बाजार के सेंटिमेंट का बैरोमीटर यानी चढ़ने व गिरने वाले शेयरों का अनुपात फिसल गया क्योंकि अक्टूबर में विदेशी फंडों ने अपनी बिकवाली में इजाफा कर दिया।
यह अनुपात 1.02 रहा, जो मार्च के बाद का निचला स्तर है और गिरने वाले शेयरों के मुकाबले चढ़ने वाले शेयर सिर्फ 42 ज्यादा रहे जबकि पिछले छह महीने का औसत 275 है।
अमेरिकी बॉन्ड प्रतिफल में बढ़ोतरी और इजरायल-हमास के युद्ध को लेकर चिंता से निवेशक पिछले महीने जोखिम वाली परिसंपत्तियों से दूर हो गए। अक्टूबर में सेंसेक्स 3 फीसदी टूटा, जो दिसंबर 2022 के बाद की सबसे बड़ी गिरावट है।
निफ्टी मिडकैप 100 इंडेक्स में 4.1 फीसदी की गिरावट आई, जो जून 2022 के बाद का सर्वोच्च स्तर है। स्मॉलकैप इंडेक्स का प्रदर्शन हालांकि बेहतर रहा और इसमें एक फीसदी से भी कम की गिरावट आई, जिसने बाजार में चढ़ने व गिरने वाले शेयरों के अनुपात को सहारा दिया।
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने 21,860 करोड़ रुपये के शेयर बेचे, जो जनवरी के बाद का सर्वोच्च स्तर है। देसी संस्थानों की तरफ से इस बिकवाली की सिर्फ आंशिक भरपाई हो पाई, जिन्होंने पिछले महीने 11,275 करोड़ रुपये का निवेश किया।
10 वर्षीय अमेरिकी बॉन्ड का प्रतिफल इस डर के बीच सख्त हो गया कि फेडरल रिजर्व अपनी मौद्रिक नीति में और सख्ती ला सकता है। 10 वर्षीय अमेरिकी बॉन्ड का प्रतिफल 36 आधार अंक चढ़ा और 16 साल बाद अक्टूबर में पहली बार 5 फीसदी के पार निकल गया।
इजरायल-हमास का संघर्ष अब क्षेत्रीय गतिरोध का मसला बनने का डर है, जिसमें इरान व अन्य तेल उत्पादक देश शामिल हो सकते हैं। यह निवेशकों को परेशान करना जारी रखे हुए है। निवेशक तेल की कीमतों में बढ़ोतरी से चिंतित हैं।
तेल की कीमतों में बढ़ोतरी भारतीय इक्विटी बाजार के लिए नकारात्मक है क्योंकि भारत अपनी तेल जरूरतों का 80 फीसदी से ज्यादा आयात करता है। इसके अतिरिक्त यह केंद्रीय बैंकों के काम को जटिल बनाता है, जो अपने-अपने देशों को मंदी में ले जाए बिना महंगाई पर लगाम कसने में जुटे हुए हैं।
आईटी कंपनियों व कुछ बैंकों की आय के मोर्चे पर निराशा के बावजूद सकारात्मक चीजें ज्यादा रहीं, जिसने बाजार में चढ़ने व गिरने वाले शेयरों के अनुपात को सकारात्मक बनाए रखने में मदद की।
आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज के विश्लेषकों ने एक नोट में कहा, वित्त वर्ष 24 की दूसरी तिमाही के आय के सीजन ने अभी तक कोई अहम नकारात्मक चीजें सामने नहीं रखा है और साइक्लिकल लाभ को आगे बढ़ा रहे हैं, वहीं रक्षात्मक पिछड़ रहे हैं। साथ ही आय के मोर्च पर सकारात्मक चीजें नकारात्मक से ज्यादा है।
विश्लेषकों ने यह भी कहा कि लार्ज व मिडकैप सूचकांकों में नुकसान के बावजूद चढ़ने व गिरने वाले शेयरों का सकारात्मक अनुपात बताता है कि निवेश माइक्रोकैप व स्मॉलकैप की ओर बढ़ रहे हैं क्योंकि एफपीआई की बिकवाली मोटे तौर पर लार्ज व मिडकैप शेयरों पर असर डालती है। मौटे तौर पर एफपीआई छोटी कंपनियों में निवेश नहीं करते, जिसकी वजह वहां कम नकदी का होना है।
अल्फानीति फिनटेक के सह-संस्थापक यू आर भट्ट ने कहा, कामयाबी को लेकर भरोसा अब मार्केट कैप कर्व की ओर चला गया है। सूचकांकों के बाहर के कई शेयरों ने निवेशकों का ध्यान खींचा है। मोटे तौर पर यह तेजी के बाजारों के सर्वोच्च स्तर पर पहुंचने का संकेत है, जहां खुदरा निवेशक सबसे छोटी कंपनी की ओर बढ़ते हैं और उम्मीद करते हैं कि इसमें काफी जान है और धीरे-धीरे यह लार्जकैप शेयर बन जाएगा।
स्वतंत्र बाजार विश्लेषक अंबरीश बालिगा ने कहा, खुदरा निवेशक छोटे शेयरों पर दांव लगा रहे हैं क्योंकि इनमें इस साल काफी बढ़त हुई है। उन्होंने कहा, हमने उनमें से कई शेयरों को बहुत ज्यादा लाभ हासिल करने वाला बनते देखा है और कई ने 40, 80 और 100 फीसदी तक का रिटर्न दिया है। बाजार को लेकर मैं काफी सतर्क हूं, यह और लुढ़क सकता है।
कुछ का मानना है कि गिरावट शायद नाटकीय नहीं होगी, लेकिन समय के साथ बढ़त कम हो जाएगी। भट्ट ने कहा, इस समय ऐसा कुछ नहीं है जिससे तेजी महसूस हो, चाहे ब्याज दर का मामला हो, युद्ध की स्थिति हो या फिर विदेशी निवेश। हम आगे सिर्फ अवरोध देख सकते हैं।