विदेशी फंडों की लगातार बिकवाली और इंडेक्स के दिग्गजों में भारी नुकसान के कारण बेंचमार्क निफ्टी (Nifty) गिरकर करीब पांच महीने के निचले स्तर पर चला गया। आय के मोर्चे पर निराशा और अमेरिका में निवेश की बेहतर संभावनाओं ने भी निवेशकों के मनोबल को पस्त रखा है।
निफ्टी में लगातार चौथे दिन गिरावट आई और यह 258 अंक यानी 1.07 फीसदी टूटकर 23,883 पर बंद हुआ जो 26 जून के बाद का सबसे निचला स्तर है। सेंसेक्स ने 821 अंकों की गिरावट के साथ 78,675 पर कारोबार की समाप्ति की जो 6 अगस्त के बाद का सबसे निचला स्तर है।
बीएसई (BSE) में सूचीबद्ध कंपनियों का कुल बाजार पूंजीकरण (Mcap) 5.2 लाख करोड़ रुपये घटकर 437 लाख करोड़ रुपये रह गया। 26 सितंबर के अपने-अपने सर्वोच्च स्तर से सेंसेक्स 8.3 फीसदी गिरा है जबकि निफ्टी में करीब 9 फीसदी की फिसलन हुई है।
सेंसेक्स के नुकसान में एचडीएफसी बैंक (HDFC Bank) का योगदान सबसे ज्यादा रहा और यह सेंसेक्स के शेयरों में दूसरा सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला शेयर रहा। एचडीएफसी बैंक का शेयर 2.7 फीसदी टूटकर 1,718.4 रुपये पर बंद हुआ। एसबीआई में 2.5 फीसदी, एनटीपीसी में 3.2 फीसदी की गिरावट आई। सेंसेक्स की गिरावट में इनका योगदान भी बड़ा रहा।
बिस्कुट निर्माता ब्रिटानिया का शेयर 7.3 फीसदी टूट गया क्योंकि कंपनी दूसरी तिमाही के लाभ अनुमानों पर खरी नहीं उतरी। इस बीच, खुदरा महंगाई अक्टूबर में 14 महीने के उच्चस्तर 6.1 फीसदी पर पहुंच गई जिसकी वजह खाद्य कीमतों में उछाल रही।
शेयर बाजार में आज कल गिरावट की वजह
भारतीय इक्विटी में अक्टूबर से ही बिकवाली देखने को मिल रही है क्योंकि चीन के आक्रामक प्रोत्साहन कदमों के कारण वहां के बाजारों में रिकवरी आई है। फेडरल रिजर्व के दरों को नरम बनाने के बावजूद अमेरिकी बॉन्ड का प्रतिफल मजबूत हो रहा है। सितंबर तिमाही के भारतीय कंपनियों की आय नतीजे भी उत्साहजनक नहीं रहे हैं।
निवेशक ट्रंप की आर्थिक नीतियों (व्यापार शुल्क और आव्रजन पर सख्ती ) के असर का भी आकलन कर रहे हैं जिससे महंगाई बढ़ सकती है और फेडरल रिजर्व की मौद्रिक नीति की दिशा भी प्रभावित हो सकती है। विश्लेषकों ने कहा कि अगर चीन और अमेरिका के बीच व्यापार को लेकर तनाव बढ़ता है तो इससे डॉलर और मजबूत होगा क्योंकि निवेशक सुरक्षित निवेश की ओर बढ़ेंगे। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले मंगलवार को रुपया कारोबारी सत्र में नए निचले स्तर 84.41 को छू गया।
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक मंगलवार को 3,024 करोड़ रुपये के शुद्ध बिकवाल रहे और देसी संस्थान 1,855 करोड़ रुपये के शुद्ध खरीदार रहे। अक्टूबर में एफपीई ने रिकॉर्ड एक लाख करोड़ रुपये के शेयर बेचे थे और इस महीने अब तक उनकी बिकवाली 25,000 करोड़ रुपये के पार चली गई है।
ऐक्सिस म्युचुअल फंड ने एक नोट में कहा कि विदेशी निवेश की दिशा बदलने की कई वजह हो सकती हैं – आय के मोर्चे पर निराशा, 10 वर्षीय अमेरिकी प्रतिफल में इजाफा, डॉलर इंडेक्स में 4.2 फीसदी की मजबूती और नीतिगत बदलावों ने निवेश को चीन और जापान के बाजारों की ओर मोड़ दिया है।
जियोजित फाइनैंशियल सर्विसेज के शोध प्रमुख विनोद नायर ने कहा कि एफपीआई की बिकवाली के दबाव का असर देसी बाजारों पर बरकरार है। डॉलर की हालिया मजबूती भी डर बढ़ा रही है। इसके अतिरिक्त खाद्य कीमतों में बढ़ोतरी और रुपये में गिरावट के कारण भारत में महंगाई में इजाफा आरबीआई की मौद्रिक नीति को प्रभावित कर सकता है।
विशेषज्ञों ने कहा, व्यापक बाजारों और शेयर विशेष में गिरावट विगत में हुई बिकवाली के मुकाबले ज्यादा रही।