अमेरिका और ईरान के बीच बढ़ते तनाव से वैश्विक तेल आपूर्ति बाधित होने की आशंका के बीच भारतीय शेयर बाजार में आज 1 फीसदी से अधिक की गिरावट आई, मगर तेल आपूर्ति संबंधी चिंताएं कम होने से करीब आधे नुकसान की भरपाई हो गई। ब्रेंट क्रूड की कीमतों में पांच महीने की ऊंचाई से गिरावट के कारण आपूर्ति में झटके की चिंता कम हुई और निवेशकों को थोड़ी राहत मिली।
बीएसई सेंसेक्स आज 931 अंक यानी 1.1 फीसदी तक लुढ़कने के बाद 511 अंक यानी 0.6 फीसदी की गिरावट के साथ 81,897 पर बंद हुआ। एनएसई निफ्टी 140 अंक यानी 0.6 फीसदी गिरावट के साथ 24,972 पर आ गया। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों यानी एफपीआई ने 1,874 करोड़ रुपये की शुद्ध बिकवाली की जबकि देसी संस्थानों ने 5,592 करोड़ रुपये की लिवाली की।
ईरान के परमाणु ठिकानों पर अमेरिकी बमबारी के बाद ब्रेंट क्रूड की कीमत 77 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई जो पिछले पांच महीनों का सर्वोच्च स्तर है। इससे जंग के लंबे समय तक खिंचने की आशंका बढ़ गई। मगर बाद में ब्रेंट क्रूड की कीमतें 76 डॉलर पर आ गईं क्योंकि ईरान ने होर्मुज स्ट्रेट के जरिये आपूर्ति को बाधित करने का तत्काल कोई संकेत नहीं दिया। होर्मुज स्ट्रेट एक महत्त्वपूर्ण जलमार्ग है जहां से कच्चे तेल की करीब 20 फीसदी वैश्विक आपूर्ति होती है।
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इस क्षेत्र के जरिये होने वाली आपूर्ति में किसी भी तरह के व्यवधान से तेल की कीमतें काफी बढ़ सकती हैं। अगर ऐसा हुआ तो वृद्धि की रफ्तार सुस्त पड़ जाएगी और मुद्रास्फीति काफी बढ़ जाएगी जिससे स्टैगफ्लेशन यानी मुद्रास्फीति जनित मंदी का खतरा बढ़ सकता है। अर्थशास्त्र में स्टैगफ्लेशन उस स्थिति को दर्शाता है जब मुद्रास्फीति और बेरोजगारी दर दोनों मे तेजी दिखती है और मांग कम हो जाती है।
भारत अपनी तेल जरूरतों का अधिकांश हिस्सा आयात के जरिये पूरा करता है। इसलिए कच्चे तेल के दाम बढ़ने से भारत का राजकोषीय घाटा बढ़ सकता है। ऐसे में मुद्रास्फीति को नियंत्रित करते हुए आर्थिक वृद्धि को रफ्तार देने के भारतीय रिजर्व बैंक के प्रयास जटिल हो सकते हैं। बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि संघर्ष बढ़ने से कच्चे तेल की आपूर्ति में कोई खास व्यवधान नहीं होना चाहिए। उनका कहना है कि अगर ईरान ने ऐसा किया तो अन्य देशों के नाराज होने और उन्हें संघर्ष में धकेलने का खतरा होगा।
यूबीएस ने एक नोट में कहा, ‘हमें ऐसा नहीं लगता है कि संघर्ष बढ़ने से तेल आपूर्ति में लंबे समय तक व्यवधान होगा। ऐसा हुआ तो वैश्विक वृद्धि खतरे में पड़ जाएगी अथवा केंद्रीय बैंकों के लिए गंभीर चुनौतियां पैदा हो सकती हैं। इसलिए हमारा मानना है कि शेयरों में गिरावट उन निवेशकों के लिए एक अवसर हो सकती है जिनका शेयर बाजार में अधिक दांव नहीं है।’
अल्फानीति फिनटेक के सह-संस्थापक यूआर भट्ट ने कहा कि होर्मुज स्ट्रेट का बंद होना संभव नहीं है क्योंकि इससे ईरान के निर्यात और आयात दोनों प्रभावित होंगे। उन्होंने कहा, ‘ईरान पहले से ही लाचार है। अगर वह ऐसा कोई कदम उठाता है तो उसकी आर्थिक स्थिति अधिक खराब हो सकती है। ईरान होर्मुज स्ट्रेट को बंद करने की धमकी देता रहेगा लेकिन इतना कठोर कदम नहीं उठाएगा।’
सेंसेक्स के दो-तिहाई से अधिक शेयरों में गिरावट आई। सेंसेक्स की गिरावट में सबसे अधिक योगदान एचडीएफसी बैंक का रहा।