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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की हालिया मुलाकात ने भारतीय शेयर बाजार में नई उम्मीद जगा दी है। दोनों नेताओं के बीच चीन में हुआ प्रतीकात्मक हैंडशेक इस संकेत के तौर पर देखा जा रहा है कि भारत और चीन के बीच व्यापारिक संबंध बेहतर हो सकते हैं।
इसी बीच सरकार ने घरेलू स्तर पर टैक्स कटौती का ऐलान किया है। इससे निवेशकों का भरोसा और मजबूत हुआ है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय शेयर बाजार अब उभरते बाजारों (Emerging Markets) की तुलना में पिछड़ने की स्थिति से बाहर निकल सकता है।
इसके अलावा, रिजर्व बैंक की ओर से ब्याज दरों में और कटौती की उम्मीद भी बनी हुई है। बाजार के जानकारों का कहना है कि ये सभी सकारात्मक कदम अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए 50 फीसदी रेसिप्रोकल टैक्स के असर को कम कर सकते हैं।
तियानजिन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की 31 अगस्त को मुलाकात हुई। दोनों नेताओं ने साझेदारी के रास्ते पर आगे बढ़ने और प्रतिद्वंद्वी की बजाय सहयोगी बनने पर सहमति जताई। बैठक में सीमा विवाद, सीधी उड़ानों की बहाली और व्यापार बढ़ाने जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई।
विश्लेषकों का मानना है कि इस रिश्तों में आई नरमी से भारत को निवेश, मैन्युफैक्चरिंग तकनीक और चीन की क्लीन-एनर्जी सप्लाई चेन तक पहुंच जैसे क्षेत्रों में फायदा हो सकता है।
यह संकेत ऐसे समय आए हैं जब भारतीय शेयर बाजार दबाव में है। अमेरिकी टैरिफ और कमजोर तिमाही नतीजों की वजह से निवेशकों का भरोसा डगमगाया है। इस साल निफ्टी 50 सिर्फ 4.6% चढ़ा है, जबकि एमएससीआई इमर्जिंग मार्केट्स इंडेक्स 19% बढ़ चुका है। जनवरी से अब तक विदेशी निवेशकों ने भारतीय शेयरों से करीब 16 अरब डॉलर की निकासी की है।
मुंबई स्थित मार्सेलस इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स के सह-संस्थापक प्रमोद गुब्बी का कहना है कि भारत-चीन रिश्तों में सुधार से उभरते बाजारों (EM) में भारत की घटती हिस्सेदारी पर रोक लग सकती है। अमेरिकी टैरिफ का असर इस आर्थिक सुधार और आय में रिकवरी से संतुलित हो सकता है।
भारत और चीन के बीच लंबे समय से तनाव रहा है। 2020 में सीमा पर झड़प के बाद दोनों देशों के सैनिकों की मौत हुई थी, जिसके बाद भारत में चीनी सामान के बहिष्कार की मांग तेज हो गई थी।
आरबीसी वेल्थ मैनेजमेंट एशिया की रिपोर्ट के मुताबिक, मौजूदा हालात में भारत को चीन से ज्यादा फायदा मिलने की संभावना है। हांगकांग स्थित आरबीसी की सीनियर इन्वेस्टमेंट स्ट्रैटेजिस्ट जैस्मिन डुआन के अनुसार, चीन के मुकाबले भारत पर अमेरिकी टैरिफ का ज्यादा असर है, इसलिए रिश्तों में सुधार भारतीय शेयर बाजार के लिए बड़ी राहत साबित हो सकता है।
अभी भारत और चीन के बीच व्यापार संतुलन भी भारत के खिलाफ है। मार्च 2025 तक के वित्त वर्ष में भारत ने चीन को सिर्फ 14.2 अरब डॉलर का निर्यात किया, जबकि आयात 113.5 अरब डॉलर का रहा।
भारत-चीन संबंधों में सुधार की खबरों पर अब भी कुछ विशेषज्ञ पूरी तरह आश्वस्त नहीं हैं। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी चिनफिंग की मुलाकात के बाद जारी रिपोर्टों में रिश्ते गहरे करने के लिए ठोस कदमों का जिक्र नहीं किया गया है।
लंदन स्थित फेडरेटेड हर्मिस लिमिटेड के हेड ऑफ ग्लोबल इमर्जिंग मार्केट्स कुंजल गाला ने कहा, ‘‘अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि कौन-से सेक्टर या इंडस्ट्री को फायदा होगा, क्योंकि कोई ठोस पॉलिसी घोषित नहीं हुई है। चीन के साथ रिश्तों में नरमी से जुड़ी पॉजिटिव भावना ज्यादा समय तक नहीं टिकेगी।’’
दूसरी ओर, पॉलिसी सपोर्ट के चलते निवेशकों में भारत को लेकर आशावाद बढ़ा है। आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने पिछले महीने कहा था कि केंद्रीय बैंक ग्रोथ को सपोर्ट करने के लिए ईजिंग साइकिल में है। फरवरी से अब तक आरबीआई 100 बेसिस प्वाइंट की दरें घटा चुका है।
इसी हफ्ते केंद्रीय और राज्य वित्त मंत्रियों की समिति ने लगभग 400 प्रोडक्ट्स पर जीएसटी घटाने का फैसला किया। ये प्रोडक्ट्स देश की कंज्यूमर प्राइस बास्केट का करीब 16 फीसदी हिस्सा हैं। इसके बाद कंज्यूमर कंपनियों और कार निर्माताओं के शेयरों में तेजी देखने को मिली।
वैनएक एसोसिएट्स कॉर्प, सिडनी की क्रॉस-एसेट स्ट्रैटेजिस्ट अन्ना वू ने कहा, ‘‘भारत-चीन संबंधों में सुधार पॉजिटिव फैक्टर है और टैक्स कटौती भारतीय इक्विटी के लिए स्ट्रक्चरल टेलविंड साबित होगी। चीन-रूस-भारत का ब्लॉक अब बन रहा है, जो अमेरिका की टैरिफ नीति के खिलाफ भारत की मजबूती बढ़ा सकता है।’’
(एजेंसी इनपुट के साथ)