भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने गुरुवार को प्री-आईपीओ गिरवी शेयरों के लॉकइन और संक्षिप्त विवरणिका के स्थान पर दस्तावेज़ के आसान सारांश से संबंधित दीर्घकालिक चुनौतियों के समाधान का प्रस्ताव रखा। एक परामर्श पत्र में नियामक ने इश्यू ऑफ कैपिटल ऐंड डिस्क्लोजर रीक्वायरमेंट (आईसीडीआर) नियमन, 2018 में संशोधन के जरिए इन बदलावों को लागू करने का प्रस्ताव किया है।
मौजूदा आईसीडीआर मानदंडों के तहत निर्गम से पहले की शेयरधारिता, जिसमें प्रवर्तक नहीं है, आईपीओ के बाद छह महीने के लिए लॉक-इन होनी चाहिए। हालांकि शेयरों को गिरवी रखते समय डिपॉजिटरी लॉक-इन अवधि तय नहीं कर पाती हैं जिससे जारीकर्ताओं को आखिरी वक्त पर अनुपालन की दिक्कतें होती हैं, खासकर उन कंपनियों के मामले में जिनके शेयरधारक बहुत अधिक हैं या जिनका कोई अता-पता नहीं है, यह मसला ज्यादा होता है।
इस समस्या के समाधान के लिए सेबी ने डिपॉजिटरी को जारीकर्ता के निर्देशों के आधार पर लॉक-इन अवधि के दौरान गिरवी रखे गए ऐसे शेयरों को गैर-हस्तांतरणीय के रूप में चिह्नित करने की अनुमति देने का प्रस्ताव किया है।
जारीकर्ताओं को अपने आर्टिकल ऑफ एसोसिएशन में भी संशोधन करना होगा ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि गिरवी हटाने या इन्हें छोड़ने पर शेयर स्वतः ही गिरवी रखने वाले या गिरवीदार के खाते में आवश्यक लॉक-इन अवधि के अंतर्गत बने रहें। नियामक ने कहा कि गैर-सूचीबद्ध शेयरों के बदले ऋण देने वाली एनबीएफसी ने प्रस्तावित ढांचे पर सहमति जताई है।
बाजार नियामक ने अनिवार्य संक्षिप्त विवरणिका समाप्त करने का भी प्रस्ताव दिया है, जो इस समय प्रत्येक आईपीओ आवेदन के साथ आवश्यक है। इसके बदले मानक पेशकश दस्तावेज़ सारांश के रूप में लाया जाएगा।
सारांश को मसौदा दस्तावेज के साथ जमा कराया जाएगा और इसे सेबी, स्टॉक एक्सचेंजों, जारीकर्ता और प्रमुख प्रबंधकों की वेबसाइटों पर अलग से प्रकाशित किया जाएगा। इसमें केंद्रित, खुदरा के अनुकूल खुलासे शामिल होंगे, जिनमें व्यवसाय और उद्योग का सार, प्रमुख जोखिम, वित्तीय विशेषताएं, प्रमुख मुकदमेबाजी और प्रवर्तक जानकारी शामिल होगी।
यह कदम उन चिंताओं के बाद उठाया गया है कि भारी-भरकम प्रस्ताव दस्तावेज खुदरा निवेशकों को सार्थक समीक्षा से रोकते हैं, जिसके कारण कई निवेशक असत्यापित ग्रे-मार्केट या सोशल मीडिया संकेतों पर निर्भर हो जाते हैं।