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SEBI ने राइट्स इश्यू में सुधारों का प्रस्ताव रखा, फंड जुटाने की प्रक्रिया में तेजी और पारदर्शिता पर जोर

पिछले तीन साल में नॉन-फास्ट ट्रैक राइट्स इश्यू को पूरा करने में बोर्ड की मंजूरी की तारीख से औसतन 317 दिन का समय लगे, वहीं फास्ट-ट्रैक राइट्स इश्यू ने औसतन 126 दिन का समय लिया।

Last Updated- August 20, 2024 | 9:28 PM IST
SEBI

बाजार नियामक सेबी ने राइट्स इश्यू के ढांचे में व्यापक परिवर्तन का प्रस्ताव रखा है ताकि इसके आकर्षण में इजाफा हो और जब सूचीबद्ध कंपनियों की तरफ से अतिरिक्त रकम जुटाने की बात हो तो इसे ही जरिया बनाया जाए। नियामक ने इसके लिए समयसीमा मौजूदा 20 दिन से घटाकर महज तीन दिन करने का प्रस्ताव रखा है। साथ ही शेयरधारक को अपना राइट्स एनटाइटलमेंट (आरई) अपनी पसंद के निवेशकों के हक में त्यागने की अनुमति देना और निवेश बैंकर की नियुक्ति की आवश्यकता समाप्त करना या पेशकश का मसौदा पत्र जमा न कराना शामिल है।

राइट्स इश्यू के अलावा सूचीबद्ध कंपनियां अन्य जरिया मसलन तरजीही आवंटन, पात्र संस्थागत नियोजन (क्यूआईपी) का इस्तेमाल कर सकती हैं। सेबी की तरफ से हुए डेटा के विश्लेषण से पता चलता है कि अभी राइट्स इश्यू इन तीनों में सबसे कम पसंदीदा जरिया है। राइट्स इश्यू के तहत मौजूदा शेयरधारकों को उनकी शेयरधारिता के अनुपात में कंपनी के नए शेयर जारी किए जाते हैं। तरजीही आवंटन में मोटे तौर पर प्रवर्तक कंपनी में पूंजी का निवेश करते हैं, वहीं क्यूआईपी निवेशकों के चुनिंदा समूह के बीच होता है।

मंगलवार को सेबी की तरफ से जारी चर्चा पत्र में कहा गया है, वास्तविकता यह है कि कंपनी की रकम जुटाने की गतिविधियों में भागीदारी का पहला हक मौजूदा शेयरधारकों का होता है, बावजूद इसके सूचीबद्ध इकाइयां तरजीही इश्यू के जरिये रकम जुटाने को प्राथमिकता देती हैं और इसके लिए प्रवर्तक समेत कुछ चुनिंदा निवेशकों को पेशकश की जाती है। नियामक ने इस पर 10 सितंबर तक सार्वजनिक टिप्पणी मांगी है। बाजार के विशेषज्ञों ने कहा कि क्यूआईपी और तरजीही आवंटन ज्यादा पसंद किए जाते हैं क्योंकि इनमें अनुपालन का अपेक्षाकृत कम बोझ होता है।

एकसमान मौका उपलब्ध कराने के लिए सेबी ने सात कदमों का प्रस्ताव रखा है, जिसमें डिस्क्लोजर को आसान बनाना शामिल है (सिर्फ प्रासंगिक सूचना मसलन इश्यू का मकसद, कीमत और रिकॉर्ड तारीख) और वह भी सरल पेशकश पत्र के जरिये। इसके अलावा सेबी ने बिना आवंटन वाले हिस्से का आवंटन राइट एनटाइटलमेंट के अलावा किसी अन्य व्यक्ति को करने की खातिर नियमों की खामियां दूर करने की कोशिश की है। राइट्स इश्यू के मौजूदा नियम प्रवर्तकों को अपना राइट्स त्यागने पर प्रतिबंध लगाते हैं, अगर न्यूनतम आवेदन हासिल न किया गया हो।

सेबी ने कहा, प्रवर्तकों या प्रवर्तक समूह की तरफ से राइट्स एनटाइटलमेंट त्यागने को लेकर पाबंदी में ढील से इश्यू करने वाली कंपनी व प्रवर्तकों को कंपनी के साथ चुनिंदा निवेशकों को शेयरधारकों के तौर पर जोड़ने को लेकर लचीला रुख अपनाने में आसान होगी।

बाजार नियामक ने बिना बिके हिस्से का आवंटन चुनिंदा निवेशकों को करने की इजाजत देने का प्रस्ताव भी रखा है। इसमें कहा गया है कि चुनिंदा निवेशकों को आवंटन से इश्यू को नाकाम होने से बचाया जा सकेगा, अंडरराइटिंग की जरूरतें घटेंगी और इश्यू करने वाली कंपनी को राइट्स इश्यू की बेहतर कीमत पाने में मदद मिलेगी।

सेबी ने हालांकि प्रवर्तकों की तरफ से अग्रिम तौर पर त्यागने का डिस्क्लोजर और चुनिंदा निवेशकों की तरफ से ऐसे आवेदन के लिए समयसीमा का प्रस्ताव रखा है। सेबी के आंकड़ों के मुताबिक, वित्त वर्ष 24 में 67 राइट्स इश्यू के जरिये 15,110 करोड़ रुपये जुटाए गए जबकि तरजीही आवंटन के 689 इश्यू के जरिये 45,155 करोड़ रुपये। रकम जुटाने के लिए क्यूआईपी तरजीही जरिया बना रहा और 61 इश्यू के जरिये 69,972 करोड़ रुपये जुटाए गए।

पिछले तीन साल में नॉन-फास्ट ट्रैक राइट्स इश्यू को पूरा करने में बोर्ड की मंजूरी की तारीख से औसतन 317 दिन का समय लगे, वहीं फास्ट-ट्रैक राइट्स इश्यू ने औसतन 126 दिन का समय लिया। सेबी ने पाया कि तरजीही इश्यू के चयन के विभिन्न कारणों में से एक इसकी छोटी समयसीमा है। उसने हालांकि कहा, ‘तरजीही इश्यू के लिए छोटी समयसीमा होती है, लेकिन मौजूदा निवेशकों के ऊपर चुनिंदा निवेशकों को तरजीह दिए जाने से वे त्वरित तौर पर रकम जुटाने में भागीदारी से वंचित रह जाते हैं और इसके परिणामस्वरूप उनकी शेयरधारिता में भी फेरबदल होता है।’

विशेषज्ञों ने कहा कि अपारदर्शिता के कारण सेबी तरजीही आवंटन का जरिया धीरे-धीरे समाप्त करने पर विचार कर सकता है।

उद्योग के एक अधिकारी ने कहा, ‘सेबी तरजीही कीमत पसंद नहीं करता क्योंकि प्रवर्तकों का काफी बोलबाला होता है। वह चाहता है कि इसके बजाय हर आम शेयरधारक रकम जुटाने की प्रक्रिया में हिस्सा ले। तकनीक के साथ समयसीमा घटाया जा सकता है और इसे तेजी से पूरा किया जा सकता है।’

सेबी ने कुछ निश्चित नियंत्रण व संतुलन का प्रस्ताव भी रखा है ताकि सुनिश्चित हो कि नए ढांचे का दुरुपयोग नहीं हो रहा। इसमें उन कंपनियों को राइट्स इश्यू लाने की इजाजत नहीं देना शामिल है, जिनके शेयर ट्रेडिंग से निलंबित हों। साथ ही राइट्स इश्यू के लिए निगरानी एजेंसी की नियुक्ति का प्रस्ताव है ताकि सुनिश्चित हो कि आम शेयरधारकों से जुटाई गई रकम का इस्तेमाल पहले से बताए मकसद के लिए ही हो।

First Published - August 20, 2024 | 9:28 PM IST

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