद हम नीतिगत क्षेत्र में आगे नहीं बढ़ सकते लेकिन उसके लिए एक ढांचा तैयार कर सकते हैं ताकि इस प्रकार की घटनाएं भविष्य में दोहराई न जा सकें। सरकार को इस पर विचार करना चाहिए।’
शीर्ष अदालत ने सुझाव दिया कि विशेषज्ञ समिति में प्रतिभूति क्षेत्र के विशेषज्ञों के अलावा एक पूर्व न्यायाधीश अथवा एक अंतरराष्ट्रीय वित्तीय कानून विशेषज्ञ को शामिल किया जा सकता है। उसने कहा, ‘हम सेबी को व्यापक भूमिका प्रदान कर सकते हैं और समिति सेबी की मौजूदा शक्तियों का विश्लेषण करते हुए सुझाव दे सकती है कि उसमें किस प्रकार सुधार किया जा सकता है ताकि पूंजी प्रवाह और अधिक निर्बाध हो सके।’
मुख्य न्यायाधीश ने सेबी की ओर से अदालत में मौजूद सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा, ‘आज पूंजी प्रवाह निर्बाध है। आप यह कैसे सुनिश्चित करेंगे कि निवेशक सुरक्षित हैं? अब हर कोई निवेशक है चाहे वह छोटा, मझोला अथवा बड़ा ही क्यों न हो।’
मेहता ने अदालत से कहा कि इस मामले का केंद्र भारत के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। उन्होंने कहा, ‘इस संबंध में तत्काल जवाब देना मेरे लिए जल्दबाजी होगी। मामले की शुरुआत हिंडनबर्ग की रिपोर्ट से हुई थी जो हमारे अधिकार क्षेत्र से बाहर है। कुछ कानूनों में इन चिंताओं पर गौर किया गया है। हम भी चिंतित हैं।’ सॉलिसिटर जनरल ने शीर्ष अदालत को आश्वस्त किया कि बाजार नियामक स्थिति पर करीबी नजर रख रहा है।
शीर्ष अदालत ने सॉलिसिटर जनरल को सुझाव दिया कि इस मामले में वित्त मंत्रालय के विशेषज्ञों से भी विचार-विमर्श किया जा सकता है। पीठ ने उन्हें यह भी कहा कि यदि केंद्र सरकार एक विशेषज्ञ समिति गठित करने के सुझाव को स्वीकार करती है तो इस संबंध में आवश्यक जानकारी दी जा सकती है।
शीर्ष अदालत अधिवक्ता विशाल तिवारी की उस जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट की जांच करने के लिए सुप्रीम कोर्टके एक अवकाश प्राप्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक समिति गठित करने के बारे में सरकार को निर्देश देने का अनुरोध किया गया है। मामले की अगली सुनवाई सोमवार 13 फरवरी को होगी।
पिछले सप्ताह अधिवक्ता एमएल शर्मा ने भी एक जनहित याचिका दायर की थी जिसमें अदाणी समूह के शेयरों में कृत्रिम गिरावट के जरिये भारतीय निवेशकों को चूना लगाने के लिए हिंडनबर्ग रिसर्च के नेथन एंडर्सन और भारत में उसके सहायकों पर मुकदमा चलाने का अनुरोध किया गया था।
तिवारी की याचिका में केंद्र सरकार, भारतीय रिजर्व बैंक और सेबी को प्रतिवादी बनाया गया है।