SMC Bill 2025: शेयर बाजार से जुड़े नियमों में कई दशकों बाद सबसे बड़ा सुधार होने जा रहा है। इन सुधारों का आकार देगा सिक्योरिटीज मार्केट्स कोड (SMC) बिल, 2025, जिसे पिछले गुरुवार को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में पेश किया है। यह बिल पूंजी बाजार नियामक सेबी की प्रवर्तन सीमा (enforcement reach) को एकदम साफ-साफ तय करता है और जांच-पड़ताल (inspections and investigations) पर आठ साल की वैधानिक सीमा लगाता है। इसका मकसद बाजार भागीदारों पर लंबे समय तक बने रहने वाले नियामकीय दबाव को रोकना है। हालांकि आठ साल की यह सीमा उन मामलों पर लागू नहीं होगी, जिनका सिक्योरिटी मार्केट पर सिस्टमैटिक असर पड़ता है।
समय सीमा तय करने के अलावा यह विधेयक समयबद्ध प्रवर्तन ढांचा (time-bound enforcement framework) भी पेश करता है। इसके तहत सेबी को 180 दिनों के भीतर जांच पूरी करनी होगी। साथ ही निवेशक संरक्षण को मजबूत करते हुए लोकपाल आधारित शिकायत निवारण तंत्र (Ombudsperson-led grievance redressal mechanism) की शुरुआत की गई है।
Also Read: अवधूत साठे की याचिका पर SAT 9 जनवरी को करेगा सुनवाई, बैंक खातों पर आंशिक रोक हटाई गई
पिछले सप्ताह लोकसभा में पेश किए गए इस विधेयक के अनुसार सेबी को अपने एनुअल सरप्लस का 25 फीसदी खर्चों के लिए एक रिजर्व फंड में रखना होगा। बाकी पैसा भारत की समेकित निधि में स्थानांतरित किया जाएगा। मामले से परिचित एक व्यक्ति के अनुसार आठ साल की यह सीमा पुराने लेनदेन को कानूनी निश्चितता देगी। इससे यह सुनिश्चित होगा कि संस्थाएं पुराने मामलों से अनिश्चित काल तक परेशान न रहें।
उन्होंने कहा कि जांच को तय समय में पूरा करने और लोकपाल व्यवस्था से जुड़े बदलावों के कारण नियामक को अतिरिक्त कर्मचारियों की जरूरत पड़ेगी। ऐसे में सेबी को अपनी क्षमता बढ़ानी होगी और इस फ्रेमवर्क को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए नियम-कायदों की अच्छी जानकारी रखने वाले कर्मचारियों की तैनाती करनी होगी।
इस विधेयक को आगे की चर्चा के लिए एक स्थायी समिति के पास भेजा गया है। इसका मकसद तीन पुराने कानूनों को खत्म करके एक नया एकीकृत कानून बनाना है। ये तीन कानून हैं सिक्योरिटीज कॉन्ट्रैक्ट्स (रेगुलेशन) एक्ट, 1956; SEBI एक्ट, 1992 और डिपॉजिटरीज एक्ट, 1996।
Also Read: RBI की जोरदार डॉलर बिकवाली से रुपये में बड़ी तेजी, एक ही दिन में 1.1% मजबूत हुआ भारतीय मुद्रा
इस विधेयक के तहत, सेबी को किसी भी मामले में निरीक्षण या जांच का आदेश देने से रोक दिया गया है, यदि उस मामले की मूल वजह उस आदेश की तारीख से आठ साल से ज्यादा पुरानी हो।
समय-सीमा तय करने के उद्देश्य से, विधेयक में जांच को 180 दिनों के भीतर पूरा करना अनिवार्य किया गया है। यदि जांच में देरी होती है, तो सेबी को इसके कारण लिखित रूप में दर्ज करने होंगे और किसी पूर्णकालिक सदस्य से समय बढ़ाने की मंजूरी लेनी होगी। इसके अलावा, अंतरिम आदेशों की वैधता 180 दिनों तक सीमित होगी, हालांकि यदि न्यायिक प्रक्रिया, निरीक्षण या जांच लंबित रहती है, तो ऐसे आदेशों को अधिकतम दो साल तक बढ़ाया जा सकता है।
विधेयक के तहत, सेबी को यह अधिकार दिया गया है कि वह अपने एक या एक से ज्यादा अधिकारियों को लोकपाल के रूप में नियुक्त कर सके। विवाद निपटान की इस विस्तारित भूमिका के चलते निवेशकों की शिकायतों में संभावित बढ़ोतरी को संभालने के लिए अतिरिक्त कर्मचारियों की आवश्यकता होगी।
विधेयक के अनुसार, लोकपाल की मुख्य जिम्मेदारी निवेशकों द्वारा दर्ज की गई शिकायतों को प्राप्त करना, उनकी जांच करना और उनका समाधान करना होगा। फिलहाल, ऐसी शिकायतों का निपटारा सेबी की शिकायत निवारण प्रणाली (SCORES) और ऑनलाइन डिस्प्यूट रेजोल्यूशन (ODR) प्लेटफॉर्म के माध्यम से किया जाता है।
Also Read: सोने-चांदी की तेजी से पैसिव फंडों की हिस्सेदारी बढ़ी, AUM 17.4% पर पहुंचा
विधेयक में विवाद सुलझाने के लिए एक सिस्टमैटिक व्यवस्था तय की गई है। इसके तहत निवेशकों को पहले अपनी शिकायत दर्ज कराने के 180 दिनों के भीतर संबंधित सेवा प्रदाता या जारीकर्ता की आंतरिक शिकायत निवारण व्यवस्था के जरिए समाधान की कोशिश करनी होगी। यदि इस अवधि के बाद भी शिकायत का समाधान नहीं होता है, तो निवेशक अगले 30 दिनों के भीतर लोकपाल के पास जा सकते हैं।
हालांकि, इस मामले से जुड़े व्यक्ति ने चेताया है कि वर्तमान में SCORES और ODR स्तर पर लंबित बड़ी संख्या में मामले आगे चलकर लोकपाल तक पहुंच सकते हैं। इसके अलावा, यदि लोकपाल द्वारा दिए गए आदेशों के खिलाफ प्रतिभूति अपीलीय अधिकरण (SAT) में अपील की जा सकती है, तो इससे ट्रिब्यूनल पर काम का बोझ काफी बढ़ सकता है।
इस विधेयक में सेबी की फाइनैंशियल फ्रेमवर्क से जुड़े बदलाव भी किए गए हैं। इसके तहत नियामक को एक रिजर्व फंड स्थापित करना होगा, जिसमें जनरल फंड से मिलने वाले उसके एनुअल सरप्लस का 25 फीसदी पैसा ट्रांसफर किया जाएगा। इस रिजर्व फंड का उपयोग केवल सेबी के खर्चों को पूरा करने के लिए किया जाएगा। बचा हुआ पैसा भारत की संचित निधि (Consolidated Fund of India) में जमा करना अनिवार्य होगा।
अनुमानों के मुताबिक, सेबी का जनरल फंड इस समय करीब 3,000 से 4,000 करोड़ रुपये का है।
(PTI इनपुट के साथ)