भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने सूचकांक प्रदाताओं को नियामकीय दायरे में लाने का अपना फैसला रोक दिया है। उस फैसले से लाखों करोड़ डॉलर के बेंचमार्क तैयार करने वाले एमएससीआई और नैस्डैक जैसे वैश्विक सूचकांक प्रदाताओं को सेबी के पास पंजीकरण कराना पड़ सकता था।
सूचकांक प्रदाताओं के लिए नियामकीय ढांचे को सेबी बोर्ड की मार्च अंत में हुई बैठक में मंजूरी दी गई थी। मगर नियामक ने अभी तक किसी भी बदलाव की अधिसूचना जारी नहीं की है। सेबी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि सेबी इस ढांचे में और भी बदलाव करने और नए सिरे से प्रस्ताव अपने बोर्ड को सामने रखने की सोच रहा है।
अभी यह पता नहीं चला है कि सेबी किस तरह के बदलाव चाहता है। मामले के जानकार लोगों ने कहा कि वैश्विक सूचकांक प्रदाता को विनियमन के दायरे में लाना नियमक के लिए ज्यादा विवादित मसला है। दिसंबर में जारी सेबी के परिचर्चा पत्र के मुताबिक वह उन सभी सूचकांक प्रदाताओं को कायदे में लाना चाहता है, जिनकी सेवा देसी परिसंपत्ति प्रबंधक और निवेशक इस्तेमाल करते हैं।
अधिकतर देसी ईटीएफ संपत्तियां स्थानीय सूचकांक प्रदाताओं जैसे कि नैशनल स्टॉक एक्सचेंज की इकाई एनएसई इंडाइसेज और एसऐंडपी डाउ जोंस तथा बीएसई के साझे उपक्रम एशिया इंडेक्स के सूचकांकों से जुड़ी हैं। हालांकि कुछ भारतीय परिसंपत्ति प्रबंधक एमएससीआई, नैस्डैक, हैंगसैंग और एसऐंडपी के सूचकांकों का भी इस्तेमाल करते हैं मगर इनकी प्रबंधनाधीन संपत्तियां (एयूएम) काफी कम हैं।
पेरिस्कोप एनालिटिक्स के विश्लेषक ब्रायन फ्रीटस ने कहा, ‘इन सूचकांकों को ट्रैक करने वाली पैसिव संपत्तियों की मात्रा देखते हुए दुनिया भर में सूचकांकों के विनियमन की बात चल रही है। यूरोपीय संघ के पास ईयू बेंचमार्क रेगुलेशन है और अमेरिका का यूएस सेक विचार कर रहा है कि सूचकांक प्रदाताओं को निवेश सलाहकार के तौर पर पंजीकरण कराना जरूरी किया जाए या नहीं। ऐसे में देखना होगा कि एमएससीआई या एफटीएसई भारत के नियामकीय दायरे में आते हैं या नहीं। हालांकि देश में इनके सूचकांकों पर चलने वाली संपत्तियां ज्यादा नहीं हैं, इसलिए सूचकांक प्रदाता भारत में सूचकांक सेवा देना बंद भी कर सकते हैं।’
देसी म्युचुअल फंडों की पैसिव योजनाओं की प्रबंधनाधीन संपत्तियां 7 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गई हैं, जो 2020 में 2 लाख करोड़ रुपये के करीब ही थीं। पैसिव योजनाओं की संख्या भी बढ़कर 400 हो गई है, जो 4 साल पहले महज 150 थी। इतने इजाफे के कारण सूचकांकों और सूचकांक प्रदाताओं की पूंजी बाजार को प्रभावित करने की क्षमता भी बढ़ गई है। इन बेंचमार्क का देश में पूंजी प्रवाह पर काफी प्रभाव पड़ता है।
इसे देखते हुए सेबी ने इन वित्तीय बेंचमार्कों और सूचकांकों से जुड़ी इकाइयों में पारदर्शिता, जवाबदेही, प्रशासन और संचालन बढ़ाने के मकसद से नियम बनाए हैं। सेबी ने प्रस्ताव दिया है कि सूचकांक प्रदाताओं को कंपनी अधिनियम के तहत गठित वैध इकाई माना जाएगा। सेबी ने सूचकांक प्रदाताओं के लिए न्यूनतम 25 करोड़ रुपये की हैसियत और उनके मौजूदा सूचकांक ढांचे की समीक्षा के लिए निगरानी समिति के गठन का भी प्रस्ताव रखा है। इसके अलावा सूचकांक प्रदाताओं को दो साल में एक बार स्वतंत्र आंतरिक ऑडिट कराना होगा।
फिलहाल अधिकतर सूचकांक प्रदाता सूचकांक गठन के अपने तरीके का सार्वजनिक खुलासा करते हैं। मगर वे कुछ हद तक अपनी मर्जी भी चलाते हैं। आम तौर पर किसी शेयर को शामिल करने या उसे सूचकांक से हटाने या उसका भारांश बदलने का शेयर भाव पर काफी अधिक असर देखने को मिलता है।
टीएएस लॉ में एसोसिएट कंजनी शर्मा ने कहा, ‘सूचकांक प्रदाताओं की मर्जी अधिक चले तो प्रशासन एवं संचालन में हितों के टकराव की आशंका बढ़ती है। संवेदनशील जानकारी की सुरक्षा सुनिश्चित करने वाली नीतियां ठीक से लागू नहीं किए जाने की आशंका भी बनी रहती है। इसलिए इन्हें जवाबदेह बनाने के लिए नियामकीय ढांचे की जरूरत है। अभी ये सेबी के दायरे में बाहर हैं।’
कॉरपोरेट प्रोफेशनल्स एडवाइजर्स ऐंड एडवोकेट्स में एसोसिएट पाटर्नर रवि प्रकाश ने कहा, ‘प्रस्तावित ढांचा व्यापक स्तर पर काम करेगा। मगर बाद में नियामक को इसकी सूक्ष्म स्तर पर वैसी ही जांच करनी होगी, जैसी वह भारतीय बाजार में कंपनियों की करता है।’